Book Title: Jinabhashita 2002 05
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनभाषित वीर निर्वाण सं. 2528 हस्तिनापुर तीर्थ दोनों पूजापद्धतियाँ आगमसम्मत पाउचों की सुन्दरता में मीठा जहर पान मसाला वैशाख, वि. सं. 2059 मई 2002 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजि. नं. UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2002 मई 2002 বিবাড়ির मासिक वर्ष 1, अङ्क 4 सम्पादक डॉ. रतनचन्द्र जैन अन्तस्तत्त्व कार्यालय 137, आराधना नगर, भोपाल-462003 (म.प्र.) फोन नं. 0755-776666 . आपके पत्रः धन्यवाद . सम्पादकीय : दोनों पूजापद्धतियाँ आगमसम्मत लेख • जैनधर्म की ऐतिहासिकता : कैलाश मड़वैया सहयोगी सम्पादक पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया पं. रतनलाल बैनाड़ा डॉ. शीतलचन्द्र जैन डॉ. श्रेयांस कुमार जैन प्रो. वृषभ प्रसाद जैन डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' . जैन जीवनदर्शन और समाज : डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका • पाउचों की सुन्दरता...... . : श्रीपाल जैन 'दिवा' . जिज्ञासा समाधान : पं. रतनलाल बैनाड़ा ग्रन्थ समीक्षा : महायोगी महावीर : कपूरचन्द्र बंसल शिरोमणि संरक्षक श्री रतनलाल कँवरीलाल पाटनी (मे. आर.के.मार्बल्स लि.) किशनगढ़ (राज.) श्री गणेश राणा, जयपुर व्यंग्य : लो मैं आ गया : शिखरचन्द्र जैन प्राकृतिक चिकित्सा : स्वास्थ्य-सौन्दर्य नाशक मोटापा संस्मरण : अतीत के झरोखे से द्रव्य-औदार्य श्री गणेशप्रसाद राणा जयपुर : डॉ. रेखा जैन : डी.सी. जैन वैराग्य भावना : अर्थ : ब्र. महेश कविताएँ प्रकाशक सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) फोन : 0562-351428, 352278 .वसुधैव कुटुम्बकम् : आचार्यश्री विद्यासागर जी 1 नम्बर दो : सरोजकुमार : अशोक धानोत्या 13 गुरुवर सुधासागर • राजुल गीत • तुम जैसा ही बन जाऊँ : श्रीपाल जैन 'दिवा' 19 सदस्यता शुल्क शिरोमणि संरक्षक 5,00,000 रु. परम संरक्षक 51,000 रु. संरक्षक 5,000 रु. आजीवन 500 रु. वार्षिक 100 रु. एक प्रति 10 रु. सदस्यता शुल्क प्रकाशक को भेजें। : डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' : लालचन्द्र जैन 'राकेश' • उड़ गई सोनचिरैया • सूरज की कोई परिपाटी : अशोक शर्मा 25 समाचार 9, 25-32. आवरण 3 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमोऽस्तु वसुधैव कुटुम्बकम् नम्बर दो सरोज कुमार नम्बर दो की कमाई से मंदिर नहीं बनना चाहिए, मेरे ये विचार सुन चौधरी उत्तेजित हो गया। आचार्य श्री विद्यासागर जी 'वसुधैव कुटुम्बकम्' इस व्यक्तित्व का दर्शन स्वाद-महसूस इन आँखों को बोला, भाई साहब नम्बर दो का पैसा कमाना सरल काम नहीं है सारी आँखों से बचाकर सारे कानूनों से छिपाकर गुपचुप में, चुपचुप में करिश्में से कमा पाता है कोई नम्बर दो। सुलभ नहीं रहा अब ....! यदि वह सुलभ भी है तो भारत में नहीं, महा-भारत में देखो! भारत में दर्शन स्वारथ का होता है। फिर वह मेरी और हिकारत से कुछ इस तरह देखता रहा मानो कह रहा होये दो कौडी का मास्टर हाँ-हाँ! इतना अवश्य परिवर्तन हुआ है कि क्या खाक समझेगा, क्या होता है नम्बर दो। "वसुधैव कुटुम्बकम्' इसका आधुनिकीकरण हुआ है वसु यानि धन-द्रव्य फिर बोलाआप तो माट्साब, बस उत्तर पुस्तिकाओं में नम्बर दो..... । धन ही कुटुम्ब बन गया है धन ही मुकुट बन गया है जीवन का। 'मनोरम' 37, पत्रकार कालोनी, इन्दौर (म.प्र.)-452001 'मूकमाटी' महाकाव्य से साभार -मई 2002 जिनभाषित । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपके पत्र, धन्यवाद सुझाव शिरोधार्य 44 सामाजिक परिवेश के साथ जैन धर्म दर्शन की अनूठी में। कविवर को मेरा प्रणाम । छाप लिए 'जिनभाषित' पत्रिका के जनवरी तथा मार्च 2002 अंक प्राप्त हुए। दोनों ही अंक सुरुचिपूर्ण, तथ्यात्मक पाठनीय सामग्री से ओतप्रोत हैं। " शंका-समाधान" स्तम्भ एक अत्यन्त अनूठा एवं ज्ञानवर्धक प्रयास है। सम्पादकीय कथन/लेख, साहसिक, अत्यधिक रोचक एवं धार्मिक टिप्पणियों से लबालब है । आपके तथा सभी सम्पादक बन्धुओं के मार्गदर्शन से पत्रिका में निरन्तर निखार आ रहा है। साहित्यिक रचनाएँ इसमें मोती के समान प्रतिबिम्बित जान पड़ती है। पत्रिका की निरन्तर उन्नति में आप सभी का योगदान प्रशंसनीय है। आप सभी को बधाई। डॉ. रश्मि जैन प्रवक्ता हिन्दी, 52/12, लेबर कालोनी, फिरोजाबाद- 283203 (उ.प्र.) 'जिनभाषित' मुझे नियमित रुप से प्राप्त हो रहा है। लगभग सभी अङ्कों में सम्पादकीय लेख अत्यधिक ज्ञानवर्धक होते हैं। अन्य लेखों का भी स्तर काफी अच्छा पाया। इन सबके लिए बधाई । 'जिनभाषित' पत्रिका साहित्य की सभी विधाओं को अपने में समेटे हुए जनमानस तक पहुँच रही है। सभी ने सराहा फरवरी 2002 के अंक में छपी एक ऐसे अनूठे व्यक्तित्व (पूज्य क्षमासागर जी) की कविता 'एहसास को, जिसने पूरे जैन जगत को अपनी आत्मीयता की डोर में पिरो लिया है कि 2 डी.सी. जैन ई-2/162, अरेरा कॉलोनी, भोपाल (म. प्र. ) -462016 संवेदनाओं ने मुझे जहाँ से छुआ, मैं वहीं से पिघलता चला गया कोई चाहे जो सोचे पर यह तो एक एहसास था । सच तो यह है कि जो व्यक्ति जितना संवेदनशील होगा, आत्मीयता भी उसी की धरोहर होगी । मेरे बारम्बार नमन इन चरणों को । सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री सरोजकुमार जी की कविताएँ प्रत्येक अङ्क में पढ़ रही हूँ" मंदिर में मुनियों को वंदना करते देखकर" कविता तो पाठक को भक्ति रस में डुबो देती है कि भक्ति और सिद्धि के रंग आपस में मिलकर, रंगारंग इन्द्रधनुष बन गये थे । भाव, भक्ति और शब्दों का अद्भुत समन्वय है, इस कविता मई 2002 जिनभाषित अरुणा जैन C 2/20/2:4, Sec. 16, वाशी नगर, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र ) | 'जिनभाषित' पत्रिका मुझे प्राप्त हो रही है जिसके लिये मैं आप सबका अत्यन्त आभारी हूँ। पत्रिका में जो भी सामग्री आप प्रकाशित कर रहे हैं, वह आवश्यक एवं प्रेरणादायक होती है। इसके लिये आप सभी बधाई के पात्र है । भगतराम जैन 3/50, गली मामन जमादार, पहाडी धीरज, दिल्ली-6 जिनभाषित मार्च 2002 अंक मिला। पृष्ठ 23 पर प्रकाशित 'अहिंसा' शीर्षक श्रेष्ठ पुस्तक पर 51000/- के पुरस्कार की घोषणा के विज्ञप्ति बिन्दु पर ध्यानाकर्षित करना चाहूँगा, जिसमें उल्लेखित है कि पुस्तक के प्रकाशन वितरण व अन्य भाषाओं में अनुवाद के सम्पूर्ण अधिकार समिति के होंगे और लेखक को कोई रायल्टी नहीं दी जाएगी। जरा सोचिए ! 51000/- का यह घोषितं पुरस्कार पारिश्रमिक हुआ या पुरस्कार! यह तो लेखक का शोषण है। ऐसी प्रवृत्ति के कारण ही आज तक हमारा समाज अहिंसा विषयक कोई स्तरीय कृति उपलब्ध नहीं करा सका, जिसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर तो क्या, राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हो । जैन समाज से अपेक्षा है कि इस प्रकार लेखक का शोषण करने की प्रवृत्ति को लगाम दे और अहिंसात्मक भावना के अनुरूप पहल करते हुए पुरस्कार दे । पुस्तक की रायल्टी प्राप्त करना लेखक का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी प्रकार ब्र. महेश जैन का लेख 'आहार दान की विसंगतियाँ ' संदर्भित समस्या को उजागर तो करता है, परन्तु यह आहार व्यवस्था मूलतः धन पर निर्भर है और वह धन कैसा होना चाहिए. इस पर लेखक ने टिप्पणी नहीं की। परम्परानुसार न्यायोपात्त धन से आहार व्यवस्था होनी चाहिए, जिसका आज प्रायः अभाव है । विसंगतियों के समाधान के प्रसंग से यह भी ध्वनित होता है कि श्रमण संघ ग्रामोन्मुखी हों, परन्तु आज तो शहरीकरण की आँधी में ग्राम भी शहर की तरह हो रहे हैं, तो क्या श्रमणों को वन-वासी होना चाहिए? ऐसी स्थिति में उनकी आहारचर्या की व्यवस्था किस प्रकार होगी ? यह यक्ष प्रश्न है, जिसका समाधान होना चाहिए। पत्रिका अपने उद्देश्य में सफल है । सुभाष जैन, वीर सेवा मंदिर, जैन दर्शन शोध संस्थान, 21, दरियागंज, नई दिल्ली- 110002 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'जिनभाषित' पत्रिका का एक अङ्क अनायास देखकर आत्मा । के साथ-साथ विमर्श को आधार देती है। इस अंक का सम्पादकीय की आवाज पर मैं इसका आजीवन सदस्य बन गया। इसके प्रत्येक | समाज के यथार्थ का चित्रण करता है, यह प्रयास सराहनीय है। अंङ्क में धर्ममय विषयसामग्री, ज्ञानवर्धक व उपयोगी लेख के | लोग ऐसे लेख पढ़कर स्वयं का आकलन करें और सही मार्ग पर साथ-साथ आचार्यों, मुनियों व विद्वानों के लेख पढ़ने को मिलते | आ जाएँ तो हमारे लेखन की सार्थकता बढ़ेगी। हैं। इसी कारण यह पत्रिका हमारे परिवार में सभी को अत्यधिक पत्रिका में प्रकाशित लेखों की समीक्षा के रूप में पाठकों प्रिय है एवं यह आत्मकल्याण में सहायक सिद्ध हो रही है। की ओर से प्रकाशित सुझावों को भी गंभीरतापूर्वक स्वीकार कर सि. हुकुमचन्द्र जैन 'कंचन' | आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें ऐसे विचारवान् पाठकों से सिंघई सदन, दुबे चौक, यह आग्रह भी करना चाहिए कि वे न केवल चिंता प्रकट करें, मऊरानीपुर (झाँसी) अपितु एक कदम आगे बढ़ाते हुए सार्थक प्रयास भी करें । समाज 'जिनभाषित ' मार्च 2002 अङ्क बहुत अच्छा लगा। वैसे सुधार की प्रक्रिया जटिल और संघर्षपूर्ण होती है। लोकमान्यता के तो प्रत्येक अङ्क ही अपने आप में जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कहे गए अनुरूप चलने में कोई कष्ट नहीं होता, लेकिन धारा के विपरीत वचनों की गौरवगाथा के रूप में उपस्थित होता है, किन्तु इस अङ्क बहने में शक्ति ज्यादा लगना स्वाभाविक है। आज का समाज में प्रकाशित मुनिश्री समतासागरजी द्वारा रचित 'भक्तामर दोहानुवाद' सबके साथ चलने का हामी हो गया है, चाहे लोग गलत मार्ग पर वास्तव में एक अनुपम रचना है। युगों पूर्व पूज्य मुनिश्री मानतुंगाचार्य ही क्यों न चल पड़े हों। संत कबीर की वाणी में इसे 'भेड़चाल' द्वारा रचित 'भक्तामर स्तोत्र' का सामान्यजन की भाषा व प्रचलित कह सकते हैं। इस प्रक्रिया का अंत यदि समझ लें, तो नये विचार शैली में दोहानुवाद करना एक महान् कार्य है। जैसा कि आपने की प्रक्रिया शुरु होती है। लिखा है कि दोहों में तुलसी, रहीम, भूधरदास आदि के व्यक्तित्व आपने 'जिनभाषित' को बहुआयामी बनाने का प्रयास की झलक मिलती है और गागर में सागर भरने के समान इसमें किया है। अन्य पत्रिकाओं के मुकाबले में आज एक ऐसी विचारवान भावों व हृदय के उद्गारों को सहज रूप में ही प्रकट किया गया पत्रिका की आवश्यकता थी। यद्यपि अभी हम सम्यक् रूप से समाज का विश्लेषण करने और सभी को एकसूत्र में बाँधने का इस अनुपम व अनमोल रचना के लिये मुनिश्री के चरणों सार्थक तरीका खोज पाने में सफल नहीं है, फिर भी आशा की में वारंवार वंदन एवं प्रकाशन हेतु आपको भी अनेकानेक धन्यवाद । जानी चाहिए कि शनैःशनै हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। पत्रिका में परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी का प्रवचन 'ममकार पत्रिका में प्रकाशित आचार्यश्री के प्रवचनों को पढ़ा है। और अहंकार छोडने का नाम है दीक्षा' एवं मूकमाटी के अंश आचार्यश्री स्वयं कहते हैं-"पंचकल्याणक राग-रंग के लिए नहीं, 'सही पुरुषार्थ' भी. पठनीय व जीवनोपयोगी हैं। वीतरागता के लिए होने चाहिए।" हमें यह चिंतन करना ही होगा पत्रिका का सम्पादकीय आज के भौतिक युग में बदलते कि क्या हम आचार्यश्री की भावना के पोषण की ओर बढ़ रहे हैं पारिवारिक परिवेश के वातावरण में चिंता की दिशा प्रदान करता या पंचकल्याणक वाहवाही के प्रतीक बन गये हैं, राशि संग्रहण है। वास्तव में आधुनिक रहन-सहन व सामाजिक वातावरण में के माध्यम बन गये हैं, समाज में प्रतिष्ठा के प्रतिरूप बन गये हैं, जिनधर्म ही हमारा सच्चा हितैषी हो सकता है। इस कार्य में लोकरंजन को प्रदर्शित करते हैं। यही वह बिन्दु है, जहाँ हमें पुनः 'जिनभाषित' पत्रिका ही हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। सुन्दर कबीर वाणी को सामने रखना होगा कि-"एक गिरा ज्यों खाँड में, प्रकाशन व उपयोगी सामग्री के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। सबै ताहिं गिर जाएँ।" आचार्यश्री ने भ्रूणहत्या (गर्भपात) की रोहित कुमार जैन ओर चिंता प्रकट की है-क्या हमारा ध्यान इस ओर है? असल में १, द्वारिका पुरी, इन्द्रा नगर, लखनऊ (उ.प्र.) | हम सुनते आचार्य श्री की है, पर करते मनमानी है। यही विसंगति पत्रिका का फरवरी 02 अंङ्क पढ़ा। सामग्री पठनीय होने दामोदर जैन टीकमगढ़ (म.प्र.) ज्ञानदीप तपतेल भर, घर शोधे भ्रम छोर। या विध बिन निकसें नहीं पैठे पूरब चोर ॥ धनकनकंचन राजसुख, सबहिं सुलभकर जान। दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान ॥ जाँचे सुरतरु देय सुख, चिन्तत चिन्ता रैन। बिन जाचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन । -मई 2002 जिनभाषित 3 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय वर्तमान में जैनधर्म में दो पूजा पद्धतियाँ प्रचलित हैं। एक में जनप्रतिमा के समक्ष सचित्त पुष्प, सचित फल और पक्वान्न चढ़ाए जाते हैं, प्रतिमा पर चन्दनलेप किया जाता है, दीप प्रज्वलित कर आरती की जाती है और भगवान् के सामने सुगन्ध उत्पन्न करने के लिए अग्नि में धूप जलाई जाती है। दूसरी पूजापद्धति में सचित्त पुष्पों के स्थान पर चावल, सचित्त फलों के स्थान पर सूखे नारियल और मेवे अर्पित किये जाते हैं। पक्वान्न के स्थान में नारियल की सफेद चिटकें और दीप के स्थान में पीली चिटकें चढ़ायी जाती हैं। अग्नि में धूप जलाने का निषेध है। यह अन्य द्रव्यों के समान थाली में ही अर्पित की जाती है अथवा उसके स्थान में लौंग चढ़ाने का विधान है। वर्तमान में पहली पूजापद्धति बीसपन्थी पूजापद्धति के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरी तेरहपन्थी पूजापद्धति के नाम से। तेरहपन्थ और बीसपन्थ ये दोनों नाम किसी भी जैनशास्त्र में उपलब्ध नहीं है। ये हिन्दी भाषा के शब्द हैं और आज से चारसौ वर्ष पहले जब आगरा के प्रसिद्ध जैन विद्वान पं. बनारसीदास जी ने पहले प्रकार की पूजापद्धति का विरोध कर दूसरे प्रकार की पूजापद्धति प्रचलित की थी, तब से प्रसिद्ध हुए हैं। (देखिएसिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री-कृत 'जैनधर्म' पृष्ठ ३०४) । आज इन पूजापद्धतियों को लेकर जैनों में गहरा मतभेद दिखाई देता है। वे दो पन्थों में विभाजित हो गये हैं और दोनों एक-दूसरे की पूजापद्धति को गलत और आगमविरुद्ध कहते हैं तथा पूजापद्धति की भिन्नता के कारण एक-दूसरे को अस्पृश्य सा समझते हैं। दोनों पूजापद्धतियाँ आगमसम्मत यह स्थिति चिन्तनीय है और जिनतीर्थ तथा जैनसंघ के लिए शुभ संकेत देनेवाली नहीं है। वस्तुतः दोनों पूजापद्धतियाँ आगमसम्मत हैं और जिस पद्धति को बीसपन्थी नाम दिया गया है, उसी का समस्त जैनशास्त्रों (श्रावकाचारों और पुराणों) में विधान है। छठी शताब्दी ई. के तिलोयपण्णत्ति नामक ग्रन्थ के पंचम महाधिकार में लिखा है कि अष्टाह्निका पर्व में देवगण नन्दीश्वर द्वीप में जाते हैं और विविध प्रकार से जिनप्रतिमाओं की पूजा करते हैं। पहले सुवर्णकलशों में भरे हुए सुगन्धित जल से उनका अभिषेक करते हैं, पश्चात् कुंकुम, कर्पूर, चन्दन, कालागरु और अन्य सुगंधित द्रव्यों से उनका विलेपन करते हैं कुंकुमकप्पूरेहिं चंदणकालागरूहि अण्णेहिं । ताणं विलेवणाई ते कुब्वंते सुगंधगंधेहिं ॥१०५ तिलोयपण्णत्ति (पंचम महाधिकार) में यह भी लिखा है कि देव सेवन्ती, चम्पक, पुन्नाग, नाग आदि के पुष्पों की सुगंधित मई 2002 जिनभाषित 4 मालाओं, अनेक प्रकार के रसमय भोज्य पदार्थों, दिग्मण्डल को सुगंधित करने वाली धूपों तथा दाख, अनार, केला, नारंगी, मातुलिंग, आम आदि पके हुए फलों से जिन प्रतिमाओं को पूजते हैं। यथासयवंतराय चंपय माला पुण्णागणाग पहुदीहिं अच्यंति ताओ देवा, सुरहीहिं कुसुम-मालाहिं ॥ १०७ बहुविहरसवंतेहिं वरभक्खेहिं विचित्तरूवेहिं । अमयसरच्छेहिं सुरा जिणिंद-पडमाओ महयंति ॥१०८ वासिददियंतरेहिं कालागरूपमुह विविधधूवेहिं । परिमलिदमंदिरेहिं महयंति जिनिंदबिंबाणि ॥११० दक्खा दाडिमकदली-णारंगयमाहुलिंग चूदेहिं । अण्णेहिं पक्केहिं फलेहिं पूजति जिणणाहं ॥ १११ आचार्य समन्तभद्र ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में बतलाया है कि एक मेंढक बावड़ी से कमलपुष्प लेकर, समवशरण में विराजमान भगवान् महावीर की पूजा करने के लिए जा रहा था । रास्ते में हाथी के पैर से दब जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई, किन्तु पूजानुराग से अर्जित पुण्य के प्रभाव से वह सौधर्म स्वर्ग का महाऋद्धिधारी देव बन गया (४ / ३०) गुणभद्रकृत उत्तरपुराण (९वीं शताब्दी ई.) में वर्णन है कि जीवन्धरकुमार क्षेमदेश के 'क्षेम' नामक नगर में पहुँचे। वहाँ उन्होंने जैनमन्दिर के समीपवर्ती सरोवर में स्नान किया और सरोवर में उत्पन्न हुए बहुत से फूल लेकर जिनेन्द्र भगवान् की पूजा की तद्विलोक्य समुत्पन्नभक्तिः स्त्रानविशुद्धिभाक् । तत्सरोवरसभ्भूतप्रसवैर्बहुभिर्जिनान् ।। ७५/४०९ अभ्यर्च्यायैर्मुदाव्यग्रमस्तोष्टेष्टैरभिष्टवैः । सुता तत्र सुभद्राख्य श्रेष्ठिनो निर्वृते सा ॥ ७५/४१० वीरसेन स्वामी ने जयधवलाटीका में कहा है कि यद्यपि चौबीसों तीर्थंकर हिंसा के कारणभूत दानपूजादि श्रावकधर्म का उपदेश देते हैं, क्योंकि जिनप्रतिमा का स्नपन, अवलेपन, सम्मार्जन, पुष्पारोपण, धूपदहन आदि जीववध की कारणभूत क्रियाओं के बिना पूजा संभव नहीं है, तथापि उन्हें कर्मबन्ध नहीं होता, क्योंकि उनके मिध्यात्व असंयम और कषाय का अभाव होता है 66 " ण्हवणोपलेवण-संमज्जण- छुहावणा- फुल्लारोवणधूवदहणादिवावारेहि जीववहाविणा भावीहि विणा पूजाकरणाणुववत्तीदो च।" ( जयधवलासहित कसायपाहुड, भाग १, पृष्ठ ९१ ) सचित्त पुष्प फलों का पूजा में प्रयोग करने से जीवहिंसा होती है, किन्तु आचार्य समन्तभद्र ने कहा है कि हिंसा अल्प होती है, पुण्यबन्ध अधिक होता है, अतः पूजा से लाभ ही है, हानि " - - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं-'सावद्यलेशो बहपुण्यराशौ' (स्वयम्भूस्तोत्र)। जैसे मेंढक | बरफी चढ़ाने की परम्परा बीसपन्थी पूजापद्धति का अनुसरण है। भगवान् की पूजा के लिए कमलपुष्प तोड़कर ले जा रहा था, इससे | तथा दीपक के रूप में नारियल की पीली चिटकें भी समर्पित करते उसे हिंसा का पाप लगा होगा, किन्तु पुण्यबन्ध इतना अधिक हुआ | हैं और वास्तविक दीपक भी जलाते हैं, उससे आरती भी करते हैं। कि वह उसके प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग का महाऋद्धि-घारी देव हो | वास्तविक दीपक जलाना बीसपन्थी पूजापद्धति है। इसी प्रकार गया। धूपपूजा का सम्पादन धुली हुई धूप या लौंगों को थाली में चढ़ाकर इस तरह जिस सचित्तपुष्पादि से पूजा करने को बीसपन्थी | भी करते हैं और अग्नि में घूप प्रज्वलित करके भी। अग्नि में धूप पूजापद्धति नाम दिया गया है, वह आगमोक्त है। प्रज्वलित करना बीसपन्थी पूजापद्धति का अनुसरण है। यहाँ तक किन्तु आगम में यह वचन भी नहीं है कि सचित्त-पुष्पादि | कि जो द्यानतरायजी आदि द्वारा रचित पूजाएँ पढ़ी जाती हैं, वे ही पूजा की एकमात्र सामग्री है। भक्ति की अभिव्यक्ति अचित्त | बीसपन्थी पद्धति की ही हैं, क्योंकि उनमें सचित्त पुष्पादि एवं द्रव्यों के अर्पण से भी हो सकती है। इससे यह लाभ है कि पुण्य | मिष्टान्न आदि चढ़ाए जाने का ही वर्णन है। यथा, 'लहि कुन्द तो उतना ही अर्जित होगा, जितना सचित्तपूजा से हो सकता है, | कमलादिक पहुप...', 'नैवेद्य करि घृत में पचूँ...' इत्यादि। किन्तु हिंसा का पाप अल्प से अल्पतम हो जायेगा। इसीलिए आज | इस प्रकार जब तेरहपन्थी पूजापद्धति में भी बीसपन्थी का से चार सौ वर्ष पहले आगरावासी पं. बनारसीदास जी के उद्बोधन | मिश्रण है, तब बीसपन्थी पूजापद्धति का अनुसरण करनेवालों को से जैनों के एक वर्ग ने सचित्तपूजा, पक्वान्नपूजा, जिन प्रतिमा पर | दोष कैसे दे सकते हैं? और जब उसका विधान सभी श्रावकाचारों चन्दनविलेपन, दीपप्रज्वलन, धूपदहन आदि का परित्याग कर | और पुराणों में है, तब वह आगमविरुद्ध, दोषपूर्ण और हेय कैसे दिया और इसके स्थान पर पीताक्षतों, सफेद एवं पीली चिटकों, । कहला सकती है? गीली धूप एवं सूखे फल तथा मेवों से पूजा की जाने लगी। इस निष्कर्ष यह कि बीसपन्थी और तेरहपन्थी दोनों पूजापद्धतियाँ परिवर्तन के कारण पं. बनारसीदास जी का चलाया पन्थ पहले आगमानुकूल हैं। पं. सदासुखदासजी ने भी कहा है-'दोऊ प्रकार वाणारसीमत, और बाद में तेरहपन्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आगम की आज्ञा प्रमाण सनातन मार्ग हैं। अपने भावनि के अधीन ('जैनधर्म', पृष्ठ ३०४, सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री)। पुण्यबन्ध के कारण हैं।' (रत्नकरण्डश्रावकचार, हिन्दी टीका, तेरहपन्थी पूजापद्धति जैनधर्म के प्राणभूत अहिंसा-सिद्धान्त के अनुरूप है, अतः यह भी जिनागमसम्मत है। कारिका 119) अत: दोनों में से किसी भी पूजा पद्धति को दोषपूर्ण किन्तु वर्तमान में तेरहपन्थी जैन, शुद्ध तेरहपन्थी पद्धति के | और आगमविरुद्ध बताना उचित नहीं है। तेरहपन्थियों का बीसपन्थी अनुसार पूजा नहीं करते। उनकी पूजापद्धति में बीसपन्थी पूजापद्धति पूजा पद्धति अपनानेवालों को अस्पृश्य समझना अथवा बीसपन्थियों की मिलावट है। उदारणार्थ, वे नैवेद्य के रूप में नारियल की | का तेरहपन्थियों को अछूत मानना और परस्पर निन्दा-आक्षेप चिटकें भी चढ़ाते हैं और तीर्थंकरों के निर्वाणदिवस पर बूंदी के | करना तथा अमैत्रीभाव रखना जिनतीर्थ और जैनसंघ के हित के लड़ या शक्कर की बरफी बना कर भी चढ़ाते हैं। यह लड्डु या | विरुद्ध है। रतनचन्द्र जैन • विश्वास दिलाया जा सकता है, पर रास्ता तो स्वयं को तय करना है। आस्था मस्तिष्क में नहीं, हृदय में जमती है। अतः हमारी आस्था का केन्द्र ज्ञान-सम्पन्न मस्तिष्क नहीं, बल्कि भावना-सम्पन्न हृदय होता है। स्वार्थ की बू आते ही वर्षों का जमा हुआ विश्वास खिसकने लगता है। किसी पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपने आपको श्रद्धेय के प्रति सौंप देना ही समर्पण है। आचार्यश्री विद्यासागर : 'सागर बूंद समाय' से साभार -मई 2002 जिनभाषित 5 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म की ऐतिहासिकता कैलाश मड़वैया आज जब इतिहास से छेड़खान विषयक विवाद गहराया । था। दान पत्र पर पश्चिमी एशियाई नरेश की मुद्रा भी अंकित है। हुआ है, तब कुछेक जगह तो सत्य को सिद्ध करने के लिए भी | यह काल ईसा पूर्व 1140 अनुमाना गया है। तेईसवें तीर्थंकर अस्मिता का संघर्ष सम्मुख आ खड़ा है। आज यदि राजनैतिक | पार्श्वनाथ तो महावीर स्वामी से मात्र 250 वर्ष पूर्व ही हुए थे, इतिहासकारों को ही इतिहास लिखने को दे दिया जाये तो यह प्रश्र | जिनका इतिहास में कई जगह उल्लेख है। हालाँकि वर्तमान इतिहास सुलझने की बजाय उलझता ही जायेगा। यह सही है कि राजनीति | ईसा के 500 वर्ष से आगे जाने को तैयार नहीं है। इसलिये यह 'ईथर' की तरह जीवन में हर जगह विद्यमान है, परन्तु कुछ जगहों | महावीर तक ठहर जाता है। पर यदि इससे नहीं बचा गया तो परिणाम गम्भीर तो हो ही गये हैं | प्राचीन ग्रन्थों में ही राम के काल में, तीर्थंकर मुनिसुव्रत के और अधिक भयावह होते जायेंगे। आज राजनीतिज्ञों ने धर्म में होने के संदर्भ मिलते हैं। परन्तु हैं ये पौराणिक प्रमाण ही, जिन्हें प्रवेश कर लिया है, साहित्य में 'वाद' का सिक्का चलता ही है, | प्रागैतिहासिक कहा जाता है। शिक्षा भी 'खेमों' में हैं। संस्कृति पृथक् होते हुए भी राजनीति ही | जहाँ तक प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का ऐतिहासिक हावी है, यह नया आक्रमण इतिहास पर हुआ है। प्रश्न है उस संबंध में विद्वानों का मत है कि तब के इतिहास मिलने वस्तुतः है यह "अंधों के हाथी" की तरह स्थिति । इतिहास का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता, इसलिये कथित रूप से हैं तो यदि शब्द के छपने से प्रारंभ मानेंगे तो बहुत कुछ छूट जायेगा। ऋषभदेव भी पौराणिक तीर्थंकर ही, परन्तु पुरातत्त्व के इतने ठोस शब्द के गढ़ने से मानते हैं तो श्रुति पर विश्वास करना पड़ेगा, | प्रमाण उपलब्ध हैं कि ऋषभदेव को काल्पनिक कहना अपने गाल जिसमें मानवीय निजत्व जुड़ने की सम्भावनाएँ तो हैं, पर और | पर तमाचा मारने जैसा प्रतीत होता है। कोई विकल्प भी नहीं है। श्रुति के ही आधार पर शास्रों और सिन्धु घाटी सभ्यता पुराणों की रचनाएँ हुई हैं. जिनमें वैयक्तिक निजत्व जुड़ा ही हुआ सन् 1922-23 में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से है । हाँ, पुरातत्त्व के आधार अवश्य शेष हैं, जिनको नकारा नहीं जा | प्राप्त सिन्धु घाटी की प्राचीन सभ्यता को ऐतिहासिक मान्यता प्राप्त सकता। हालाँकि, संभावनाएँ और अनुमान तो इसमें भी रहता है, | है। इस खुदाई में प्राप्त ईसा के 5000 वर्ष पूर्व की, दिगम्बर पर सत्य के पर्याप्त करीब रहता है। कायोत्सर्ग योग मुद्राओं की मूतियाँ जैन तीर्थंकरों के अस्तित्त्व की जब से कथित इतिहासकारों द्वारा जैन धर्म के चौबीस में पुष्टि करती है और उपलब्ध वृषभ का प्रतीक, चूँकि प्रथम जैन से तेईस तीर्थंकर ही काल्पनिक करार दे दिये गये, तब से सामान्यतः तीर्थंकर ऋषभदेव का ही होता है। अतः सहज ही उक्त प्रतिमा शान्त रहने वाले इस समाज के बुद्धिजीवियों में गम्भीर हलचल आदि जैन तीर्थंकर होने की पुष्टि करती है। इसी आधार पर जैन प्रारम्भ हुई है। धर्म को प्राग्वैदिक भी कहा जाता है। सत्य यह है कि तेईस तीर्थंकरों को काल्पनिक कह देने से डॉ. राधाकृष्णन् यद्यपि इतिहासकार नहीं, दार्शनिक थे पर वे इतिहासकार ही विवादित हो गये हैं, जो स्वयं अपने निष्कर्षों वे दर्शन में कल्पना को स्थान तो नहीं दे सकते थे। पुष्ट प्रमाणों के पर पूर्वाग्रहवश प्रश्नचिह्न लगा लेते हैं । यह ऐतिहासिक सत्य है कि | आधार पर ही उन्होंने अपनी कृति “इण्डियन फिलास्फी" के पृष्ठ यदि कृष्ण इतिहास पुरुष हैं तो तीर्थंकर नेमिनाथ (अरिष्ट जिन) | 287 पर कहा है -"ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी तक लोग तीर्थंकर को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि वे श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे | ऋषभदेव की पूजा किया करते थे।" और जूनागढ़ एवं गिरनार में उनके पुरातात्त्विक अवशेष विद्यमान | इसीलिये प्रसिद्ध इतिहासविद् डॉ. एम.