Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 418
________________ चलने का संकल्प कर चुका है, जो परीग्रहों और उपलों के सामने सीना तान कर स्थिर खटा रह सकता है और जिसके अन्तःकारणा में प्राणीमात्र के प्रति करुणा का भाव जागृत हो चुका है। यह साधना कठोर साधना है। विरल - सत्त्वशाली ही वास्तविक रूप से इस पथ पर चल पाते हैं। सभी कालों और युगों में ऐसे साधकों की संख्या कम रही है, परन्तु बांख्या की दृष्टि से कम होने पर भी इन्होंने अपनी पूजनीयता, त्याग चोर तप की अमिट छाप मानवसमाज . पर अंकित की हैं। इन अल्पसंख्यक सायकों ने स्वर्ग के देवों को भी प्रभावित किया है। साहित्य, संस्कृति और तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में यही सावर प्रत्रान रहे हैं और मानवजाति के नैतिक एवं धार्मिक धरातल को इन्होंने सदाचा .. उठाए रखा है। जो अनगार या साधु के धर्म को अपना सकने की स्थिति में नहीं होते, वे अगार धर्म या श्रावकधर्म का पालन कर सकते हैं। यानन्द ने अपने जीवन .. को निश्चत रूप से प्रभु महावीर के चरणों में समर्पित कर दिया । उसने निवेदन किया मैंने वीतरागों का मार्ग ग्रहण किया है, अब मैं सराग मार्ग का त्याग करता हूँ। मैं धर्मभाव से सराग देवों की उपासना नहीं कहेंगा । में सच्चे संयमशील त्यागियों की वन्दना के लिये प्रतिज्ञाबद्ध होता है। जो सावक अपने . . . जीवन में साधना करते-करते, मतिवपरीत्य से पथ से विचलित हो जाते हैं : . . अथवा जो संयमहीन होकर भी अपने को संयमी प्रदशित और घोपित करते हैं, . . - उन्हें मैं वन्दना नहीं करूंगा। ......आनन्द ने संकल्प किया-मैं वीतरागवाणी पर अटलश्रद्धा रखू गा और .. शास्त्रों के अर्थ को सही रूप में समझ कर उसे क्रियान्वित करने का प्रयत्न करूंगा। यदि शास्त्र का अर्थ अपने मन से खींचतान कर लगाग गया तो वह .. अात्मघातक होगा। उसके धर्म को समझने में वाधा उपस्थित होगी। शास्त्र का अध्ययन तटस्थ दृष्टि रखकर किया जाना चाहिए, अपना विशिष्ट दृष्टिकोण

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