Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 352
________________ - . ..... . ३४० ... गुरु ने शान्ति और वात्सल्य से समझाया कि-संलेखना करने का अर्थ कषाय को त्याग करना है। काय का त्याग करने पर भी कषाय का त्याग किये बिना अात्महित नहीं होता। .. .... - शिष्य समझ गया। उसे अपनी भूल मालूम होगई। वास्तव में मृत्युकलाविद् वही है जो वीतराग दशा में सम्भाव पूर्वक शरीर का. उत्सर्ग करता है ! कषाय को कृश करना संलेखना है । कषाय को कुश कर देने पर मृत्यु का अनिष्ट रुप नहीं रह जाता । उस समय मृत्यु कलात्मक मृत्यु बन जाती है, जिसे समाधिमरण कहते हैं । हजारों-लाखों में कोई विरला ही व्यक्ति समाधिमरणं का अधिकारी होता है । अधिकांश लोग तो कषायों से ग्रस्त.. होकर हाय हाय करते ही मरते है। जिनका जीवन साधना में व्यतीत हुआ, जिन्होंने काले कारनामों से अपना मुंह मोड़ लिया या जिनके जीवन में उज्ज्वलता रही,उन्हीं को मृत्यु सुधार का अवसर मिलता है। उनकी भूमिका तैयार हैती है, अतएव कोई गड़बड़ पैदा कर देने वाला निमित्त न मिल गया तो उनकी मृत्यु सुधर जाती है। परीक्षा में उत्तीर्ण होना या अनुत्तीर्ण होना तीन घंटे के कतृत्व पर निर्भर है। जिसने तीन घंटों में सही-सही उत्तर लिख दिये उसे सफलता अवश्य मिलती है। मगर सही उत्तर वही लिख सकेगा जिसने पहले अभ्यास कर रक्खा हो पूर्वाभ्यास - के अभाव में केवल तीन घंटे के श्रम से उत्तीर्णता प्राप्त करना संभव नहीं हैं। इसी प्रकार समाधिमरण भी एक कठोरं परोक्षा हैं। इसमें उत्तीर्ण होने के लिए जीवन व्यावी अभ्यास की आवश्कता है। अतएव जो अपनी मृत्यु को सुधारना चाहते हों उन्हें अपना जीवन सुधारना होगा । जीवन को सुधारे बिना मृत्यु को सुधारने की आशा रखने वालों को निराश होना पडेगा। . .. आई. ए. एस. सी. परीक्षाओं में साक्षात्कार-परीक्षा भी होती है। .. उसमें प्रत्येक प्रत्याशी को संक्षिप्त मौखिक परीक्षा देनी पड़ती है जिसे अंग्रेजी .... .... . :

Loading...

Page Navigation
1 ... 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443