एल. शर्मा ने "भारत हैं। प्रसिद्ध पुरातात्त्विक डॉ. फूहरर, प्रो. वारनेट, कर्नल टॉड एवं | में संस्कृति और धर्म" पृष्ठ 62 पर मत व्यक्त किया है कि मोहनडॉ. राधाकृष्णन् तीर्थंकर नेमिनाथ की ऐतिहासिकता को स्वीकारते । जोदड़ो से प्राप्त मुहर पर जो चिह्न अंकित है, वह भगवान् ऋषभदेव हैं। टॉड ने तो खोज कर यह निष्कर्ष दिया था कि नेमिनाथ ही का ही हैं। यह चिह्न इस बात का द्योतक है कि आज से पाँच हजार स्केण्डिनेविया की जनता में प्रथम "ओडिन" तथा चीनियों के वर्ष पूर्व योगसाधना भारत में प्रचलित थी और उसके प्रवर्तक जैन प्रथम"फो" नाम के देवता थे। भारतीय इतिहास एवं दृष्टि (पृ.45) | धर्म के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे। सिन्धु निवासी अन्य ग्रन्थों के में डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकर ने काठियावाड़ से प्राप्त एक प्राचीन साथ ऋषभदेव की पूजा करते थे। ताम्रपत्र प्रकाशित किया था। उक्त दान पत्र पर उल्लेख है कि सुमेर उदयगिरि-खण्डगिरि (उड़ीसा) स्थित शिलालेख जाति में उत्पन्न काबुल के खिल्वियन सम्राट नेवुचंदनज्जर ने जो भुवनेश्वर के निकट स्थित पुरातात्त्विक तीर्थ उदयगिरिरेवानगर (काठियावाड़) का अधिपति था, यदुराज की द्वारका में | खण्डगिरि स्थित हाथी गुफा का शिलालेख मूर्ति इतिहास की दृष्टि आकर गिरिनार के स्वामी नेमिनाथ की भक्ति की तथा दान दिया | से अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। शिलालेख का प्रारंभ, शाश्वत जिन 6 मई 2002 जिनभाषित - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - मंत्र " नमो अरहंतानं, नमो सिद्धानं " से हुआ है। इसमें अंकित है कि ईसा के 450 वर्ष पूर्व राजवंश था और कलिंगाधिपति खारवेल. मगधराज पुष्यमित्र पर चढ़ाई करके तीर्थंकर ऋषभदेव (प्रथम जिन तीर्थंकर) की मूर्ति वापस लाया था। यह भी इससे प्रमाणित होता है कि 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के ही अनुयायी थे और उन्हीं की पूजा अर्चना किया करते थे । (जनरल ऑफ दि बिहार एण्ड ओडिसा रिसर्च सोसा. भाग 3, पृष्ठ 465) उपर्युक्त प्रमाणों से यह शक करने का कोई कारण नहीं बचता कि ऋषभदेव काल्पनिक चरित्र थे । यह अलग बात है कि उस इतिहास तक पहुँचने का वर्तमान इतिहासकारों के पास पुरातन शिलालेखों के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। हम न देख सकें इसलिये कुछ है ही नहीं, यह बात ही बेमानी है । मथुरा का कंकाली टीला पुरातात्त्विक उत्खनन में मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त देव निर्मित स्तूप और 110 शिलालेख, इतिहास के उपर्युक्त तथ्यों की प्रामाणिक पुष्टि करते हैं। स्तूप का निर्माण ईसा पूर्व 800 का अनुमानित है, जिसमें ईसा पूर्व दूसरी सदी से बारहवीं सदी की अनेक तीर्थकर मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। विंसेट ए स्मिथ के मतानुसार मथुरा के कंकाली टीले का स्तूप एवं शिलालेख जैन इतिहास की परम्परा की न केवल पुष्टि करते हैं, वरन् यह भी सिद्ध करते हैं कि ईसवी सन् के प्रारम्भ में जिन इतिहास अपने विशेष चिह्नों के साथ-साथ तीर्थंकर के इतिहास में दृढ़ आस्था रखते हैं। वैदिक प्रमाण ऋग्वेद 4.58.3 में ऋषभदेव को अनन्तचतुष्टयधारी कहा गया है ऋग्वेद में ही एक अन्य जगह जिन तीर्थंकर को ज्ञान का आगार आदि बताया गया है। ऋग्वेद में जैन मुनियों का उल्लेख वातरशना मुनियों के रूप में मिलता है। उपर्युक्त उल्लेख जैन धर्म को वैदिककालीन तो प्रमाणित करते ही हैं, यह भी सिद्ध होता है कि महावीर के बहुत पहले से तीर्थंकर होते आ रहे हैं, उन्हें काल्पनिक कहना ही कल्पना है। पौराणिक प्रमाण श्रीमद्भागवत, अग्निपुराण और विष्णुपुराण एवं स्कंध पुराण में ऋषभदेव की न केवल प्रार्थना की गई है, वरन् उनके कुल का भी वर्णन मिलता है। भागवत के प्रथम स्कंध के अध्याय तीन में भी उलिखित है कि ऋषभदेव का जन्म राजा नाभि की पत्नी मरुदेवी से हुआ था इत्यादि । महाभारत के शान्ति पर्व में तीर्थंकर आदिनाथ ( ऋषभदेव) को अत्यधिक महत्त्व दिया गया .. अन्य मत इतिहासकार मानते हैं कि वैदिक काल के पूर्व द्रविड़ नाग आदि मानव जातियाँ भारत की मूल निवासी थीं और ये श्रमण संस्कृति से सम्बद्ध थीं । श्रमण धर्म का उपदेश इस युग में ऋषभदेव ने ही सर्वप्रथम दिया भी और वे ही प्रथम जैन तीर्थंकर हुए। इसलिये पं. जवाहरलाल नेहरू ने जैसा कि "डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' में कहा है वैसा ही माना जाता है कि भारत के मूल निवासी जैन लोग हैं। श्रमण परम्परा भारत की प्राचीन परम्परा है और इस युग के जैन तीर्थंकरों की परम्परा ऋषभदेव से प्रारंभ मानी जाती है। श्री पी. आर. देशमुख ने I इण्डस सिविलाइजेशन ऋग्वेद एण्ड हिन्दू कल्चर" में पृष्ठ 344 में लिखा है कि जैनों के पहले तीर्थंकर सिन्धु सभ्यता से ही थे उन्होंने सिन्धु घाटी की भाषिक संरचना के बारे में बताया कि सिंधुजनों की भाषा प्राकृत थी । प्राकृत जनसामान्य की भाषा है। जैनों और हिन्दुओं में भारी भाषिक भेद है। जैनों के समस्त प्राचीन ग्रन्थ प्राकृत में हैं... जबकि हिन्दुओं के सभी ग्रन्थ संस्कृत में हैं । प्राकृत भाषा के प्रयोग से भी यह सिद्ध होता है कि जैन प्राग्वैदिक हैं और सिंधु घाटी से उनका संबंध था। देश और विदेश में कहा तो यह जाता है कि भगवान् ऋषभदेव के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ का नाम भरत था और इन्हीं के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा, पहले इस देश का नाम " अजनाभ" था। भारत से बाहर वर्मा से दक्षिण चीन तक ऋषभदेव की ख्याति पहुँचती गई। डॉ. सिल्वा लेवी के मत से जावा- सुमात्रा आदि द्वीप समूहों के निवासियों में जैन मतालम्बी भी थे। अलासिया में 12 वीं सदी की एक रेशेफ मूर्ति पर खोज से प्रो. आर. जी. हर्ष ने यह प्रतिपादित किया था कि भारतीय तीर्थंकर ऋषभ का ही नाम वहाँ "रेशेफ' पड़ा। रेशेफ सींगों वाले देवता को कहते हैं और वृषभ यानी बैल भी सींगों वाले होते हैं। मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में ऋषभ को "बुल गॉड" कहा जाता था। सोवियत अरमोनिया में तैशव देव नाम से ऋषभदेव की अर्चना की जाती थी इत्यादि । "जैन साहित्य के इतिहास" कृति की भूमिका में डॉ. बासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है "यह सुविदित है कि जैन धर्म की परम्परा अत्यंत प्राचीन है । भगवान् महावीर तो अंतिम तीर्थंकर थे।...... भगवान् महावीर के पूर्व 23 तीर्थकर हो चुके थे। उन्हीं में भगवान् ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे । जैन कला में उनका अंकन घोर तपश्चर्या की मुद्रा में मिलता है। ऋषभदेव के चरित्र का उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी विस्तार से आता है.... । भागवत में इस बात का भी उल्लेख है कि महायोगी भरत, ऋषभ के शतपुत्रों में ज्येष्ठ थे और उन्हीं से यह देश भारतवर्ष कहलाया। ऋषभदेव के उपरांत 22 तीर्थंकर और हुए। अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए सभी तीर्थंकरों ने अपने युग की प्रांसगिक समस्याओं के अनुरूप जिन धर्म के सिद्धातों की व्याख्याएँ कीं और जीवों के कल्याण का पथ प्रशस्त किया। जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में कभी समझौते की कहीं गुंजाइश रही भी नहीं । भले ही संयम और तप का मार्ग कठिन होने से लोग इससे कम जुड़े, पर जितने जुड़ेंगे और जिन मार्ग पर चलेंगे उनका उद्धार होगा ही 'जैनम् जयतु शासनम् '। 75, चित्रगुप्त नगर कोटरा सुल्तानाबाद, भोपाल - मई 2002 जिनभाषित 7 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन जीवनदर्शन और समाज डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका आत्मधर्म के लिये नीरोग शरीर और दूध के लिये जैसे | क्षमादि धर्म के दस अंग देवदर्शन, गुरूपासना, स्वाध्याय, संयम, शुद्ध पात्र की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मानव के लिये | तप, त्याग, श्रावक के षट्कर्म और अनित्य, अशरण आदि बारह स्वस्थ समाज का होना भी आवश्यक है। मनुष्य और समाज दोनों | भावनाएँ जैनत्व को परिपुष्ट करती हैं। ये सब धर्म के ऐसे महत्त्वपूर्ण की अनुपूरकता के प्रसंग में दोनों का स्वस्थ और आचारवान् होना | एवं अपरिहार्य आंगोपांग हैं, जिनके आचरण से मनुष्यमात्र अपने और भी आवश्यक है। व्यष्टि से समष्टि का निर्माण होता है। दोनों | इहलोक के साथ पारलौकिक मार्ग को भी प्रशस्त कर सकता है। का पारस्परिक सम्बन्ध है। शरीर में प्रत्येक अंग का अपना स्थान | धर्म त्रिकालाबाधित शाश्वत होता है, पर समाज में परिवर्तन और महत्त्व है। शरीर का जो भी अंग विकृत होगा, शरीर उतने ही | होते रहते हैं। सामाजिक परम्पराएँ और मान्यताएँ युगानुसार बदलती अंशों में विकृत माना जावेगा। उसी प्रकार समाज के जितने व्यक्ति | रहती है। संसार और जीवनचक्र परिवर्तनशील हैं। जैन धर्म और सुधरे हुए होंगे तथा चारित्र, ज्ञान और अर्थ की दृष्टि से जितने पुष्ट | उसके समाज का आधार अनेकान्तात्मक है। वह आग्रहवाद से होंगे, समाज उतना ही प्रबुद्ध, उन्नत और सशक्त होगा। बहुत परे है। यथासमय यथावश्यक परिवर्तन स्वीकार करने में व्यक्तिगत एवं समष्टिगत कार्य की सफलता संकल्प, श्रम, | वह कभी नहीं हिचकिचाता। पर उसी परिवर्तन को स्वीकारता है, एकता और संगठन में निहित है। एकाकी व्यक्ति आत्मधर्म का तो | जिससे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह में वृद्धि पालन कर सकता है, पर समाजधर्म के लिये संगठन अपेक्षित है। हो। जिस क्रिया के द्वारा हमारा जीवन ऊँचा उठ रहा हो, वह नीतिकार कहते हैं-असंगठित लोगों के जीवन में धर्म नहीं उतर | परिवर्तन और वह क्रिया अपनाने योग्य है। सामाजिक और वैयक्तिक सकता और न वे कभी जीवन में सुखी हो सकते हैं। किसी प्रकार | उत्थान के लिये परिवर्तन स्वीकार किये जा सकते हैं। बस, शर्त का गौरव भी उन्हें प्राप्त नहीं हो सकता और न जीवन में उन्हें यह है कि उस परिवर्तन से हमारे सम्यक्त्व को हानि न पहुँचे। कभी शान्ति मिल सकती है। हमारे आचार्यों ने अपेक्षित परिवर्तन के लिये अपने विवेक को ही न वै भिन्ना जातु-वरन्नीह धर्म, निर्णायक माना है। यशस्तिलक चम्पू' के रचयिता आचार्य सोमदेव न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भिन्नाः॥ सूरि का कथन उल्लेखनीय हैन वै भिन्ना गौरवं प्राप्नुवन्ति, सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः । न वै भिन्नाः प्रशमं रोचयन्ति। यत्र सम्यक्त्व हानि न यत्र नो व्रत दूषणम्॥ वस्तुतः संगठित समाज ही शक्तिशाली होता है। अनन्त जैनों को वे सभी लौकिक क्रियाएँ मान्य हैं, जिनसे सम्यक्त्व परमाणुओं से मिलकर ही सृष्टि का निर्माण होता है। कई ईंटे | की हानि न हो और व्रतों को दोष न लगे। पुराणमित्येव न साधु मिलकर महल खड़ा कर देती हैं। छोटे-छोटे तिनकों की रस्सी से | सर्वम्- प्राचीन बातें सारी ही अच्छी हों, यह आवश्यक नहीं है। बड़े से बड़े मदोन्मत्त हाथी को बाँधा जा सकता है। कमजोर और असंगठित समाज कभी जीवित नहीं रह सकता। प्रकृति भी उसी प्राचीन हो कि नवीन छोड़ो, रूढियाँ जो हों बुरी। की सहायता करती है जो स्वयं अपनी सहायता करता है और बनकर विवेकी तुम दिखाओ, हंस जैसी चातुरी॥ अपने पैरों पर खड़ा होता है। संसार के इतिहास में ऐसी जातियाँ प्राचीन बातें ही भली हों, यह विचार अलीक है, आज नाम शेष रह गयी हैं, जो असंगठित थीं। विश्व के मानचित्र जैसी अवस्था हो जहाँ, वैसी व्यवस्था ठीक है। पर उनका कहीं पता नहीं। अतः हमें जीवित रहने के लिये दो जैन कोई जाति नहीं, वह तो धर्म है, जिसमें वर्ण, जाति के बातों की ओर ध्यान देना होगा और उन्हें अमल में लाना होगा। वे | लिये कोई स्थान नहीं। यह तर्क और श्रद्धा पर आधारित वैज्ञानिक हैं- हमारे व्यक्तिगत जीवन में धर्म उतरे और सामाजिक जीवन में | धर्म है, जिसमें अंधभक्ति के लिये कोई स्थान नहीं है। एक पाश्चात्य हम संगठित हों। विद्वान ने जैन धर्म से प्रभावित होकर जो लिखा है, वह उल्लेखनीय आचार में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्याद्वाद है- 'Jainism does not ask you to have faith in any और समाज में अपरिग्रह-इन्हीं चार मणिस्तम्भों पर जैन धर्म का | thing which can not be sicentifically realised and सर्वोदयी प्रासाद अवस्थित है। अहिंसा, अनेकान्त, अस्तेय, | based on reality.' अपरिग्रह, सत्य, ब्रह्मचर्य जैन धर्म के मूल आधार हैं। उत्तम | अवैज्ञानिक और अवास्तविक तथ्यों पर जैन धर्म विश्वास 8 मई 2002 जिनभाषित - Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करने को नहीं कहता। वास्तव में जैन धर्म जीवन-दर्शन है। किसी भी वर्ग वर्ण का व्यक्ति उसका अनुयायी हो सकता है। भगवान् महावीर ने सम्यग्दर्शन के आठ अंग बताये हैं। इनमें एक भी अंग की कमी होने पर जीवन में सम्यक्त्व नहीं उतर सकता। उनमें एक अंग 'वात्सल्य' महत्त्वपूर्ण है, अपने साधर्मी बन्धुओं के प्रति गोवत्सवत् प्रीति करना ही सच्चा वात्सल्य है । सम्यक्त्व के इस महत्त्वपूर्ण अंग की ओर हमारा कितना ध्यान है ? यह विचारणीय है । आज जैन समाज में एकता का अभाव है। न केवल दिगम्बर श्वेताम्बर तेरापंथी और स्थानकवासी आपस में लड़ते हैं, अपितु एक ही पंथ के और एक ही सम्प्रदाय के बन्धुओं में सामाजिक बन्धुत्व की भावना नहीं के बराबर है। आये दिन जैन पत्रों में पारस्परिक विवाद भरे रहते हैं। कुछ पत्र तो पंथ-पक्ष से व्यामोहित हैं । सामाजिक समरसता की उन्हें कोई चिन्ता नहीं । साधुओं, विद्वानों और नेताओं में मतैक्य नहीं है। ये एक मंच पर नहीं आ सकते। धर्म की आड़ में प्रदर्शन और आडम्बर बढ़ रहे हैं महावीर के अनुयायी, महावीर के सिद्धान्तों पर नहीं चलते। आज का समाज इन विसंगतियों से भरा है। I जैन समाज के संगठन में जो बाधकतत्त्व हैं, वे ऐतिहासिक व आन्तरिक नहीं, सामाजिक और भौगोलिक नहीं, आर्थिक व सांस्कृतिक नहीं, वे बाहरी और ऊपरी है, जो पूरे समाज से सम्बन्धित नहीं है। वे खास लोगों की मनोवृत्ति, थोथी यशोलिप्सा और मुनिश्री विशुद्धसागर जी मुनिश्री विशल्यसागर जी श्री दिगम्बर जैन मंदिर, टिन शेड टी.टी. नगर भोपाल में दि. 