Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 434
________________ ४२२ । ग्रहस्थ प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों की साधना कर सकता है । वृद्धावस्था में ईश्वर भजन में अधिक समय व्यतीत हो, इस परम्परा को पुनः जीवित । करने की आवश्यकता है। नयी पीढ़ी के जीवन का मोड़ बदलना आवश्यक है। श्रावक वर्ग यदि श्रुतसेवा के मार्ग को अपना ले तो अपने धर्म का पालन : करता हुआ श्रमणों को भी प्रेरणा दे सकता है । ....... स्वाध्याय की ज्योति घर-घर में फैले, लोगों का अज्ञान दूर हो, वे प्रकाश में आएं और आत्मा के श्रेयस् में लगें, यही सैलाना-वासियों को मेरा: सन्देश है।

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