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१. २३६] नहीं की। उचित आहार आदि प्राप्त न होने पर भी उन्होंने अपना अध्ययन चालू रक्खा.. सातः वाचनाएं जारी रही। :
__चौदह पूर्वो के ज्ञाता श्रुतकेवली केवली के समकक्ष माने जाते हैं । स्थूलभद्र को ऐसे महान् गुरु प्राप्त हुए। उन्होंने अपना अहोभाग्य माना और ज्ञान के अभ्यास में अपना मन लगाया। यदि इस लोक और परलोक को सुखमय बनाना है तो आप भी ज्ञान का दीपक जगाइए। हमें उन महान् तपस्वियों से यही सीख ग्रहण करना चाहिए जिन्होंने श्रृत की रक्षा करने में अपना बहुमूल्य जीवन लगाया है।
जो महापुरुष आत्मोत्थान के सोपानों को पार करते-करते पूर्ण सुख और शान्ति की मंजिल तक जा पहुंचे, उन्होंने संसार के दुःख पीडित प्राणियों के उधार के लिए, अनन्त करूणा से प्रेरित हो कर स्वानुभूत एवं प्राचीर्ण 'मार्ग का अपनी वाणी द्वारा प्रकाश किया। उनकी वही वाणी कालान्तर में लिपिबद्ध हुई और श्रुत या आगम के नाम से आज भी हमारे समक्ष है। इस प्रकार श्रुत का महत्व इस बात में है कि उसमें प्रतिपादित तथ्य साधना में सफलता प्राप्त करने वाले महान् ऋषियों के प्राचीर्ण प्रयोग हैं, अनुभव के सार हैं तथा गम्भीर एवं दीर्घ कालीन चिन्तन के परिणाम हैं।
वीतराग पुरुषों ने यह समझकर कि संसार के जीवों को शान्ति प्रदान करने की आवश्यकता है, शास्त्र के द्वारा शान्ति का मार्ग प्रदर्शित किया है। उन्होंने संदेश दिया है कि अंशान्ति का कारण दुःख है । हिंसा और अनावश्यक रूप से बढ़ी हुई आबश्यकताए कम हो जाए तो दुःख कम हो जाएगा। अत. एव उन्होंने..हिंसा और परिग्रह से दूर रहने पर.. जोर दिया है । हिंसा, और परिग्रह परस्पर सम्बद्ध हैं। जहां हिंसा होगी. वहां परिग्रह और जहां परिग्रह है . वहां. हिंसा होना अनिवार्य है। दोनों का गठ बन्धन है। ..
परिग्रह और हिंसा की वृत्ति पर अगर अंकुश नः रक्खा गया तो स्वयं को अशान्ति होगी और दूसरों की अशान्ति का भी. कारण बनेगी। मगर प्रश्न, यह है कि हिंसा और परिग्रह को वृत्ति को रोका कैसे जाए.?? मानव का