17.5.2002 को परमपूज्य आचार्य श्री विरागसागर जी के परम तपस्वी शिष्य मुनि श्री विशुद्धसागर जी मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनि श्री विश्ववीरसागर जी एवं मुनि श्री विश्रान्तसागर जी के मंगल सान्निध्य में ग्रीष्मकालीन सैद्धान्तिक एवं आध्यात्मिक वाचना की स्थापना समारोहपूर्वक हुई, जिसमें पू. आचार्य श्री विरागसागर जी के चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन के साथ मंगल कलश की स्थापना की गई। वाचना 15.6.2002 श्रुतपंचमी तक चलेगी। प्रभुत्वकामना की पूर्ति भर करते हैं । जब समाज का नेतृत्व अपना तेज खो देता है तो वह अंधेरे में ही भटकता रहता है। आज का नेतृत्व वर्ग स्थिरमतिवाला नहीं है। अनेकान्त की बातें करने वाले आग्रह का दामन नहीं छोड़ते। अहिंसा की बातें करते हैं, पर हिंसा से बचते नहीं अपरिग्रह की चर्चा करते हैं, पर संग्रहवृत्ति छोड़ते नहीं। इस ज्ञान और क्रिया में रात-दिन का अन्तर है। यह मनः स्थिति तब बनती है, जब समाज के नेतृत्व में जड़ता आ जाती है। और चिन्तन कुण्ठित हो जाता है। हमारा समाज फूल और पत्तियों को देखने में ही उल्लास का अनुभव करता है जो शाश्वत खिलने वाली नहीं हैं। जड़ को सम्यक्त्व जल से सींचने की किसी को चिन्ता नहीं वयोवृद्धों का अनुभव और युवकों की सक्रियता का । समन्वय समाज की प्रगति का आधार होता है। " न सा सभा सन्ति न यत्र वृद्धाः ।" जैन सामाजिक संगठन के लिये हमें जैनत्व को समझना होगा । परस्पर प्रीति, भातृभाव / मैत्रीभाव बढ़ाना होगा। दूसरों के विचारों का आदर करना होगा। खण्डन से मण्डन और समन्वय की ओर चलना होगा। समाज की शक्तियाँ निर्माणकारी हों। सम्यक्त्व को दूषित किये बिना सबको साथ लेकर चलना होगा। भोपाल में ग्रीष्मकालीन वाचना पूर्व प्रोफेसर राजकीय महाराजा संस्कृत कॉलेज, जयपुर (राज.) मुनिश्री विश्ववीरसागर जी मुनिश्री विश्रांतसागर जी प्रतिदिन प्रातः 7 से 8 बजे द्रव्य संग्रह, 8 से 9 बारसाणुपेक्खा अपराह्न 3 से 4 परमात्मप्रकाश एवं अपरान्ह 4 5 तत्त्वार्थवार्तिक का मंगल वाचन- विवेचन मुनि संघ द्वारा किया जा रहा है। तत्त्वार्थवार्तिक ग्रन्थराज का वाचन प्रो. रतनचन्द्र जैन, भोपाल द्वारा किया जा रहा है। विवेचन मुनिश्री विशुद्धसागर जी महाराज अपनी अमृतवाणी के माध्यम से करते हैं । श्रोता साधर्मी बंधु बड़ी संख्या में लाभान्वित हो रहे हैं। श्रीपाल जैन 'दिवा' - मई 2002 जिनभाषित 9 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउचों की सुन्दरता में मीठा जहर पान मसाला श्रीपाल जैन 'दिवा' यह बात बिल्कुल सत्य है कि जिन्दगी में मौत से ज्यादा । लोकप्रियता के इतिहास को जानें तो ज्ञात होता है कि यह संस्कृति सुनिश्चित बात और कोई दूसरी नहीं है, क्योंकि हमें यह जीवन | 90 के दशक से देश में प्रारंभ हुई। पान मसालों को पाउच का रूप मिला है तो मृत्यु भी मिलेगी। हमें जीवन में धन, संपत्ति और | दिया, जो रखने और ले जाने में बहुत आसान हो गया। इसलिए वैभव आदि मिले यह कोई नियम नहीं है, लेकिन मृत्यु हमें | आज किसी भी दुकान पर जाओ, चाहे वह पान की दुकान हो य निश्चित मिलेगी। अब प्रश्न उठता है कि जब मौत निश्चित है तो | किराने की दुकान, यहाँ तक की मेडिकल आदि की दुकानों पर उससे डरना क्यों? बिल्कुल सत्य है मौत से नहीं डरना, लेकिन | भी पान मसालों के पाउच बड़ी सुगमता से मिल जाते हैं, क्योंकि अकाल मृत्यु से तो हमें डरना चाहिए। अकाल मृत्यु से हमारा | इसका विज्ञापन ही ऐसा किया जाता है। हमारी फिल्मी दुनिया के आशय आयु कर्मों के निषेकों का अकाल खिराने से हैं। आयु कर्म | जाने-माने कलाकार ऐसे जहर के विज्ञापनों को कर रहे हैं और से निषकों को अकाल में खिराने के लिए बहुत से निमित्त कारण | हमारे युवा साथी उनकी बातों से गुमराह हो जाते हैं तथा पान बन जाते हैं, उनमें व्यक्ति की बुरी आदत या लत भी अकाल मरण | मसालों की आदतों से ग्रसित हो जाते हैं। वे तो विज्ञापन करके की ओर ले जाती है। बुरी आदत व्यक्ति के शान्तिमय जीवन में | पैसा कमा लेते हैं, लेकिन हमारे युवा वर्ग अपने पैसों की बर्बादी अशान्ति का वातावरण बना देती है। व्यक्ति की जिन्दगी अपनी | के साथ अपने शरीर को भी बर्बाद कर रहे हैं। जिन्दगी है, वह जैसा बनाना चाहे वैसा बना सकता है। कोई इन पान मसालों के बारे में मुम्बई के टाटा इंस्टीट्यूट व्यक्ति यदि बुरी आदतों से ग्रसित है, वह यदि दुनिया के तमाम | ऑफ फंडामेन्टल रिसर्च के डॉ. श्री प्रकाशजी गुप्ता कहते हैं- देश शास्त्रों को पढ़ डाले, सभी मजहबों एवं धर्मों के ग्रन्थों को पढ़ | भर में 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' तेजी से फैलता जा रहा है। डॉ. डाले, पर उस व्यक्ति को अपने जीवन का सत्य समझ में नहीं आ | गुप्ता ने चेतावनी दी कि "पान मसाला सिगरेट की तुलना में सकता। अधिक घातक होता है। सिगरेट की तुलना में गुटकों से यानि वर्तमान में हमारे युवा भाइयों का वर्ग, लौकिक शिक्षण के पान मसालों से कैंसर आधे समय में ही हो जाता है। सिगरेट में क्षेत्र में तो बहुत विकास कर रहा है, लेकिन अपने शारीरिक और | तम्बाकू होता है, लेकिन पान मसाला बिना तम्बाकू वाले भी मानसिक धर्म के क्षेत्र में विकास से बहुत दूर होता जा रहा है। | होते हैं, यानि बिना तम्बाकू वाले पाउच भी कैंसर के लिये आज हमारे युवा वर्ग को गुमराह करने के लिए, उनके मन को | कारण हैं।" 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' होने के पाँच से दस वर्ष लुभाने के लिये और उनको बुरी आदतों में फंसाने के लिए ऐसी | के भीतर कभी भी कैंसर हो सकता है। अगर पान मसालों का वस्तुओं को बाजार में लाया जा रहा है, जिनके सेवन से हमारा प्रचार-प्रसार रोका नहीं गया तो डॉक्टरों को अंदेशा है कि इससे युवा वर्ग अपना तन, मन और धन तीनों को बर्बाद करता जा रहा घातक बीमारियाँ दिन पर दिन फैलती ही जायेंगी। 'सबम्यूकस फाइब्रोसिस' की महामारी पान मसाले के खतरनाक स्तर तक मैं उन बुरी आदतों में से एक पान मसाले की आदत के उपभोग से सीधी जुड़ी है। डॉ. गुप्ता ने कहा- इस संबंध के बारे में कहना चाह रहा हूँ, जो सबसे अधिक मात्रा में हमारे देश | निर्विवाद सबूत हैं कि पान मसालों को खतरनाक उत्पादन करार का युवा वर्ग खाता है। इस पान मसालों की आदत ने एक 10 वर्ष | देना जरूरी है। के बच्चे से लेकर 60-70 वर्ष के दादाजी आदि को पकड़कर रखा | वर्तमान परिवेश में पान मसाले - आज पान मसालों की है, लेकिन सबसे अधिक 16 वर्ष से 35 वर्ष तक के युवाओं में | आवश्यकता इतनी बढ़ गई है कि अगर कोई भी आज पारिवारिक पान मसाला चबाने की आदत है। इसका दुष्परिणाम देखने को | या सामाजिक कार्यक्रम हो, शादी, विवाह, सभा, गोष्ठी या पार्टी मिला नासिक एवं पूना के आसपास। इसके सेवन से कुछ व्यक्ति आदि कुछ भी हो, पहले पान मसाला स्वागत के रूप में आता है। नपुंसकता जैसे रोग से ग्रसित हो गये और दिल्ली के एक परिवार के पहले पान के माध्यम से मेहमानों का स्वागत किया जाता था, पिता ने अपनी बेटी को पान मसाला खाने को मना किया तो जिसे ताम्बूल या बीड़ा भी कहा जाता है। यह पान बड़े आदरसत्कार आत्महत्या जैसा दुष्कृत्य उस बेटी ने कर डाला। एक बार ऐसी | का प्रतीक हमारी भारतीय संस्कृति में माना गया है। आज पान तो आदतें व्यक्ति के जीवन में आ जाती हैं, तो व्यक्ति का मन ही | समाप्त होते जा रहे हैं और पान मसालों का आधिपत्य होता जा दूषित कर देती है। इससे बचना आज बहुत जरूरी है। । रहा है। आज पान की जगह पान मसालों ने घुसपैठ कर ली, पान मसालों का इतिहास - इन पान मसालों की | इसलिए पान खाना भूलकर पान मसाला चबाने लगे। यह खूबसूरत है। 10 मई 2002 जिनभाषित Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैकेटों में मिलने वाला पान मसाला स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ । में संचालित की जा रही पान की दुकानों से एकत्रित किया था। करता है। ज्ञात हुआ कि कत्थे में सिंथेटिक और अन्य कलर जैसी कोई चीज पान मसालों का बढ़ता व्यापार - आज देश में पान | मिलाई जाती है, जो खाने में प्राकृतिक रूप से पान-सुपारी के द्वारा मसालों का उद्योग बढ़ता ही जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार | होने वाली बीमारियों के अतिरिक्त एलर्जी, कैंसर जैसी बीमारियों सन् 1992 में 200 करोड़ रुपयों का करोबार था, जो सन् 1997 में | को जन्म दे सकती है। 1000 करोड़ से भी अधिक का हो गया था। इस प्रकार प्रतिवर्ष 8 जुलाई 2000, के दैनिक भास्कर में पढ़ा था 'कैसे बढ़ता ही जा रहा है. घटने का नाम नहीं ले रहा है। आज देश में | बनता है सिंथेटिक कत्था'। वह बात आश्चर्यचकित करने वाली इसके उद्योग पर कोई रोक नहीं और न ही इनके विज्ञापनों पर | थी जिसे पढ़कर लगा कि अब पान खाने वाले व्यक्ति सात्त्विकता रोक है और न ही इसकी बिक्री पर रोक है। आज राज्य सरकारों से वंचित हो जायेंगे। जो पान स्वास्थ्य के लिए लाभकारी था, वह एवं केन्द्र सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है, जबकि डॉक्टर स्वयं पान अब कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों को सौगात देने का कारण कहते हैं-यह मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा उत्पन्न करने वाला | बन रहा है। नकली कत्था असली कत्थे की कीमत से आधी है। इसके माध्यम से गले और मुँह के अत्यन्त हानिकारक कैंसर | कीमत में मिलता है। असली कत्था, खैर वृक्ष की छाल से बनाया जैसे जानलेवा मों का जन्म हो रहा है। तमाम स्वास्थ्य संगठनों | जाता है, लेकिन नकली कत्थे को किसी अन्य वृक्ष की लकड़ी, की बार-बार चेतावनी देने पर भी वर्तमान सरकारें इस ओर ध्यान | मुलतानी मिट्टी, जानवरों का खून व बूट पॉलिश आदि का उपयोग नहीं दे रही हैं । सुना था, गोवा की राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबंध | करके बनाया जाता है। इसको सुगंधित बनाने के लिये अन्य लगाया था पर कितना असर? पान मसालों के उद्योग करने वालों | रसायन मिलाये जाते हैं। यह नकली कत्था चोरी छुपे बिकता है। पर कुछ भी प्रभाव नहीं पढ़ा, उनका व्यापार यथावत् ही रहा और | 75 रुपये से लेकर 150 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है। थोड़ी वृद्धि हीं हुई है। आज खूबसूरत पाउचों में पान मसाला रूपी | जब उच्चकोटि का असली कत्था लेने जायें तो 400-425 रुपये मीठा जहर भरकर बेचने वाले मौत के सौदागर शहरों तक सीमित | किलो के भाव से बाजार में मिलता है। इस नकली कत्थे के नहीं रहे। देश के प्रत्येक शहर, नगर, गाँवों की गली, कूचों में | दुष्परिणाम उपभोगकर्ता की आँतों पर पड़ते हैं। इससे भूख नहीं फैल गये हैं। इन पर प्रतिबंध आज बहुत जरूरी है। आज देश में | लगती तथा कब्ज की शिकायत, गले की खराबी और चर्म रोग हजारों तरह के पान मसालों का प्रचलन है, परन्तु इसकी सबसे | आदि बीमारियाँ होती है। यही कत्था पान-मसालों में मिलाया बड़ी मंडी उत्तर प्रदेश की औद्योगिक महानगरी कानपुर मानी जाता है। आमतौर पर देखा जाये तो चूने व कत्थे का मिश्रण काला जाती है, जहाँ पर सौ से भी अधिक किस्म के पान मसाले बनाये पड़ जाता है, परन्तु उस पान मसाले को गुलाबी बनाये रखने के जाते हैं। लिये खड़िया स्टोन डस्ट और जानवरों को खिलाई जाने वाली पान मसालों में क्या? - इन पान मसालों को कैसे | खली को गेरु में रंगकर पान-मसाले का रूप दिया जाता है। बनाया जाता है ? इनमें क्या-क्या मिलाया जाता है ? इसके बनाने पान मसाले से पथरी - पान मसाले का प्रयोग जितना की प्रक्रिया बहुत सरल है। ये चूना, कत्था, चिकनी सुपारी, व्यापक होता जा रहा है, उतनी ही बीमारियाँ बढ़ती जा रही है। इलाइची, सेन्ट एवं पिपरमेन्ट से निर्मित होता है। आप बाजार में 5 अक्टूबर 1995, 'दैनिक विश्व परिवार', झाँसी में एक सर्वेक्षण जाकर इस सामग्री आदि को खरीदने जायँ और अच्छी सामग्री आया था-आज पथरी के जितने ऑपरेशन हो रहे हैं, उनमें से खरीदें एवं पूरी शुद्ध सामग्री मिलाकर पान मसाला तैयार करें तो आधे ऑपरेशनों से ज्ञात हुआ कि पथरी के लिये पान मसाले ही करीब 400 से 450 रुपये प्रतिकिलो के भाव का पड़ेगा, परन्तु जो कारण हैं। पान मसालों को बनाने में प्रयोग किए गए विभिन्ना कम्पनियों द्वारा बनाये गये पान मसाले हैं, 150-160 रुपये प्रतिकिलो | प्रकार के पदार्थ पेट में जमा हो-होकर पथरी का निर्माण करते हैं। के भाव से मिल रहे हैं। इससे स्वयं सिद्ध होता है कि ये पान | जिसके कारण अनेक भयंकर दुष्परिणाम देखने पड़ते हैं और ये मसाले पूरी तरह शुद्ध नहीं है। इनमें कत्था को ही लें, इसकी जगह पान मसाले दाँतों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। दाँतों पर पर सिंथेटिक कत्था उपयोग किया जाता है। काले-काले धब्बे पड़ जाते हैं। इसके सेवन से दाँत अपनी वास्तविक सिंथेटिक कत्था (नकली कत्था)- दैनिक भास्कर, | छवि को खो देते हैं और जीभ पर भी बुरा असर पड़ता है। जबलपुर 27 नवम्बर 2000, पृष्ठ 5 पर - 'मिलावटी कत्थे से रचे | पान मसाले में सूखी छिपकली का चूर्ण - यह सच है जा रहे हैं आपके ओंठ' समाचार पढ़ा और पाया विगत कुछ माह कि जब से पान मसाला रूपी जहर एक रुपये के पाउचों में आया पूर्व राज्य खाद्य प्रयोगशाला, भोपाल द्वारा किये गये कत्थे के है, तभी से इसकी गुणवत्ता समाप्त हो गई है। अब तो खुले आम नमूनों के परीक्षण में यह सिद्ध हो गया है कि कत्थे में मिलावट की | जहर बिकने लगा है और इन पाउचों में काँच, तार के टुकड़े, जा रही है। शिकायत के आधार पर खाद्य विभाग के खाद्य निरीक्षक | आलपिन इत्यादि निकलना तो आम बात हो गई है। दैनिक विश्व श्री एस.डी. दुबे ने इन कत्थों के नमूनों को शहर की विभिन्न क्षेत्रों | परिवार, झाँसी के 5 अक्टूबर 1995 के न्यूज पेपर की वह घटना -मई 2002 जिनभाषित ।। