Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 431
________________ लोकाशाह ने उनके अध्ययन का गृहस्थों के लिए भी समर्थन कियाः । - उन्होंने समाज में फैले विकारों को भी दूर किया जो सम्यग्दर्शन के लिहाज से ... बुरे थे। सामायिक-पौषध को उड़ाने की बात उन्होंने नहीं कहीं, सिर्फ विकारों पर ही चोट लगाई। हम बँधे हैं जिन वचनों से ! जिन वचन के,नामः पर की गई या की जाने वाली स्खलताओं से हम नहीं बँधे हैं । हम महावीर के वचनों से बँधे हैं जिनके लिए. आत्मोत्सर्ग करना अपना सौभाग्य समझेंगे ! ..... - सं० '१५३१ में ५४ जनों के साथ लौंकाशाह दीक्षित हुए। उन्होंने कोई नयी चीज़ नहीं रक्खी, सिर्फ भूली वस्तु की याद दिलाई। भूगर्भशास्त्रवेता - जलधारा को जान कर गांव के पास उस स्त्रोत को ला. सकता है, ऐसी ही बात .. लोकाशाह के प्रति कह सकते हैं। मगर यह भी कोई कम महत्त्व की बात नहीं ... हैं। सोयी जनता को उन्होंने जगाया और कहा कि महात्मा जो कहें सो. मानलें, _. यह ठीक नहीं हैं । हम स्वयं श्रुत की आराधना करें । कवि ने कहा हैकर लो श्रत वाणी का पाठ, .... भविक जन, मन-मल हरने को। । बिन स्वाध्याय ज्ञान नहीं होगी। ज्योति जगाने को। .. . : - राग-रोष की गांठ-गल--नही, ................ . बोधि मिलाने को 1.: . :. - ... जीवादिक स्वाध्यायः से जानो,...... ................. करणी करने को. . = बन्ध-मोक्ष का ज्ञान करो, .... भवभ्रमण मिटाने को ।:: :: लौकाशाह की समाज को सबसे बड़ी देन है- भूली हुई स्वाध्यायवृत्ति - को पुनः जागृत करना। स्वाध्याय के अभाव में जीवन में विकार आजाना .

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