Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 309
________________ २६७ . इतने विवेचन से आप समझ गए होंगे कि मूल पाप हिंसा है। असत्य, स्नेह आदि उसकी शाखाएं अथवा प्रशाखाएं हैं। शास्त्रकार अत्यन्त दयालु " और सर्वहितकारी होते हैं। वे तत्त्व को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि सभी - स्तरों के मुमुक्षु साधक उसे हृदयंगम कर सकें और जो आचरण करने योग्य है उसे आचरण में ला सके। अतएव आचरण की सुविधा के लिए विभिन्न व्रतों का पृथक-पृथक नामकरण किया गया है। अणुव्रतों, गुणवतों और .. शिक्षाव्रतों का एक मात्र लक्ष्य यही है कि पाराधक असंयम से बच सके और - स्वात्म रमण की ओर अग्रसर हो सके। ......... .... इसी उद्देश्य से यहां भी व्रतों और उनके अतिचारों का विवेचन किया .. जा रहा है। ये सभी व्रत आत्मा का पोषण करने वाले हैं, अतएव पोषध हैं, किन्तु पोषध शब्द ग्यारहवें व्रत के लिए रूढ़ है। . अंष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या, यह विशिष्ट दिन,(पर्व) समझे जाते हैं। इनमें उपवास प्रादि तपस्या करना, समस्त पाप-क्रियाओं का परिहार करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और स्नान आदि शारीरिक शृंगार का त्याग करना पोषधव्रत कहलाता हैं। इसे 'पोषधोपवास' भी कहते - है। 'पोषध' और 'उपवास' इन दो शब्दों के मिलने से 'पोषधोपवास' शब्द ... निष्पन्न होता हैं । 'उप-समीपे वसनं उपवासः' अर्थात् अपनी आत्मा एवं परमात्मा के समीप वास करना और सांसारिक प्रपंचों से विरत हो जाना . उपवास कहा गया है । खाना-पीना आदि क्रियाओं में समय नष्ट न करके - त्यागभाव से रहना, अपने स्वभाव के पास आना है । राग-द्वेष की परिणति ... से रहित होकर अपने स्वभाव में रमण करने का यह अभ्यास है। उपवास का __स्वरूप बतलाते हुए कहा है-. ........ ........ . . . . . . ..... . कषायविषयाहारत्यागो यत्र विधीयते । :: :: :: उपवासः स विज्ञयः, शेषं लङ्घनकं विदुः ॥' . .. क्रोध प्रादि कषायों का, इन्द्रियों के विषयों के सेवन का और आहार

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