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्चर्यजनक एवं सात्विक व्यक्ति की सात्विकता मिटाने वाली | भोपाल 13 दिसम्बर 2000, बुधवार के 'नायिका' विशेषांक में है-जब एक व्यक्ति के पान मसाले के पाउच में छिपकली का सिर | एक सर्वेक्षण की बात पढ़ी-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल भी निकला। यह घटना कानपुर की है और सारे शहर में यह बात | रिसर्च ने एक सर्वेक्षण में यह जानकारी दी कि कैंसर के मरीजों में आग की तरह फैल गई। इसके बाद पुलिस ने खोजबीन की और | सत्तर (70%) प्रतिशत गुटखा खाने वाले हैं। गुटखे से मुख कैंसर उस पान मसाले के निर्माता की फैक्ट्री से भारी मात्रा में सूखी | होने की जानकारी नई जानकारी नहीं है, यह पुरानी बात हो गई छिपकिलियाँ बरामद की और इसी तरह सन् 1992 में इन्दौर की | और खाने वाले भी सब जानते हैं, लेकिन जानकर अनजान बने एक पान मसाले की फैक्ट्री से एक छापे में बहुत मात्रा में सूखी | हुए हैं। जैसे कोई माँ बेटे को किसी कार्य करने को मना करती है, छिपकिलियाँ बरामद की गई थीं। लेकिन बेटा चुपके-चुपके से वही कार्य करता है बाद में माँ से जून 1995 के माह में कानपुर के एक सब इंस्पेक्टर श्री | आकर कहता है-देखो 'मैंने वही काम किया और मुझे कुछ नहीं सुरेन्द्रकुमार लौर ने अपने शहर में पान मसाले की एक ऐसी | हुआ' इसी प्रकार की दशा पान मसाले का गुटखा खाने वालों की पुड़िया पकडी, जिसमें छिपकली के बच्चे का सिर निकला था। उक्त आधार पर जब सब इंस्पेक्टर श्री लौर ने उस पान मसाले की आज पान मसालों के गुटखे का प्रचलन बढ़ाने के लिए फैक्ट्री और घर पर छापा मारा तो वहाँ भारी मात्रा में आपत्तिजनक विज्ञापनों की भरमार मची हुई है। लोगों को भ्रमित करने के लिए सामान और स्वास्थ्य विरोधी वस्तुएँ बरामद हुईं। अपनी गिरफ्तारी बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मीडिया के माध्यम से लोगों को मोहित के बाद पान मसाला निर्माता ने स्वीकार किया कि वे अपने पान | करने का उपक्रम कर रही हैं। आम लोगों की धारणा है कि केवल मसाले में कत्थे एवं चूने की जगह खड़िया मिट्टी,गेरु, जानवरों को | तम्बाकू वाले गुटखे से ही कैंसर होता है, तो ऐसा नहीं। कैंसर खिलाई जाने वाली खली, सड़ी हुई सुपारी एवं तम्बाकू की पत्ती | विशेषज्ञों का कहना है कि बगैर तम्बाकू के गुटखे भी खाये तो की जगह जहरीले मदार के पत्तों को पीसकर मिलाते थे। पान | 'गेम्बियर' नामक रसायन चबाने वाले के मुँह को कैंसर से ग्रसित मसाले के निर्माता ने यह भी स्वीकार किया कि वह कभी-कभी | कर सकता है। ऐसे रोगियों का गाल खराब होने लगता है और अपने पान मसाले में अफीम की बोकली एवं मरी हुई छिपकली | जबड़ा पूरा नहीं खुल पाता है। एक महानगरीय शोध संस्थान का चूर्ण मिलाता था, क्योंकि ऐसा करने से मसाले में तेजी एवं | 'यूनिवर्सिटी डिपार्टमेन्ट ऑफ केमिकल टेक्नालॉजी' के शोधार्थियों नशा बढ़ता है। इंस्पेक्टर श्री सुरेन्द्र कुमार लौर ने जहर के व्यापारी | ने मार्केट में बिकने वाले बहुत तरह के गुटखों और पाउच मे को धारा 169/93,4821489/420 के अंतर्गत कानपूर जेल में भेज बिकने वाले पान मसालों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पाया कि दिया और उस समय न्यायालय ने उसकी जमानत नामंजूर कर दी सभी नमूनों में एफ्लेटॉक्सिन' नामक विष तत्त्व है, जिससे लीवर थी। कैंसर, सिरोसिस एवं लीवर को गहरी क्षति पहुँचाने वाली अन्य इंडियन अस्थमा केयर सोसाइटी के सचिव श्री धर्मवीर | बीमारियाँ हो सकती हैं। इन नमूनों में भारी मात्रा में विषैले जीवाणु कटेवा ने बताया कि पानपराग एवं गुटखा में सीसा ही नहीं मिलाया भी पाये गये और ऐसी फफँदियाँ भी जो 'एफ्लेटॉक्सिन' निर्मित जाता, वरन् मरी हुई छिपकलियों की हड्डियाँ भी पीसकर डाली करती है जबकि विकसित देशों में तो किसी भोज्यपदार्थ में मामूली जाती है ताकि इसको खाने वाला उसका आदी हो जाए। उन्होंने मात्रा में भी 'एफ्लेटॉक्सिन' पाया जाए तो खाद्य पदार्थ को निरस्त बताया कि कंपनियाँ दो तरह के गुटखों की बिक्री करती हैं, | कर दिया जाता है और आज भारत जैसे महान राष्ट्र में ऐसे पदार्थों जिनमें से एक जर्दायुक्त एवं एक बिना जर्दा के, जिससे व्यक्ति की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इस जहर को जहररूप न बिना जर्दा का गुटखा खाते-खाते जर्दा वाला गुटखा भी खाने लग जानकर हम खाते जा रहे हैं और खिलाते जा रहे हैं। हम क्या खा जाता है। रहे हैं ? कैसा खा रहे हैं? आज यह जानना आवश्यक है। इससे पान मसालों मे मुटाजेन नामक घातक तत्त्व पाया जाता है, ही व्यक्ति अपने जीवन का निर्वाह अच्छे ढंग से कर सकता है। जिसके प्रयोग से मुँह खुलना और बंद होना, बंद हो जाता है और | स्वयं स्वस्थ रहेगा, तो उसका परिवार भी स्वस्थ रहेगा। बोलने की शक्ति कम हो जाती है। लगातार पान मसालों के सेवन उपसंहार- यह मनुष्यभव बहुत दुर्लभ है, जिस व्यक्ति का से मुख के भीतर का भाग (श्लेष्म पटल) लाल हो जाता है। उस आचरण और खानपान शुद्ध है, ऐसा व्यक्ति ही इस दुर्लभ मनुष्य पर फुसियाँ आने लगती हैं, फिर धीरे-धीरे उनमें घाव बनते जाते जीवन का लाभ उठा पाता है। आज के व्यक्तियों की दृष्टि पैसे की हैं, जिससे रोगी को कालातंर में वहाँ पर सफेद चकते उभरने ओर होने के कारण खानपान की ओर नहीं जा पाती है। इसी का लगते हैं, जिन्हें 'ल्यूकोप्लोकिया' कहा जाता है तथा यहीं से । दुष्परिणाम है रोगों का जन्म होना है, अगर देखा जाये तो मनुष्य के प्रारंभ होती है मुँह के कैंसर की कहानी, जिससे बहुत कष्ट झेलना | पास जैसा मस्तिष्क है, वैसा किसी के पास नहीं है। मनुष्य चाहे पड़ता है। तो कर्मों की मजबूत श्रृंखला को तोड़ सकता है और अपनी बुरी पान मसाले से कैंसर : एक सर्वेक्षण - नईदुनिया, | आदतों को छोड़ना कोई मुश्किल काम नहीं है। एक चुटकी में 12 मई 2002 जिनभाषित - Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सब कुछ हो जाता है। जो हमारे तन, मन को खराब करें, ऐसे | फेफड़ों का कैंसर, हार्ट अटेक, पेट का अल्सर, मूत्राशय का पदार्थों से मुक्ति पायें और जीवन को शुद्ध आचरण के माध्यम से | कैंसर और पैरों में वर्जरस जैसी बीमारियाँ हो जाती है। पान स्वस्थ एवं प्रसन्न बनाएँ, यही हमारे जीवन का सही पुरुषार्थ | मसाले से मुँह की माँसपेशियाँ कठोर हो जाती है, जिससे मुँह में होगा। सबम्यूकस फाईथोसिस बनना शुरू हो जाता है। पान मसाला और चिकित्सकों के विचार - डॉ. नरेन्द्र लोढ़ा नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ अगली महामारी मुँह कैंसर के रूप में होगी, यदि पान | मसालों पर रोक नहीं लगाई गई तो ....। जर्दा एवं पान मसालों को मुँह में ज्यादा देर रखने से मुँह कैंसर विशेषज्ञ, डॉ. एस.एस. नैयारजी | में खिंचाव होने लग जाता है। आवाज में भारीपन आ जाता है। अगर कोई सोचता है कि धूम्रपान बुरी बात है तो पान | मुँह कम खुलने लगता है। गुटखा खाना जारी रहे तो मुँह का मसाला की आदत जानलेवा है। बिल्कुल खुलना बंद हो जाता है। दंत विशेषज्ञ, डॉ. सुचेतन प्रधान, मुम्बई डॉ. डी.पी. गुप्ता सिर्फ पान मसाला होता है जो ज्यादातर अज्ञात तत्त्वों का | जर्दे वाले गुटखे का सेवन करने वाली गर्भवती महिलाओं मिश्रण है। सुगंध पैदा करने वाले तत्त्व गोपनीय रखे जाते हैं। | के पेट में पल रहे बच्चे पर निकोटिन पदार्थ का प्रतिकूल प्रभाव (पैकिट पर कुछ तत्त्वों के ही नाम होते हैं) पर बीमारी पैदा करने पड़ता है, जिससे बच्चे या तो विकलांग या फिर मंदबुद्धि हो जाते वाले दो तत्त्व तम्बाकू और सुपारी ही हैं। डॉ. प्रो. बाबू मैथ्यू, मुम्बई क्षेत्रीय कैंसर केन्द्र औकोलॉजी डॉ. यू.एस.चौहान, चर्मरोग विशेषज्ञ इस संबंध में निर्विवाद सबूत है कि पान मसाले को कैंसर वार्ड में 40% से अधिक रोगी जर्दा, गुटखा आदि खतरनाक उत्पाद करार देना जरूरी है। की वजह से आते हैं। इसके सेवन से मुँह में सफेद घाव बनने लग डॉ. श्रीप्रकाश गुप्ता, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुम्बई | जाते हैं, जो धीरे-धीरे कैंसर का रूप ले लेते हैं। गुटखा, पान मसाले एवं जर्दे के सेवन से लकवा, मँह, ___ डॉ. यू.के. माथुर कैंसर इकाई' गुरुवर सुधासागर को मेरा शत-शत वन्दन अशोक धानोत्या उन्नत भाल है, जिनका समतामयी है वचन, 'सिंह' की मानिंद करते हैं, जिन आगम का प्रवचन, माता शांतिदेवी के लाल, पिता रूपचन्द्र के नन्दन, ऐसे गुरुवर सुधासागर को मेरा शत-शत वन्दन। तप से जिनका तन वज्र बना, मन से जो करुणाधारी हैं। जो इन्द्रियों पर संयम रखते, भोगों के नही भिखारी हैं। जो राग द्वेष को जीत रहे, संयम समता के द्वारा। उन पूज्य मुनि सुधासागर को, शत-शत नमन हमारा ॥ राजुल-गीत श्रीपाल जैन 'दिवा' सखी री चाहत मन की साध। सखी गुन चाहत मन की साध । मन आतम के क्षितिज हुआ क्यों, उदय अस्त अपराध। पल दो पल की कौन कहे सँग, बिता न पल एकाध। फिर भी मन बहता उनके सँग, मन कैसा निर्बाध । निर्मोही पर हुआ बावला, भव-भव जलधि अगाध । मन ही मेरा हुआ पराया, निर्वश मन की साध। पल भर आ दर्शा जावें वे, मेरा क्या अपराध ? (2) राजुल कर्पूरी है राग। सखी री कर्पूरी है राग। साध तुम्हारी चाहत है पर, चाहत वहाँ विराग। उदय अस्त की दिशा व दूरी, कैसे खेले फाग। अरुणाई द्वय भिन्न सार है,भेद ज्ञान से जाग। सम्यग्दर्शन ज्ञान हुआ सखि, उनके जागे भाग। संकल्पी अणुओं का कर्षण, पीता राग विराग। तेरा कर्षण रागाधारित, उनका धार विराग। शाकाहार सदन, एल. 75, केशर कुंज, हर्षवर्द्धन नगर, भोपाल-3 करते नित जो मंगल ध्यान, वैराग्य से ऊँचा जिनका नाम । ऐसे गुरुवर "सुधा सागर" को 'अशोक' करता शत-शत प्रणाम ॥ श्री शान्तिनाथ जैन अतिशय क्षेत्र _ 'सुदर्शनोदय' तीर्थ आंवा टोक (राज.) 304802 -मई 2002 जिनभाषित 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिज्ञासा आजकल बहुत से जैनी भाई, अन्य धर्मों के है गुरुओं की भक्ति में रचे गये गुरु भक्ति के कैसेटों को बजाने लगे हैं ये कैसेट मुनिमहाराजों के चातुर्मास में लगी हुई साहित्य की दुकानों पर मिलते हैं। क्या इनका बेचना या बजाना उचित माना जाये ? - - समाधान वर्तमान में जैनेतर धर्मों द्वारा अपने गुरुओं की भक्ति में बनाए गए कैसेटों की इन दुकानों में भरमार दिखाई देने लगी है। ये कैसेट " गुरुभक्ति" के नाम से उपलब्ध हैं। जैनी भाई इसके अच्छे संगीत और मीठी आवाज के कारण इनको खरीद लेते हैं, जबकि यदि ध्यान से सुना जाये तो ये जैन साधुओं की भक्ति के गीत नहीं हैं। दुख इस बात का है कि हम लोग कैसेट बजाना तो पसन्द करते हैं, पर उसके बोलों पर ध्यान नहीं देते। हमें केवल अच्छा म्यूजिक होने के कारण इनको बजाना पसन्द है, न कि गुरुभक्ति के कारण कैसेट निर्माताओं ने इतनी चालाकी कर रखी है कि वे इस पर अपना नाम नहीं लिखते। वर्तमान में ऐसे बहुत से गुरुभक्ति के कैसेट उपर्युक्त दुकानों द्वारा समाज में बेचे जा रहे हैं । वास्तव में इनका बेचना और बजाना दोनों ही उचित नहीं है। जहाँ भी चातुर्मास हो, वहाँ के आयोजकों को चाहिए कि वे ऐसे कैसेटों की बिक्री पर रोक लगाएँ तथा इन धार्मिक पुस्तकों के स्टॉलों पर केवल दिगम्बर जैन साहित्य तथा केवल दिगम्बर जैन गुरुओं के कैसेट बिक्री होने दें। पिछले दिनों श्वेताम्बरों द्वारा प्रचारित तथा अनुराधा पोडवाल' द्वारा गाये गए " भक्तामर स्तोत्र " के कैसेट अपने समाज में बहुत प्रचलित हुए। गायिका की सुरीली आवाज के कारण इनको खरीद तो लिया, लेकिन यह ध्यान नहीं दिया कि कैसेट के प्रारंभ में जो मंगलाचरण है, उसमें पहले मंगलाचरण में "मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतम गणी, मंगलं स्थूलभद्राद्यो जैनधर्मोस्तु मंगलं " यह मंगलाचरण दिया है तथा इसमें बजाय 48 काव्यों के मात्र 44 ही काव्य हैं, क्योंकि श्वेताम्बरों में 44 काव्यों की मान्यता है। अतः हमें गायिका की सुरीली आवाज को न देखते हुए ऐसे गलत कैसेटों को हटा देना चाहिए। जिज्ञासा चान्द्री चर्या किसे कहते हैं ? जिज्ञासा समाधान समाधान जैसे चन्द्रमा का प्रकाश किसी के घर आँगन आदि का भेद न करके सबके घर में फैलता है, उसी प्रकार दिगम्बर साधु भी राजा रंक आदि का भेद न करके सभी श्रावकों के घर आहार के लिए चर्या करते हैं, उसे चान्द्री चर्या कहते हैं। जिज्ञासा1- क्या देवों के भावलेश्या के अनुसार द्रव्य लेश्या होती है? समाधान श्री जीवकाण्ड गाथा 496 में इस प्रकार कहा - 14 मई 2002 जिनभाषित - रिया किण्हा कप्पा, भावाणुगया हु तिसुरण तिरिये । उत्तरदहे छके भोगे रविचंदहरि दंगा ॥ 496 | अर्थ- सम्पूर्ण नारकी कृष्णवर्ण ही है। कल्पवासी देवों की द्रव्यलेश्या ( शरीर का वर्ण) भावलेश्या सदृश होती है । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, मनुष्य, तियंच इनकी द्रव्यलेश्या छहों होती हैं तथा इन देवों की विक्रिया के द्वारा उत्पन्न होने वाले शरीर का वर्ण भी छह प्रकार में से किसी भी एक प्रकार का होता है। उत्तम भोग भूमि वाले मनुष्य तिर्थयों का शरीर सूर्य समान, मध्यम भोग भूमि वाले मनुष्य तिर्यंचों का शरीर चन्द्र समान तथा जघन्य भोगभूमि वाले मनुष्य/तियंचों का शरीर हरितवर्ण होता है। पं. रतनलाल बैनाड़ा श्री तिलोयपण्णत्ति अधिकार-5, गाथा नं. 55 से 58 में इस प्रकार कहा है "सब किन्नर देव प्रियंगु सदृश देह वर्ण से, किम्पुरुष देव स्वर्ण सदृश देह वर्ण से, महोरग श्याम वर्ण वाले, गंधर्व स्वर्णसदृश, यक्ष देव श्याम वर्ण से, राक्षस, भूत और समस्त पिशाच कृष्ण वर्ण के शरीर वाले होते हैं।" 44 श्री धवला पु. 2, पृष्ठ 532-535 में इस प्रकार कहा है'दव्व लेस्सा णाम वण्ण णाम कम्मोदयादो भवदि, ण भाव लेस्सा दो । वण्णणाम कम्मोदयादो भवण वासियवाणवेंतरजोइसियाणं दव्वदो छ लेस्साओं भवति, उवरिम देवाणं तेड पम्मसुक्क लेस्साओ भवंति । " अर्थ- द्रव्यलेश्या, वर्णनामा नामकर्म के उदय से होती है, भावलेश्या से नहीं। वर्णनामा नाम कर्म के उदय से भवनवासी, वाणव्यतंर और ज्योतिषी देवों के द्रव्य की अपेक्षा छहों लेश्याएँ होती हैं तथा भवनत्रिक से ऊपर देवों के तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएँ होती है। श्री राजवार्तिक में भी इसी प्रकार लिखा है। उपर्युक्त प्रमाणों के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि भवनत्रिक देवों में भावलेश्या के अनुसार द्रव्यलेश्या का नियम नहीं हैं, जबकि सभी कल्पवासी देवों में भावलेश्या के अनुसार द्रव्यलेश्या होने का नियम है। जिज्ञासा शुभ लेश्यावाले मिथ्यादृष्टि देव जब चयकर मनुष्य या तिर्यच बनते हैं, तब उनके शुभ लेश्या रहती है या नहीं ? समाधान- उपर्युक्त प्रश्न के समाधान में श्री धवलपुस्तक 2, पृष्ठ 656 पर इस प्रकार कहा है- "देव मिच्छाइट्टि सासणसम्मा दिट्टिणो उ-पम्मसुक्कलेस्सासु वट्टमाणा सा होऊण तिरिक्खमुणस्सेसुप्पज्जमाणा उप्पण्णपढमसमए चैव किण्हणीलकाउलेस्साहि सह परिणमति । " अर्थ तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याओं में वर्तमान मिध्यादृष्टि - . Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और सासादान सम्यग्दृष्टि देव, तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होते | मानुषोत्तर पर्वत से परभागवर्ती व स्वयंप्रभाचल से पूर्वभागवर्ती समय नष्टलेश्या होकर अर्थात् अपनी-अपनी पूर्व की लेश्या को | शेष द्वीप समुद्रों में संयतासंयत जीवों की संभावना कैसे है ? उत्तरछोड़कर मनुष्यों और तिर्यंचों में उत्पन्न होने के प्रथम समय कृष्ण, | नहीं, क्योंकि पूर्व भव के बैरी देवों के द्वारा वहाँ ले जाये गये नील और कपोत लेश्या से परिणत हो जाते हैं। तिर्यंच संयतासंयत जीवों की सम्भावना की अपेक्षा कोई विरोध उपर्युक्त प्रमाण से यह ज्ञात होता है कि शुभलेश्या वाले | नहीं है। अर्थात् बैरी देवों द्वारा कर्मभूमि से उठाकर फैंके गए मिथ्यादृष्टि तथा सासादन देवों की शुभलेश्याएँ मरण होते ही नष्ट | पंचमगुणस्थानावर्ती तिर्यंचों का उन जघन्य भोगभूमियों में भी हो जाती है और ये देव नियम से अशुभ लेश्याओं में चले जाते हैं। सद्भाव पाया जाता है। यह भी ज्ञातव्य है कि यद्यपि भोगभूमियों यह भी विशेष है कि सभी सम्यग्दृष्टि देव शुभ लेश्याओं में मरण में विकलत्रय जीव नहीं पाये जाते, परन्तु बैरी देवों के प्रयोग से करके मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए अपनी-अपनी पीत-पद्म और भोगभूमि प्रतिभाग रूप द्वीप समुद्रों में पड़े हुए तिर्यंच शरीरों में शुक्ल लेश्याओं के साथ ही मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। विकलेन्द्रियों की उत्पत्ति होती है, ऐसा कहने वाले आचार्यों के _ (श्री धवला पु.2, पृष्ठ 511) अभिप्राय से मानुषोत्तर के परभागवर्ती द्वीप समुद्रों में विकलेन्द्रिय जिज्ञासा - सुदर्शनमेरु की चोटी से सौधर्म स्वर्ग के ऋजु | जीव भी पाये जाते हैं। (देखे श्री धवला पु. 6, पृष्ठ-426) विमान के बीच में उत्तम भोगभूमि के बालाग्र प्रमाण दूरी कही गई जिज्ञासा - श्री विष्णुकुमार महामुनि ने ब्राह्मण का वेष है, तो क्या अन्य भूमि के बाल इससे स्थूल होते हैं? बनाया और विक्रिया ऋद्धि को प्रयोग में लिया। तो क्या मुनिराज समाधान - विभिन्न भोगभूमियाँ जीवों के बालों की मोटाई | को प्राप्त ऋद्धियाँ, सग्रंथ अवस्था में भी अपना प्रभाव रखती हैं? में, इस प्रकार अंतर कहा गया है समाधान - उपर्युक्त प्रश्र के संबंध में हम दो तरह से आठ उत्तम भोगभूमि के बालाग्र - एक मध्यम भोगभूमि का बालाग्र विचार करेंगे। 700 मुनियों के उपसर्ग निवारण हेतु क्या विष्णुकुमार आठ मध्यम भोगभूमि के बालाग्र = एक जघन्य भोगभूमि का बालान | महामुनि ने वामन का रूप धारण किया था या नहीं? आठ जघन्य भूमि का बालाग्र - एक कर्मभूमि संबंधी बालान 2. वामन की अवस्था में क्या विक्रियाऋद्धि का प्रयोग उपर्युक्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि उत्तम भोगभूमि किया गया था और तब उनका गुणस्थान कौन सा था? अब प्रथम का बालाग्र सबसे पतला होता है। प्रश्र पर विचार करते हैंजिज्ञासा -क्या मानुषोत्तर के पर भाग से स्वयंप्रभ पर्वत 1. श्री हरिवंशपराण (ज्ञानपीठप्रकाशन, पृष्ठ 301-302) तक जघन्य भोगभूमि में, केवल भोगभूमियाँ तिर्यंच ही होते हैं या | पर इस प्रकार लिखा है- राजा पद्म के ऐसा कहने पर विष्णुकुमार अन्य तिर्यंच भी पाये जाते हैं? मुनि बलि के पास गये और बोले ... यदि शांति चाहते हो तो शीघ्र , समाधान - सामान्यतः तो मानुषोत्तर के पर भाग से स्वयंप्रभ | ही इस प्रकार जन्य उपसर्ग का संकोच करो। तदनन्तर बलि ने पर्वत तक जघन्य भोगभूमि होने से भोगभूमियाँ जीव ही पाये जाते | कहा कि यदि ये मेरे राज्य से चले जाते हैं तो उपसर्ग दूर हो हैं, परन्तु श्री धवला पु. 7, पृष्ठ 379 में इस प्रकार भी प्रमाण सकता है, अन्यथा ज्यों का त्यों बना रहेगा। इसके उत्तर में मिलता है-"अथवा सव्वेसुदीव-समुद्देसुपंचिदियतिरिक्ख अपज्जत्ता विष्णुकुमार मुनि ने कहा कि ये सब आत्मध्यान में लीन है, इसलिए होति। कुदो पुव्ववइरियदेवसंबंधेण कम्मभूमिपडिभागुप्पण्णपंचिंदि- यहाँ से एक डग भी नहीं जा सकते।.... इन मुनियों के ठहरने के यतिरिक्खाणं एगबंधणबद्धछज्जीवणिकाओगाढ ओरालिय देहाणं | निमित्त तुमसे तीन डग भूमि की याचना करता हूँ।... विष्णुकुमार सव्वदीवसमुद्देसु पंचिंदियतिरिक्खअप्पज्जत्ता होंति।" अथवा सभी | मुनि की बात स्वीकृत करते हुए बलि ने कहा कि यदि ये उस द्वीप समुद्रों में पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव होते हैं, क्योंकि पूर्व | सीमा के बाहर एक डग का भी उल्लंघन करेंगे तो दण्डनीय होंगे..... । के बैरी देवों के संबंध से एक बन्धन में बद्ध छह जीवनिकायों से | तदन्तर बलि को वश में करने के लिए विष्णुकुमार मुनि उद्यत व्याप्त औदारिक शरीर को धारण करने वाले कर्मभूमि प्रतिभाग में हुए... उन्होंने एक डग मेरु पर रखी, दूसरी मानुषोत्तर पर और उत्पन्न हुए पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का सर्व समुद्रों में अवस्थान देखा तीसरी अवकाश न मिलने से आकाश में ही घूमती रही। (इस जाता है। प्रमाण के अनुसार तो विष्णुकुमार महामुनि ने मुनि अवस्था में ही भोगभूमि में मात्र एक से चार गुणस्थान पाये जाते हैं, | उपसर्ग निवारण किया था, उन्होंने वामन का रूप नहीं बनाया था) क्योंकि संयमासंयम या संयम का धारण करना वहाँ संभव नहीं। । 2. श्री उत्तरपुराण (ज्ञानपीठ प्रकाशन)पृष्ठ 358 पर इस अतः मानुषोत्तर के परभाग से स्वयंप्रभ पर्वत के पूर्वभाग तक प्रकार कहा है-इतना कहकर वे महामुनि वामन (बौने) ब्राह्मण भोगभूमियाँ तिर्यंच ही होने से केवल 1 से 4 गुणस्थान ही वहाँ का रूप रखकर बलि के पास पहुँचे और आशीर्वाद देते हुए बोले पाये जाते हैं, परन्तु धवला पु. 4, पृष्ठ 169 में इस प्रकार भी कहा | ...। है-कथं संजदासंजदाणं सेसदीव-समुद्देसु संभवो। ण, 3. श्री रत्नकरण्डश्रावकाचार (आ. प्रभाचन्द्र टीका-हिन्दी पुव्ववेरियदेवेहि तत्थ पित्ताणं संभवं पडिविरोधाभावा। प्रश्र- | पं. पन्नालाल जी)- पृष्ठ-52 पर इस प्रकार कहा है तदनन्तर -मई 2002 जिनभाषित 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुकुमार मुनि ने एक बौने ब्राह्मण का रूप बनाकर उत्तम शब्दों | था। अब दूसरे प्रश्न पर विचार करते हैं- श्री धवल पु.4, पृष्ठ 44 द्वारा वेदपाठ करना शुरु किया। इस प्रकार कहा है- संजदासंजदाणं कधं वेउव्वियमुग्धादस्स 4. श्री महापुराण (पुष्पदन्त कवि विरचित, पृष्ठ-53) में | संभवो। ण, ओरालियसरीरस्स विउव्वणप्पयस्स इस प्रकार कहा है-यह सुनकर मुनि विष्णु तत्काल वहाँ से निकले- | विण्हुकुमारादिसु दंसणादो। अर्थ - प्रश्न-संयतासंयतों के ऋचाएँ पढ़ते, ओंकारध्वनि करते हुए, आसन और कमण्डलु लिए वैक्रियक समुद्धात कैसे संभव है। उत्तर-नहीं, क्योंकि विष्णुकुमार हुए,सफेद छत्री लगाये हुए, दूब और जपमाला से हाथ को अलंकृत मुनि आदि में विक्रियात्मक औदारिक शरीर देखा जाता है। कर, मीठी वाणी बोलते हुए, यज्ञोपवीत व विभूषित, गेरुये रंग का | अर्थात् श्री धवलाकार के अनुसार श्री विष्णुकुमार महामुनि ने वस्त्र पहने हुए, उपदेशक के रूप में। वस्त्र सहित वामन (ब्राह्मण) का रूप बनाया था। उस समय उनवे 5. श्री पांडवपुराण (शुभचन्द्राचार्य विरचित-अनेकान्त संयतासंयत नामक पाँचवाँ गुणस्थान था और निर्ग्रन्थ अवस्था में विद्वत परिषद प्रकाशन, पृष्ठ 122) में इस प्रकार कहा है-"ऐसा | प्राप्त विक्रिया ऋद्धि का प्रयोग उन्होंने उस सवस्त्र ब्राह्मण अवस्था बोलकर विष्णुकुमार मुनि वामन का रूप धारण करके यज्ञभूमि में पंचम गुणस्थान में किया था। को चले गए। ब्राह्मण का रूप धारण कर वे धीर विद्वान मुनि बलि | इस प्रकार निष्कर्ष यह निकलता है कि श्री हरिवंशपुराणकार को इस प्रकार कहने लगे....।" के अनुसार तो उपसर्ग निवारण एवं ऋद्धि प्रयोग निर्ग्रन्थ अवस्था उपर्युक्त प्रमाण नं. 2 से 5 के अनुसार यह स्पष्ट है कि श्री | में ही हुआ, जबकि श्री धवलाकार एवं उपर्युक्त प्रमाण नं. 2 से 5 विष्णुकुमार महामुनि ने वामन (ब्राह्मण) का रूप धारण करके | के अनुसार निर्ग्रन्थ अवस्था में प्राप्ति ऋद्धि का प्रयोग सग्रन्थ पंचम उपसर्ग का निवारण किया था, जबकि उपर्युक्त प्रमाण नं. 1 के | गुणस्थान में भी होता है। अनुसार उन्होंने मुनि अवस्था में रहते हुए उपसर्ग निवारण किया 1/205, प्रोफसर्स कॉलोनी, आगरा (उ.प्र.)-282002 ग्रन्थ समीक्षा "महायोगी महावीर" : कृति और कथ्य कपूरचन्द्र जैन 'बंसल' तीर्थंकर महावीर स्वामी के 2600वें जन्मकल्याणक वर्ष | विषय कुछ इस तरह लिपिबद्ध किये गये हैं कि इतना लम्बा के पावन अवसर पर महावीर स्वामी के जीवन और सिद्धांतों पर कथाक्रम भी चलचित्र की तरह पाठक के मानस पटल पर सहज 'महायोगी महावीर' गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ही अंकित हो जाता है। गागर में सागर सा सार समाहित करने के साहित्य मनीषी शिष्य मुनि श्री समतासागर जी महाराज द्वारा | वाली इस कृति को 'महावीर डिक्शनरी' भी कहा जा सकता है। रचित एक ऐसी तथ्यात्मक कृति है, जिसमें महावीर के जीवन, | श्रद्धालु और सुधीजन इस कृति को पढ़कर तीर्थंकर महावीर प्रभु व्यक्तित्व और कृतित्व से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण घटना/संस्मरण | को जानें, पहचानें और अपने जीवन में उसी ज्योति को जगायें, और संदेशों को अत्यन्त सरल, सुबोध और सरस भाषा में प्रस्तुत | यही महावीर के प्रति मुनि श्री का भक्ति-अर्घ है। 166 पृष्ठों में किया गया है। कृतिकार ने अपनी असाधारण प्रतिभा के द्वारा | लिखी गई आद्यन्त आकर्षक तथा सारगर्भित कव्हर पृष्ठ के साथ आद्यन्त मौलिकता और कथा के अविरल प्रवाह की जिस चिन्तन | निर्दोष मुद्रित हुई है। म.प्र. शासन के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की गहराई के साथ बनाये रखा है, वह अत्यन्त प्रभावकारी है। जी ने इस कृति के प्रथम संस्करण का विमोचन रविवार 6 मुनि श्री ने स्वयं ही अपनी लेखनी से कृति की उपादेयता पर नवम्बर 2001 को विशाल धर्मसभा में टीकमगढ़ में किया। प्रकाश डालते हुए लिखा है कि सरल और सारगर्भित कृतियाँ अल्प मूल्य में जनजन को उपलब्ध कराये जाने के साथ-साथ समाज की समसामयिक आवश्यकता है। ऐसी कृतियों के पठन | भगवान् महावीर स्वामी के 2600वें जन्म महोत्सव की प्रान्तीय और पाठन से भाषा तथा भाव पाठक के अन्तर्मन में सहज ही | एवं राष्ट्रीय समिति के विशिष्ट सदस्यों को उपलब्ध कराने का उतर जाता है। भील से भगवान् बनने तक के पूर्व भव, भवान्तर, | प्रयास मुनि श्री के भव्य श्रद्धालुजन कर रहे हैं। कृति दर्शनीय, पंचकल्याणकों से सुशोभित वर्तमान जीवन, गणधर परमेष्ठी | पठनीय, मननीय और संग्रहणीय है। और उत्तरवर्ती परम्परा, समवशरण विहार से तत्कालीन नरेशों श्री गोकुल सदन, जतारा जिला टीकमगढ़ (म.प्र.)472118 पर प्रभाव और चाँदनपुर के टीलेवाले बाबा का चमत्कार आदि 16 मई 2002 जिनभाषित Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यंग्य लो मैं आ गया शिखरचन्द्र जैन जिस रोज मैंने भिलाई स्टील प्लाण्ट की नौकरी से स्वैच्छिक । पड़ता है। इतर लोग सिनेमा घरों के इर्द-गिर्द घूमते हुए "टाइम सेवानिवृत्ति लेने हेतु फार्म भरा, उसी रोज से मेरे मन में किसी पास" करते हैं अथवा सड़क पर यों ही घूमते हुए। कुछ लोग राजनीतिक दल में घुस जाने की लालसा बलवती हो गई। इसके | शौकिया पढ़ने भी चले जाते हैं। ऊपर से मुसीबत यह कि मेडिकल पहले किसी भी राजनीतिक दल से मेरा कभी कोई सरोकार नहीं | | साइन्स ने आदमी की औसत उमर बढ़ा कर समस्या और भी रहा। कम से कम प्रत्यक्ष रूप से तो कदापि नहीं, क्योंकि एक | जटिल कर दी है। पहले जिस उम्र में "राम-नाम सत्य है" होने सरकारी उपक्रम में अफसर होने के नाते मैं जिस आचार-संहिता | को होता था, अब उस उम्र में लोग शादी-ब्याह की चर्चा करने में बँधा रहा, उसमें किसी भी राजनीतिक दल से किसी भी तरह | को सोच रहे होते हैं। संभवत: इसी के मद्देनजर, आदरणीय अटलजी का संबंध सर्वथा वर्जित था और मैं एक पतिव्रता नारी की तरह ने रिटायरमेण्ट की उम्र अट्ठावन से साठ कर दी, ताकि भैया लोग सामाजिक वर्जनाओं के प्रति परम्परागत रूप से सदैव समर्पित | दो वर्ष और सरकारी कुर्सी से चिपके रहने का आनंद भोग सकें रहा। लेकिन अब, जबकि मैं दासता की बेड़ियाँ स्वतः काट कर | और संसार त्यागने की तिथि की प्रतीक्षा-अवधि कुछ कम हो उन्मुक्त आकाश में विचरण करने के लिए उद्यत था, अपनी एक | सके। दमित अभिलाषा को मूर्त रूप देने लालायित हो उठा, राजनीति के लेकिन मैंने जो राजनीति में प्रवेश का निर्णय लिया, उसका क्षेत्र में सर्वोच्च सफलता के सपने देखने लगा। उद्देश्य मात्र समय गुजारना तो निश्चित ही नहीं था। हालाँकि बच्चों अपनी इस योजना से बच्चों को अवगत कराया तो वे की सोच कुछ अलग रही होगी, पर मैं जो राजनीति में जाने के फौरन मान गए। