Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ हैं। अगर आप उन फलो का ठीक तरह से उपभोग करेंगे तो अपना जीवन सफल बना लेंगे। एक छोटा सा व्यक्ति भी यदि वस्ती के कार्यों में रस ले तो दूसरे उसका अनुकरण करते हैं । सत्कर्म भी अनुकरणीय हैं। यहां साबुत्रों की वाणी को : सुनने कृपक वन्तु तथा अन्य काम-काजी लोग भी पाए। यदि सत्संग का क्रम ... निरन्तर चलता रहा तो ज्ञान सदा जागृत रहेगा। अाजकोई विशेष नवीन वात नहीं कहनी है, पिछले दिनों कही गई । बातों को ही सामान्य रूप से स्मरण कराना है और उनकी ओर सदा ध्यान रखने की प्रेरणा करनी है। अानन्द का श्रावकमार्ग अापके लिए ज्वलंत उदाहरण बने । उचे कुल में . जन्म लेने मात्र से कोई भक्त या उत्रा नहीं होता, अच्छी करनी करने से भक्त बनेगा और उँचा कहा जाएगा । प्रारंभ-परिग्रह का पाकर्षण अनर्थों का मूल है। इसे नियंत्रित करने का सदैव ध्यान रखना चाहिए। सदैव जीवन को संयममय ... बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। राष्ट्रीय संकटकाल में यदि मानव संयम नहीं रक्खेगा तो देश की महती हानि होगी। प्रदर्शन करने और महलों में सोये पड़े .. रहने के दिन लद गए । अव सादगी, स्वावलम्बन, श्रमशीलता, वैयक्तिक स्वाथ के त्याग, तथा धर्मसाधना के प्रति आदर का युग है । धर्म संजीवनी बूटी के समान सारे ससार के त्रास को नष्ट करने वाला है। धर्म से व्यक्ति, समाज और राष्ट .. का भी कल्याण होगा। .. ... जिसके जीवन में सत्य, सरलता, श्रमशीलता और धर्मनिष्ठा आजाती - है, वह समाज में स्वतः आदरणीय बन जाता है। आनन्द का संयममय जीवन .. दूसरों के लिए अनुकरणीय बन गया। उसने अपने जीवन के साथ अपनी पत्नी ... के जीवन को भी संयम के मार्ग पर चलाया। व्रत ग्रहण कर घर लौटते ही अपनी पत्नी को व्रतग्रहण की प्रेरणा की। पत्नी ने भी भगवान के चरणों में

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443