Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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૨પપ
॥ मूळपाठ॥
॥ इन्द्रियपराजयशतकम् ॥
सु च्चिय सूरो सो चेव, पंडिओ तं पसंसिमो निच्चं । इंदियचोरेहिं सया, न लुंटिअंजस्स चरणधणं ॥१॥ इंदियचवलतुरंगे, दुग्गइमग्गाणुधाविरे निच्चं । भाविअभवस्सरूवो, रुंभइ जिणवयणरस्सीहिं ॥२॥ इंदियधुत्ताणमहो, तिलतुसमित्तंपि देसु मा पसरं । जइ दिन्नो तो नीओ, जत्थ खणो वरिसकोडिसमो ॥३॥ अजिइंदिएहि चरणं, कटुं व घुणेहि कीरइ असारम् । तो धम्मत्थीहि दढं, जइयव्वं इंदियजयम्मि ॥ ४ ॥ जह कागिणीइ हेडं, कोडिं रयणाण हारए कोइ। तह तुच्छविसयगिद्धा, जीवा हारंति सिद्धिसुहं ॥५॥ तिलमित्तं विसयसुहं, दुहं च गिरिरायसिंगतुंगयरं । भवकोडीहिं न निठुइ, जं जाणसु तं करिज्जासु ॥६॥ भुंजंता महुरा विवागविरसा, किंपागतुल्ला इमे, कच्छुकंडुअणं व दुक्खजणया, दाविंति बुद्धि सुहे। मज्झन्हे मयतिन्हिअव्व सययं, मिच्छाभिसंधिप्पया, भुत्ता दिति कुजम्मजोणिगहणं, भोगा महावेरिणो॥७॥
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