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था। मुझे उम्मीद थी | लिए लालायित था, उसके पीछे मूलत: मेरे अनेक मित्रों का यह कि पूर्व की भाँति ही बच्चे मुझे नौकरी से ही लगे रहने की सलाह अनुरोध था कि चूँकि राजनीति में अच्छे लोगों का सर्वथा अभाव देंगे। यहाँ मैं यह बतला दूँ कि जिस कंपनी में मैं पिछले छत्तीस | है, इसलिए मुझ जैसे लोगों को राजनीति में अवश्य जाना चाहिए। वर्षों से काम कर रहा था, वह पिछले पन्द्रह वर्षों से कर्मचारियों | उनका कहना था कि उच्चशिक्षाप्राप्त, प्रखर वक्ता, कुशल प्रशासक, की संख्या कम करने के उद्देश्य से एक से एक लुभावनी स्वैच्छिक | स्पष्ट सोचवाले और शत-प्रतिशत ईमानदार लोग राजनीति में दूरसेवानिवृत्ति योजनाएँ लागू किए जा रही थी। पर कर्मचारी थे कि दूर तक दृष्टिगोचर नहीं होते। इसीलिए तो देश को सही मार्गअपेक्षित संख्या में फँसते ही नहीं थे। कभी-कभी मेरा मन करता | दर्शन नहीं मिल पाता। "इसी कमी को पूरा करने के लिए" वे कि यदि और कोई आगे नहीं आता, तो क्यों न मैं ही कंपनी को। कहते, "जैन साब, आपको राजनीति में जरूर जाना चाहिए।" उपकृत कर दूं? बच्चों से अपनी मंशा बतलाता तो वे फौरन आड़े मैं मन ही मन मुदित होता। कुछ सकुचाते हुए कहता - आ जाते। कहते "रिटायरमेण्ट लेकर करोगे क्या? बिना काम के | "भैया अब मेरी उम्र हो गई है। साठ के नजदीक पहुँच गया हूँ। घर में बैठोगे तो समय से पहले ही बुढ़ा जाओगे। खाली दिमाग | अब तो बाकी समय भगवद् भजन में बिताना ही श्रेयस्कर होगा। शैतान का घर होता है। समय काटे नहीं कटता।" और जो नहीं | राजनीति में भला अब मैं क्या कर पाऊँगा?" कहते वह था -"नौकरी छोड़कर घर में रहोगे तो चौबीसों घंटे | "कैसी बातें करते हो?" वह कहते-“राजनीति में प्रवेश हमारी मूड़ पर सवार रहोगे या गर्दन पर साँस छोड़ोगे (अंग्रेजी के | की सही उम्र तो यही है। जवान-नौजवान जुलूस में नोरबाजी के 'ब्रीदिंग ओवर दी नेक' से साभार), हर काम में मीन-मेख | लिए तो ठीक हैं, पर राजनीति की सही समझ तो उम्र के साथ ही निकालोगे। न खुद सुख से रहोगे, न हमें रहने दोगे। अभी दिन में | आती है। अपना बस चले तो राजनीति में प्रवेश की न्यूनतम उम्र दस-बारह घंटे घर से बाहर रहते हो, तो कुछ तो राहत रहती है, साठ वर्ष करवा दें। लोकसभा, विधानसभा में जितने ज्यादा बुजुर्ग फिर तो हरदम हमारी जान सांसत में रहेगी। इससे तो बेहतर है कि पहुँचेंगे, जूते-चप्पल उतने ही कम चलेंगे। बाजुओं में माइक जहाँ लगे हो, वहीं लगे रहो। वरना खुद को भी समय काटना | तोड़ने लायक जोर नहीं होगा, तो वाद-विवाद से ज्यादा काम दूभर होगा और हमें भी।" लिया जावेगा और फिर आप तो भगवान की दया से वैसे ही हट्टेसमय काटना, हमारे देश में, सचमुच ही एक मुश्किल कट्टे हो। बीस-पच्चीस साल तो राजनीति में सहज ही चल काम है। लोगों के पास इफ़रात समय है, जबकि करने को ज्यादा जाओगे।" कुछ भी नहीं है। इसीलिये तो बेचारे सरकारी कर्मचारियों को | और इस तरह मैं एक काफी लम्बे अर्से से निरंतर उत्साहित ज्यादातर समय क्रिकेट कमेन्ट्री सुनते हुए व्यतीत करने को बाध्य होता चला आ रहा था। बस फिर क्या था? इधर मुझे सेवानिवृत्ति होना पड़ता है या फिर बार-बार कुर्सी से उठकर चाय पीने जाना | मिली, उधर मैंने राजनीति में प्रवेश का खुला ऐलान करते हुए -मई 2002 जिनभाषित 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहा 'बचना अय नेताओ...... लो मैं आ गया।" मानों कोई पहलवान लँगोटा घुमाते हुए अखाड़े में प्रवेश कर गया हो । मुझे इस बात का पूरा भरोसा था कि नामी राजनीतिक दल, मेरे ऐलान के मद्देनजर फौरन मुझसे सम्पर्क स्थापित कर मुझे अपने-अपने दल में सम्मिलित होने हेतु सहर्ष आमंत्रित करेंगे और मैं थोड़े नखरे दिखाने के बाद किसी तरह ठीक से दल में प्रवेश कर जाऊँगा। पर दिन हफ्ते तो क्या, महीनों गुजर जाने के बाद भी किसी दल का कोई पदाधिकारी मुझ तक पहुँचना तो दूर, मेरे दरवाजे के सामने से भी नहीं गुजरा, समारोहों में दरी बिछाने वाले कार्यकर्त्ता के समकक्ष नेता तक नहीं। मेरे लिए यह घोर निराशा की स्थिति थी। पर मेरे दोस्तों ने मुझे पुनः उत्साहित किया। बोले-" यही तो विडम्बना है कि एक काबिल आदमी इच्छुक होते हुए भी राजनीति में नहीं घुस पाता। कारण कि वह स्वभाव से संकोची होता है। जब तक कोई उसे बुलाता नहीं, वह जाता नहीं। और जो राजनीति में होते हैं, वे काबिल को भला क्यों बुलाएँगे? अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारेंगे क्या ? इसलिए जैन साब ! आप संकोच त्यागें और अपने पसंदीदा राजनीतिक दल में प्रवेश करने हेतु स्वयं पहल करें।" मेरे लिए किसी दल विशेष का चुनना निहायत ही मुश्किल काम था। मुझे तो सभी दल एक जैसे लगते थे। एक ही थैली के चट्टे-बट्टे । इसलिए मैंने, सर्वप्रथम, एक बहुत पुराने राजनीतिक दल में, जिसे दशाब्दियों तक राज करने का अनुभव था, प्रवेश करने के इरादे से उसके स्थानीय प्रमुख से भेंट की। उक्त दल (जिसे मैं सुविधा के लिए 'क' दल कहूँगा) के प्रमुख ने, जो कि स्थानीय सब्जी मंडी के अध्यक्ष भी थे, मेरा चारों तरफ से मुआयना किया। फिर बोले "आप कौन जात हो ?" "मैं जैन हूँ," मैने कहा । "वो तो ठीक है पर कौन से जैन हो ? श्वेताम्बर हो या दिगम्बर ? बीस पंथी हो या तेरा पंथी ?" यह मेरे लिए हत्थे से उखड़ जाने वाली बात थी। फिर भी नम्रता बनाए रखते हुए मैंने कहा-" इस बात से राजनीति का क्या सरोकार ?" "है । सरोकार है। संबंध है, जरूर है।" उन्होंने इतमीनान से कहा - "यह जानकारी बड़ी बारीकी से रखना होती है कि कौन आदमी किस जगह से कितने वोट निकलवा सकेगा ? अर्थात् जिस जगह पर, जिस जाति के जितने वोट होते हैं, उसी हिसाब से उस स्थान पर उस जाति का नेता तैनात किया जाता है। इसके अलावा किसी कार्यकर्त्ता, किसी नेता की कोई अहमियत नहीं होती।" " लेकिन यह तो सरासर फिरकापरस्ती है।" मैने साश्चर्य कहा - " इसे तो राजनीति से हर हाल में दूर रखना चाहिए। इसी ने तो देश को बर्बाद कर रखा है। इसके विरुद्ध तो हमें सख्त कानून बना देना चाहिए।" 18 मई 2002 जिनभाषित "वो कानून बनाइएगा तब, जब संसद मं पहुँचिएगा । पर संसद मे पहुँचने को होते हैं वोट दरकार, जो वैसे ही मिलते हैं जैसे हम कह रहे हैं। आगे आपकी मर्जी ।" इसके बाद जिस दल में घुसने की संभावना तलाशने का प्रयत्न मैने किया, उसे में 'ज' दल कहूँगा। जदल के स्थानीय प्रधान को मैंने अपेक्षाकृत विनम्र पाया। उन्होंने न केवल मेरा स्वागत किया बल्कि जदल में सम्मिलित होने का विचार करने हेतु मुझे धन्यवाद भी दिया। कहा- " आप जैसे लोगों की हमारे दल में अत्यंत आवश्यकता है। आपकी सोच, आपकी समझ, आपके अनुभव से हमें निश्चय ही लाभ होगा। वैसे एक बात बतलाएँ मान्यवर ! कि मंदिर को आप कितना आवश्यक मानते हैं ?" "बहुत आवश्यक स्थान मानता हूँ", मैने कहा-" आदमी के जीवन को सही दिशा देने में मंदिर का विशिष्ट योगदान होता है । प्रभु के दर्शन व आराधना से मन में शुद्ध विचारों का उदय होता है। आत्मा का कल्याण होता है। " "वही तो हम कहते हैं", मेरे प्रत्युत्तर से उत्साहित होते हुए उन्होंने कहा- "लेकिन हमारे विरोधी हैं कि हमारे मंदिर कहते ही भड़क उठते हैं। मानो हमने कोई अपशब्द कह दिया हो अथवा किसी साँड़ को लाल कपड़ा दिखा दिया हो। आप तो जैन साब! लोगों को मंदिर की महिमा समझाने में हमारी मदद कीजिए।" " जरूर करूँगा।" मैंने उन्हें आश्वस्त किया " लोगों को मंदिर का महत्त्व समझाऊँगा और मस्जिद का भी । गुरुद्वारा की महत्ता बतलाऊँगा और गिरजाघर की भी। धर्म की प्रभावना तो हर हाल में हितकारी होती है। हर धर्म की प्रभावना ।" मेरी बात सुनते ही प्रधान जी को सहसा अपने किसी अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य की याद आ गई और मुझे साक्षात्कार का परिणाम तत्काल स्पष्ट हो गया। जाहिर है कि मेरे सत्प्रयत्नों के बावजूद किसी स्थापित राजनीतिक दल से मेरी पटरी नहीं बैठ पा रही थी, लेकिन इन थोड़े से दिनों में मेरे इर्द-गिर्द कुछ लोग एकत्रित होने लगे थे। सुबह-शाम घर पर कुछ लोग चाय-नाश्ते पर आने लगे थे। मेरे समर्थकों का एक गुट बन गया था। संयोग की बात कि इसी समय लोकसभा के चुनाव होने की घोषणा हो गई। मेरे मन में हूक उठी और मैं एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव में कूद्र पड़ा । मेरे इस निर्णय की मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई परिवार वालों ने मुझे मना किया। बहुत समझाया कि मेरा लोकसभा का चुनाव लड़ना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। जीतने का तो सवाल ही नहीं उठता था, जमानत बचा पाने की भी गुंजाइश नहीं थी सेवानिवृत्ति पर मिली रकम का मटियामेट होना तय था। बुढ़ापे में मिट्टी पलीद होना निश्चित थी। लेकिन में जो था पिछले कुछ महीनों से उत्साह से लबालब चल रहा था । देशप्रेम की भावना हिलोरें मार रही थी और मेरे समर्थक मुझे जिताने के लिए . Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमर कस कर खड़े हो गए थे। वे हर कष्ट सहकर, हर कमी को बर्दाश्त कर, मेरे ऊपर न्यौछावर होने को उद्यत थे। उन्हें विश्वास था कि जीत हमारी ही होगी। और हमने जोर-शोर से अपना चुनाव प्रचार प्रारंभ कर दिया। चुनाव प्रचार चला। जब तक ग्रेच्युटी की रकम हाथ में रही ठीक से चला। लेकिन ज्यों ही हाथ जरा तंग हुआ, मेरे समर्थकों का विश्वास डगमगा गया। उनका यह धंधे का टाइम था, इसलिए जहाँ से बेहतर 'आफर' मिला, चले गए। मैं अकेला रह गया। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी धरती पकड़ की माफिक अकेला ही आखिरी दिन तक चुनाव प्रचार में व्यस्त रहा। चुनाव के दिन तो इतना व्यस्त था कि वोट डालने भी न जा सका, वरना एक वोट तो मुझे अवश्य ही मिल जाता । वे नवम्बर के गुलाबी ठंड वाले दिन थे, जब लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए थे। बहुत दिनों में घर से बाहर नहीं निकला। रोज देर तक सोता रहता। उठता, कुछ खाता-पीता, फिर तुम जैसा ही बन जाऊँ डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' प्राण नहीं पाये अब तक, शूल शूल नहिं दिख पाया । कांटों को ही फूल समझकर अपने को ही भरमाया ॥ रोने का आदी बना रहा, नहिं सही धर्म को पहचाना। धूल चढ़ी बुद्धि पर हे प्रभु, जीवन जीवन नहिं जाना ॥ वर्तमान भी चूक न जाये, सपनों में नहिं खो जाऊँ ॥ ऐसा प्रभु बल दे दो मुझको, तुम जैसा ही बन जाऊँ ॥] ॥ अपना ही मन्दिर गिरा रहा, अपनी प्रतिभा खण्डित करता । अपनी वीणा के तार तोड़, 'हृत्तन्त्री बज जाये' कहता ॥ गीत नहीं क्यों जीवन में मधुमास नहीं क्यों आ पाता। पतझड़ से तो प्रेम किया है, फिर बसन्त क्यों टिक पाता ।। पर बसन्त के लिए प्राण है, पतझड़ फिर क्यों पाऊँ ॥2 ॥ , आये चमक हमारे जीवन में, भीतर का संगीत जगे । आनन्दित हो जाऊँ सच में चिन्ता में नहिं मन उलझे ॥ सोने की जंजीरों से ये पैर बँधे कैसे तोड़ें। अहंकार को तृप्त किया, बस, बीता क्षण कैसे पकडूं ॥ प्राणों में अब भक्ति जगे, श्वासों में कीर्तन कर लूँ ॥3 ॥ जीवन का पुष्प प्रफुल्लित हो, बस लहर कूल तक आ जाये। पत्थर में भी देवत्व छिपा, यदि भीतर समझ जो आ जाये । जीवन में सोया दीप जले, प्राणों में गीत उभर आये। आस्तिकता के पंख फैल जा, चोट लगे अन्तर जागे ॥ हे प्रभु! अब दरवाजा खोलो, कुछ सुगन्ध पा जाऊँ ॥4॥ सदर, नागपुर - 440001 सो जाता था। बच्चों से वार्तालाप लगभग बंद था । एक रोज खा-पीकर लेटा नहीं, बैठा रहा। पत्नी ने कहा'कुछ करते क्यों नहीं ?" 'क्या करूँ" वह अंदर से सब्जी की टोकनी उठा ले आईं। बोलीं 'कल बाजार में मटर अच्छा मिल गया, सो दो किलो लेती आई । ये पुराना अखबार सामने रखो और बैठे-बैठे मटर ही छील डालो। " मैं चुपचाप मटर छीलने में व्यस्त हो गया। बहुत दिनों बाद कुछ काम करते अच्छा लगा। साथ ही यह भी लगा कि राजनीति में घुसने से अच्छा तो यही था कि मैं बैठे-बैठे मटर ही छीलता ! प्लाट : 7, ब्लाक 56-ए, मोतीलाल नेहरू नगर (पश्चिम) भिलाई (दुर्ग) छत्तीसगढ़ पिन-490020 लालचन्द्र जैन 'राकेश' नौ दरवाजे बन्द करे पै, उड़ गई सोन चिरैया । पड़ा रहा सोने का पिंजरा, कोऊ नहीं पुछैया ॥ (1) उड़ गई सोनचिरैया बड़े यत्नों से पाली पोषी, नौ मन तेल लगाया । देख-देख चमकीली चमड़ी फूला नहीं समाया ॥ आत्मतत्त्व को जान न पाये, काया के इतरैया । नौ दरवाजे..... ॥ है (2) माता-पिता, पुत्र- पत्नी सब मिलकर डाला घेरा । बचा न पाये चेतन धन को, लै गऔ काल लुटेरा ॥ नहीं लौटकर आये कोई, करे सैं रोवा -रैया ॥ नौ दरवाजे... ॥ (3) आँगन बैठी रोय अंगना, मरघट तक घरवारे । उतै की राख सिरा न पायी, होन लगे बटवारे ॥ सबने लीपा-पोती कर लाई, हो गई खा-खा खैया ॥ नौ दरवाजे... ॥ (4) जब तक हंसा, तब तक रिश्ते, हो गइ ख़तम कहानी। बचपन गया खिलौनों के सँग, विषयन गई जवानी ॥ अब 'राकेश' भजन कर प्रभु का, जो चाहे हित भैया । नौ दरवाजे बन्द करे पै उड़ गई सोन चिरैया ॥ नेहरु चौक, गली नं. 4, गंजबसौदा, ( विदिशा ) म.प्र. - मई 2002 जिनभाषित 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतिक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य नाशक मोटापा | समृद्ध एवं श्रमविरत समाज का विकृत आभूषण है- मोटापा । बैठे-ठाले जीवन का दर्पण है मोटापा । गलत आहार-विहार एवं चिन्तन के दुष्परिणाम स्वरूप प्रकृतिप्रदत्त दण्ड है मोटापा समृद्ध लोग बाहर तो जमाखोरी करते ही हैं, अपने शरीर के अंदर भी चर्बी के रूप में जमाखोरी करते हैं। आज का आदमी स्वास्थ्य को लक्ष्य मानकर नहीं खाता है, स्वाद के आकर्षण में बीमारी के लिए खाता है। हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे कि आमद कम और खर्चा ज्यादा, ये लक्षण मिट जाने के। कूबत कम और गुस्सा ज्यादा, ये लक्षण पिट जाने के ।। इसी प्रकार खाना महत्त्वपूर्ण नहीं है, पचाना महत्त्वपूर्ण है । खाना वही हितकर है जो पचकर हमारे शरीर में अवशोषित होकर रस में परिवर्तित हो, न कि चर्बी के रूप में जमा हो । क्या आप जानते हैं कि 1. प्रतिदिन मात्र एक ग्लास दूध और 3 ब्रेड के स्लाइस अतिरिक्त लेने से प्रतिवर्ष 12 कि.ग्रा. अतिरिक्त वजन बढ़ जाता है। मोटापाग्रस्त लोगों में वजन बढ़ाना सरल होता है, लेकिन वजन घटना कठिन होता है। एक मोटे व्यक्ति को एक कि.ग्रा. वजन कम करने के लिए प्रतिदिन कम से कम 6000 कैलोरी शक्ति खर्च करनी पड़ती है। 5. मोटापे से 1. मधुमेह 2. उच्च रक्तचाप 3. विभिन्न हृदय रोग 4. फ्लेट फुट 5. घुटने-नितम्ब - कमर का अस्थि संधिवात 6. गठिया 7. सायटिका 8. गाउट 9. रयूमेटिक दर्द 10. श्वास कष्ट 11. हार्निया 12. कोलाइटिस 13. पित्ताशय रोग 14. बेरिकोज वेन्स 15. गुर्दे के विभिन्न रोग 16. नपुंसकता 17. स्त्री संबंधी रोग 18. स्नायविक रोग 19. आयु का कम होना 20 सौंदर्य का नाश आदि विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं । 