Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 421
________________ [४०६ "" . - बन पड़ता । बीमार कदाचित् खाना न चाहे तो उसके अज्ञान पारिवारिक जन । कुछ न कुछ खा लेने की प्रेरणा करते हैं और खिला कर छोड़ते हैं । इस प्रकार पशु अनशन के द्वारा ही अपने रोग का प्रतीकार कर लेते हैं। - गर्भावस्था में मादा पशु न समागम करने देती है और न नर समागम करने की इच्छा ही करता है । मनुष्य इतना भी विवेक और सन्तोष नहीं रखता। - मनुष्य का प्राज आहार संबंधी अंकुश बिलकुल हट गया है । वह घर में भी खाता है और घर से बाहर दुकानों और खोमचों पर जाकर भी दोने ..: चाटता है । ये वाजारुः चीजें प्रायः स्वास्थय का विनाश करने वाली, विकार ... .. विवर्द्धक और हिसा जनित होने के कारण पापजनक भी होती हैं । दिनों दिनः ... इनका प्रचार बढ़ता जा रहा है और उसी अनुपात में व्याधियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। अगर मनुष्य प्रकृति के नियमों का प्रामाणिकता के साथ अनुसरण करे और अपने स्वास्थ्य की चिन्ता रक्खे तो उसे डाक्टरों की शरण में जाने - की आवश्यकता ही न हो। ::":. ........................ .अनेक प्रकार के दुर्व्यसनों ने आज मनुष्य को बुरी तरह घेर रक्खा है । - केंसर जैसा असाध्य रोग दुर्व्यसनों की बदौलत ही उत्पन्न होता है और वह । प्रायः प्राण लेकर ही रहता है। अमेरिका आदि में जो शोध हुई है, उससे स्पष्ट :... हैं कि धूम्रपान इस रोग का प्रधान कारण है। मगर यह जान कर भी लोग . सिगरेट और वीड़ी पीना नहीं छोड़तेः। उन्हें मर जाना मंजूर है मगर दुर्व्यसन .. से बचना मंजूर नहीं। यह मनुष्य के विवेक का दीवाला नहीं तो क्या है ! क्या .. इसी विरते पर वह समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करता है ? ..... प्राप्त विवेक-बुद्धि का इस प्रकार दुरुपयोग करना अपने विनाश को आमंत्रित करना नहीं तो क्या है ? ... ... ......... लोंग, सोंठ आदि चीजें औषध कहलाती हैं । तुलसी के पत्त भी औषध में सम्मिलित हैं। तुलसी का पौधा घर में लगाने का प्रधान उद्देश्य स्वास्थ्य

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