Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 432
________________ ४२० स्वाभाविक है। रेशमी या अन्य किसी बढ़िया से बढ़िया वस्त्र को कितना ही संभाल कर रक्खा जाय, फिर भी कुछ दिनों में उसका रंग बदल जाएगा या उसमें दाग लग जाएंगे। ...... विषय-कपाय का मूल स्रोत कायम है, अतएव मानव के गड़बड़ाने की संभावना बनी रहती है। किन्तु बातों से या सम्भाषण से काम नहीं चलेगा। अच्छे से अच्छे प्रस्ताव पास कर लेने से भी क्या होना-जाना है ? शासन ... ऊँचा उठेगा क्रियात्मक रूप देने से । पांच वीर यदि व संकल्प के साथ कार्य में :जुट जाएँ तो पांच सौ आदमियों से भी अधिक काम कर सकते हैं। लौकागच्छ के विचारों का देश भर में फैलाव हुआ। सबकी हृत्तंत्री . ... झंकृत होगई। किन्तु प्रत्येक आन्दोलन कुछ समय के पश्चात् मन्द पड़ जाता है, चिन्तनधारा भी घीमी हो जाती है। बीच में यदि कोई प्रभावशाली व्यक्ति उदित हो जाय तो समाज पुनः जागृत हो जाता है। :- महिमा-पूजा के प्रलोभन में या प्रवाह में वहने से साधना विकृत हों जाती है । जो इस चक्कर में पड़ेगा वह पतित हुए बिना नहीं रहता। वह फिसल कर अधोगामी हो जाएगा। राजसन्मान की कामना जब अन्तर में उत्पन्न : हो जाती है तो साधना का सारा चक्र बदल जाता है। - लोकाशाह के पश्चात् क्रियोद्धार के लिए अनेक महात्मा सामने आए और उन्हीं का प्रताप है कि हम वीतरांग की वाणी का लाभ ले रहे हैं । यह.. उन्हीं स्वाध्यायशील महर्षियों के कठिन परिश्रम का फल है। यह समझना बड़ी. .... भूल होगी कि श्रुतरक्षा का भार साघुसमाज पर ही हैं, गृहस्थों पर नहीं । :: सिर्फ श्रमण वर्ग की अपेक्षा संघ, एवं समाज पर श्रृत रक्षण का भार अधिक . है । मुनियों की छोटी-सी टुकड़ी इधर-उचर विखरी है। उनका सर्वत्र पहुँचना .: संभव नहीं है । गृहस्थ वर्ग को वीतराग की वाणी का प्रसार करने की अनेक -सुविधाएं प्राप्त हैं। उसके प्रसार का अर्थ यह है कि जिज्ञासुजनों को श्रुत

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