Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 368
________________ विराट जैन दर्शन श्राचारांग सूत्र में अत्यन्त गम्भीरता और स्पष्टता के साथ साधक की जीवनचर्या का चित्ररण किया गया है। उसमें श्रान्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार की चर्चाएं श्रत्यन्त भावपूर्ण शैली में निरूपित की गई हैं। पहले बतलाया जा चुका है कि सदाचार का मूल ग्राधार अहिंसा है । ग्रहिसा श्राचार: का प्राणतत्व है। जहां ग्रहिंसा है वहां सदाचार है और जहां ग्रहिंसा नहीं वहां सदाचार नहीं । श्राचारांग में दर्शाया गया है कि जीवों के प्रति श्रमैत्री भाव तथा श्रनात्म बुद्धि श्रात्मा को भारी बनाने वाली चीजें हैं। हिंसक जब ग्रन्य जीवों का हनन करता है तो ग्रानी भी हिंसा करता है । पर हिंसा के निमित्त से श्रात्महिसा श्रवश्य होती है। अगर श्राप गहराई से सोचेगें तो समझ जायेंगे । भगवान् महावीर ने कहा है- हे मानव ! संसार के सभी प्राणियों को जीवन प्रिय है, सुख प्रिय है और दुःख प्रिय है । अतएव किसी जीव पर कुठाराघात करना अपने ही ऊपर कुठाराघात करना है । अपनी श्रात्मा में कषाय का भाव जागृत करने से बड़ी श्रात्महिंसा क्या हो सकती है ? अतएव सभी प्राणियों को श्रात्मवत् समझना चाहिए । संसार के विविध व्यापार - प्रारम्भ समारम्भ करने वाला पूरी तरह हिंसा से नहीं बच सकता, तथापि दृष्टि को शुद्ध रखना चाहिए । दृष्टि को 3:

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