Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 426
________________ लोगों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा है। पदार्थ को न पहचानने तथा गुणदोष । को न देखने से भयंकर हानियां होती हैं। नायलोन का कपड़ा पहनकर उसको तासीर को न जानने के कारण सैकड़ों लोग जन्न मरे हैं। आए दिन महिलाओं के जल मरने के समाचार पढ़ने में आते रहते हैं । वस्तु अमुक गुण-धर्मवाली है।... यह खयाल रहे तो मनुष्य हानि से बच सकता है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने · योगशास्त्र में कहा है स्वयं परेण वा ज्ञातं, फल मद्यादिशारदः । निषिद्ध विषकले वा, मा भूदस्य प्रवन नम्। अर्थात्-बुद्धिमान् मनुष्य को उसी फल का भक्षण करना चाहिए जिसे - वह स्वयं जानता हो या दूसरा कोई जानता हो, जिससे निषिद्ध या विपला . ..: फल खाने में न आ जाए। निद्धि फल खाने से व्रतभंग होता है और विषाक्त .. फल खाने से प्राणहानि हो सकती है। .. ... मान लीजिए एक तश्तरी में शिलाजीत और अफीम का टुकड़ा पड़ा ... है । यदि सिलाजीत के बदले अफीम खाली जाये तो सब खेल खत्म हो जाएगा। परन्तु जो शिलाजीत को पहचान कर खाएगा, उसे के इ खतरा नहीं होगा। इसी “ कारण अज्ञान वस्तु खाने का निषेध किया गया है। . तात्पर्य यह है कि क्या ग्राह्य है और क्या अग्राह्य है, यह जानने के लिए - ज्ञान की आवश्यकता है। इसके बिना की जाने वाली क्रिया सफल नहीं होती। .. ... 'ज्ञान नेत्र है तो क्रिया पैर है। नेत्र मार्ग दिखलाएगा, पैर रास्ता तय - करेगा। पाप-पुन्य, वन्ध मोक्ष, जीव-अजीव आदि का ज्ञान मानो नेत्र हैं। इस - ज्ञान को क्रिया रूप में परिणत किया जाय तो यह वरदान सिद्ध होगा। अतएव मच्चा पाराधक वही है जो ज्ञान और क्रिया का समन्वय साध कर अपने : जीवन का उन्नयन करता है। :

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