20 मई 2002 जिनभाषित "जितनी मोटी कमर उतनी छोटी उमर मोटापे के निम्न लक्षण हैं 1 1. सामान्य से अधिक वजन हो जाता है। 2. श्रम का कार्य करने से श्वास फूल जाती है । 3. हिम्मत की कमी आती है और कुछ कर गुजरने की क्षमता का ह्रास हो जाता है। 4. तुरन्त सोचने की शक्ति कम हो जाती है। इस प्रकार तन और मन दोनों ही किसी परिश्रमसाध्य कार्य करने से डर जाते हैं। 5. आलस्य रहता है और अधिक निद्रा आती है। डॉ. रेखा जैन 6. मन पर संयम नहीं रहता, इस प्रकार सामान्य से अधिक खाया जाता है। 7. रक्तचाप का उच्च होना, मधुमेह, दमा तथा संधिवात जैसे रोग हो सकते हैं। इसके साथ-साथ चेहरे का सौन्दर्य भी चला जाता है। 8. शरीर बेडौल हो जाता है। कारण 2. 1 कि.ग्रा. वजन अतिरिक्त बढ़ने पर हृदय को 10 मील लंबी रक्त वाहिनियों में रक्त भेजना पड़ता है। इससे हृदय की कार्य क्षमता कम होने लगती है। 5. कब्ज के कारण कभी-कभी मोटापा, कब्ज के रोगियों 3. मोटे लोगों की रक्त वाहिनियों में कोलेस्टरॉल लाइपोप्रोटीन को भी हो सकता है। तथा अन्य तत्त्व जमकर उसे सँकरी बना देते हैं। फलतः स्थरी 6. मदिरापान, फास्ट फूड एवं मैदे से बने भोज्य पदार्थों स्केलरोसिस, उच्च रक्तचाप तथा अन्य रक्त संचार संबंधी रोग से भी मोटापा आता है। उत्पन्न होते हैं। 4. मांसपेशियों पर चर्बी जमा होने के कारण डायफ्राम के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। फलतः श्वास संबंधी रोग होते हैं । रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। 7. महिलाओं में मोटापा गर्भ निरोधक गोलियाँ लेने से भी आ जाता है। प्राकृतिक उपचार 1. संपूर्ण शरीर का वाष्पस्नान सप्ताह में दो-तीन बार देकर ठंडे जल से स्नान करें। 2. दोनों समय प्रतिदिन ठंडा स्नान कराते हैं, फिर टहलने के लिए भेजते हैं। 3. प्रतिदिन आधा घंटा धूपस्नान, तदुपरांत ठंडे जल से 1. परिश्रम न करना 2. कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं तला भुना भोजन सामान्य से अधिक मात्रा में खाने पर । 3. वंशानुगत कभी-कभी यह पीढ़ी दर पीढ़ी भी होता है। 4. Harmones और Metabolism की अव्यवस्था के कारण । स्नान । 4. सप्ताह में एक बार गीली चादर लपेट देकर सूखा घर्षण स्नान देते हैं। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. प्रातः काल एनीमा, नीबू जल अथवा सादे गुनगुने जल से देते हैं। 6. सप्ताह में एक दिन संपूर्ण मिट्टीस्नान देते हैं । 7. प्रतिदिन दो बार पेट पर गर्म-ठंडे तौलिये से सेंक आधे घण्टे तक देते हैं 8. सप्ताह में एक दिन बिना नमक के पानी से कुंजल क्रिया कराते हैं। 9. प्रतिदिन सुबह या शाम 3-5 कि.मी. अवश्य टहलना चाहिए। 10. परिश्रम युक्त कार्य अवश्य करने चाहिए। 11. सप्ताह में दो बार तेल मालिश तदुपरांत मिट्टी स्नान । योगासन एवं प्राणायाम 1. सूर्य नमस्कार, उदर शक्ति विकासक, पश्मिोत्तानासन, वज्रासन, उष्ट्रासन, शशांकासन, योगमुद्रा, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, शवासन । 2. अनुलोम विलाम, सूर्यभेदी उद्यानबंध एवं भस्त्रिका हुई 30 ग्राम चोकर दाल, मोटे आटे की एक रोटी ( 105 कैलोरी), प्राणायाम । भोजन तालिका हाथ कुटा कणीयुक्त चावल का भात 3/4 कटोरी (70 कैलोरी ), पत्ते वाली सब्जी एक कटोरी 200 ग्राम (90 कैलोरी), दही 3/4 कटोरी 100 ग्राम (60 कैलोरी) सलाद 200 ग्राम (80 कैलोरी), पकाने में घी आँवला, लहसुन तथा अंकुरित अनाज को पीस कर चटनी बनाए 50 ग्राम ( 60 कैलोरी) या तेल एक चम्मच 5 ग्राम (45 कैलोरी), अंकुरित अनाज 25 ग्राम (56 कैलोरी), नारियल, धनिया । कैलोरी संतुलन बनायें। मोटापा कम करने के लिए भोजन का पूर्णतया परित्याग हानिकारक है। उपवास के बाद भोजन शुरु करने पर मोटे लोग ज्यादा खाकर वजन दो गुनी रफ्तार से बढ़ा लेते हैं। कुछ लोग गलत तरीके से डायटिंग करके कुपोषणजन्य शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। डायटिंग के विभिन्न तरीकों जैसे वन डायमेन्शनल या मानोडायट विधि के अन्तर्गत जैसे फल ले रहे हैं तो सिर्फ फल लिया जाता है वह भी एक समय एक प्रकार का फल इसके साथ अनाज वगैरह नहीं लिया जाता है। लगातार वन डायमेन्शनल डायटिंग से मांसपेशियों में प्रोटीन की कमी से उनका क्षय होने लगता है। भूख, वोरियत तथा पेट संबंधी अन्य विकार उत्पन्न होते हैं। कम कार्बोहाइड्रेट, अधिक प्रोटीन या तरल प्रोटीन डायट डायटिंग के अंतर्गत कार्बोहाइड्रेट तथा वसारहित तथा अधिक प्रोटीन वाला आहार दिया जाता है। इसके दुष्प्रभाव से कुपोषण जन्य बीमारियाँ कमजोरी, मानसिक अस्थिरता तथा एकाग्रता की कमी आदि लक्षण दिखते हैं। हाइफाइबर डाइट डायटिंग के अंतर्गत प्रचुर रेशे वाले खाद्य पदार्थ जैसे छेमी, फली, सब्जियों, फलों तथा अनाजों का सेवन कराया जाता है। इस प्रकार डायटिंग काफी हद तक वैज्ञानिक एवं सुरक्षित है, परन्तु ज्यादा रेशेवाले खाद्यपदार्थ लेने से गैस तथा बदहजमी हो जाती है। वसाजनित कम कैलोरी वाला कण्ट्रोल्ड डायटिंग सर्वाधिक सुरक्षित एवं वैज्ञानिक प्रयोग हैं। इसे वर्षों तक निभाकर स्थाई रूप से वजन कम किया जा सकता है। इसमें सभी प्रकार के पोषक तत्त्व पाये जाते हैं, परन्तु कैलोरी 1200 1500 तक सीमित रखी जाती है। यह आहार योजना 6-18 सप्ताह तक लगातार निभाने से मनोवांछित फल प्राप्त किया जाता है। 1200 कैलोरी वाली आहार योजना मोटे लोग कार्बोहाइड्रेट तथा वसा वाले आहार कम से कम लें। इन्हें 60-100 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 40-50 ग्राम प्रोटीन तथा 10-15 ग्राम वसा वाले आहार लेने चाहिए। भोजन में दूध दही, या छाँछ अवश्य लें। आहार व्यवस्था इस प्रकार रखें 1. प्रातः काल खाली पेट 3 गिलास जल पीकर, शौच निवृत्ति हेतु जाएँ आसन या सैर करने के पूर्व एक नीबू (25 ग्राम), एक गिलास गर्म पानी, 20 ग्राम गुड़ का शर्बत ले (16+64 80 कैलोरी) आसन तथा सैर के बाद नाश्ते में पपीता 250 ग्राम (80 कैलोरी) एक गिलास छाँछ (60 कैलोरी), मुनक्का 10 ग्राम (30 कैलोरी) 170 कैलोरी लें। 2. दोपहर के भोजन में पालक के रस में दो घंटे पूर्व गूँथी = 3. 3:00 बजे- मौसमानुसार संतरा 150 ग्राम (72 कैलोरी) टमाटर 300 ग्राम ( 60 कैलोरी) या अमरूद 150 ग्राम (77 कैलोरी) या अनार 250 ग्राम (98 कैलोरी) या सेव 150 ग्राम (90 कैलोरी) या आलूबुखारा 150 ग्राम (77 कैलोरी) या पपीता 200 ग्राम (64 कैलोरी) । 4. 4:30 बजे- सब्जियों का सूप (45 कैलोरी) अथवा 75 ग्राम दही में 125 ग्राम पानी मिलाकर 200 ग्राम छाँछ (45 कैलोरी) अथवा नारियल का पानी 200 मिली. (50 कैलोरी ) । 5. सायंकालीन भोजन (6-7) बजे एक रोटी 30 ग्राम (105 कैलोरी), सब्जी 200 ग्राम (80 कैलोरी) दही 100 ग्राम (60 कैलोरी), सब्जी 100 ग्राम (20 कैलोरी), पकाने के लिए घी या तेल एक चाय चम्मच 5 ग्राम (45 कैलोरी), चटनी 50 ग्राम ( 60 कैलोरी) 6. 9:30 बजे- एक कप दूध 150 मिली. (90 कैलोरी ) । भाग्योदय तीर्थ प्राकृति चिकित्सालय सागर (म.प्र.) - मई 2002 जिनभाषित 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्मरण अतीत के झरोखे से डी.सी.जैन, पूर्व मुख्य अभियन्ता लगभग 30 वर्ष पूर्व मुझे सपत्नीक अमेरिका जाने का । पूर्व निर्धारित पड़ाव पेरिस पहुँचा। वहाँ पर हमारा स्टे चार दिन अवसर प्राप्त हुआ था। हमारा जहाज देहली इन्टरनेशनल हवाई का था। सायंकाल ग्रुप के सभी साथियों का वजन एवं ऊँचाई का अड्डे से उड़ान भरकर क्वेत एवं लंदन होता हुआ लगभग 26 घंटों | नाप लिया गया। अंत में पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति का 25 डॉलर का प्रथम में न्यूयार्क के केनेडी हवाई अड्डे पर सकुशल उतरा। वहाँ मेरे छोटे पुरस्कार मुझे मिला। रिजल्ट सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं भाई, जो कि वहीं पर डाक्टर हैं लेने आ गये थे। कस्टम की | रहा। वैसे इस ग्रुप में सबसे दुबला पतला व्यक्ति में ही था। मुझसे प्रक्रिया के पश्चात् जब हम लोग न्यूयार्क शहर की ओर जाने लगे | पूछा गया कि आप 6'-1"लम्बे हैं एवं आपका वजन केवल 73 तो वहाँ की गगनचुम्बी इमारतों एवं चौड़ी सड़कों को देखकर | किलोग्राम ही है। यह आप कैसे कंट्रोल कर पाये। मैंने माईक पर आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। कुछ क्षण तो ऐसा लगा कि हम उन भाई-बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि इसका मुख्य श्रेय किसी देवलोक में आ गये हैं, वैसे मैं स्वयं एक सिविल इंजीनियर मेरी पूर्ण शाकाहारी दिनचर्या को है। मैंने मांस एवं मदिरा के पूर्ण हूँ एवं उस समय मध्यप्रदेश लोक निर्माण विभाग में कार्यपालन निषेध का आजीवन व्रत ले रखा है। मैं हल्का शाकाहारी भोजन यंत्री के रूप में भवनों एवं सड़कों के निर्माण में संलग्न था। लेता हूँ, जिसमें सभी प्रकार की सब्जियाँ, सलाद एवं फलों का ___मैं इस सोच में डूब गया कि मेरे जीवनकाल में इस उच्च समावेश होता है। रात्रि में भोजन नहीं करता हूँ। सायंकाल के बाद स्तर के निर्माण कार्य कभी भारतवर्ष में हो भी पावेंगे? जिस देश केवल एक ग्लास गरम दूध लेता हूँ। उन सब पर मेरे वार्तालाप का का केवल दो सौ वर्ष का ही इतिहास हो एवं इतने कम समय में गहन असर हुआ एवं उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि वे धीरे धीरे मांसाहार का त्याग कर शाकाहार को अपनाने का प्रयत्न उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँच गया हो, इसको देखकर मुझे जैन करेंगे। सूर्यास्त के पूर्व भोजन करने का प्रयोग भी करेंगे। बीस ग्रन्थ 'छहढाला' के रचयिता पं. दौलतराम जी की निम्न पंक्तियाँ दिन उनके साथ रहकर उन्हें निकट से देखने एवं समझने का मुझे याद आ गईं मौका मिला। इस बीच उनसे विभिन्न विषयों पर वार्तालाप भी दौल समझ सुन चेत सयाने काल वृथा मत खौवे । हुआ। भगवान् महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकान्त के यह नरभव फिर मिलन कठिन है जो सम्यक नहीं होवे॥ संभवतः पण्डित जी की उक्त पंक्तियों का मर्म अमेरिका सिद्धांतों को समझने में उन्होंने विशेष रुचि दिखलाई। उनमें से के निवासियों ने समझ लिया था, जिन्होंने समय का सही उपयोग एक बुजुर्ग ने यह भी कहा-आपके द्वारा बतलाया गया अनेकान्त कर अपनी सम्यक् सूझबूझ, अथक परिश्रम एवं देश के प्रति सिद्धांत तो अलवर्ट आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के समर्पित होकर उसे उन्नति के शिखर पर पहुँचाया। काश, हम समकक्ष है। मैने उनसे कहा कि आइंस्टीन जो आज कह रहे हैं, भारतवासी पं. जी के द्वारा दिये गए सम्यक् बोध को कार्य रूप में उसका प्रतिपादन तो भगवान् महावीर ने 2500 वर्ष पूर्व ही कर परिणित कर सकें ! उस समय अमेरिका में रहने वाले नागरिकों के दिया था। बारे में हमारे देश में बड़ी गलत धारणा था कि वे तो मलेच्छ हैं भगवान् राम की मर्यादा एवं कृष्ण के दर्शन से भी वे एवं उनका जीवन निम्नकोटि का है। मैंने उनका आचरण इस प्रभावित दिखे। धारणा के विपरीत पाया। वे अत्यधिक प्रगतिशील, अनुशासनप्रिय भारतीय संस्कृति से वे अत्यधिक प्रभावित हैं। विशेष रूप एवं ढंग से जीने की कला में माहिर होते हैं। से महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा एवं स्वदेशी के सम्यक् प्रयोग से लगभग डेढ़ माह अमेरिका में रहने के पश्चात् मुझे कंडक्टेड भारत वर्ष को स्वतंत्रता दिलाई, इसकी हार्दिक प्रशंसा करते हैं। टूर के माध्यम से अमेरिकन लोगों के साथ यूरोप के छह देशों की ईसामसीह के बाद वे गाँधीजी को 'महामानव' संबोधित कर आदर प्रकट करते हैं। यात्रा पर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ई-2/162, अरेरा कॉलोनी, हमारा चार्टर्ड प्लेन न्यूयार्क से उड़कर हमारे ग्रुप के पहले | भोपाल-462016 भोस 22 मई 2002 जिनभाषित - Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैराग्य भावना पं. भूधरदासजी कृत 'पारस पुराण' से बीज राख फल भोगवै, ज्यों किसान जग मांहि। । शब्दार्थ - कथनी-उपदेश, आवलि-पंक्ति, लगत-लगती त्यों चक्री नृप सुख करे, धर्म विसारै नाहिं ॥1॥ । है, भरम-भ्रम, बुधि-बुद्धि, भागी-दूर हो जाती है, तन-शरीर, शब्दार्थ - राख-रख करके, फल-फसल का, नृप-राजा, | विचार्यो-विचार किया, इह-इस, ओर-अन्त, दव-जंगल। विसारै-भूलना। अर्थ - जिस प्रकार सूरज के किरणों की पंक्ति से अंधकार अर्थ- जिस प्रकार किसान बीज को रख लेता है और शेष | दूर हो जाता है उसी प्रकार मुनिराज के उपदेश को सुनकर उस बची हुई फसल का भोग करता है, उसी प्रकार चक्रवर्ती राजा भी | चक्रवर्ती की भ्रम रूपी बुद्धि दूर हो गयी एवं परम धर्म के प्रति पंचेन्द्रिय विषय के सुख को भोगता हुआ भी धर्म को भूलता नहीं | अनुराग करते हुए उस चक्रवर्ती ने संसार, शरीर और भोगों के स्वरूप पर चिन्तन किया। इस संसार रूपी महाजंगल के भीतर इहविधि राज करै नरनायक, भोगै पुण्य विशालो।। भ्रमण करने का अंत नहीं है। इसमें जीव जन्म, मरण एवं बुढ़ापा सुख सागर में रमत निरंतर, जात न जान्यो कालो ॥ । रूपी जंगल की अग्नि में जल रहा है एवं भयंकर दुःखों को प्राप्त एक दिवस शुभ कर्म संजोगे, क्षेमंकर मुनि वंदे । । कर रहा है। देखि श्री गुरु के पद पंकज, लोचन अलि आनंदे ॥2॥ कबहूँ जाय नरक थिति भुंजै, छेदन भेदन भारी। - शब्दार्थ - विधि-प्रकार, नरनायक-चक्रवर्ती, रमत-रमण कबहुँ पशु परजाय धरै तहँ, बध बंधन भयकारी।। करता है, क्षेमंकर-क्षेमंकर नाम के मुनि, श्री गुरु-श्रीगुरु, पदपंकज सुरगति में पर सम्पत्ति देखे, राग उदय दुःख होई। चरण कमल, लोचन-आँखों में, अलि-भौंरा। मानुष योनि अनेक विपत्तिमय, सर्वसुखी नहिं कोई॥5॥ अर्थ- उपर्युक्त प्रकार से धर्म को न भूलता हुआ वह शब्दार्थ- थिति- आयु, भुंजै- भोगता है, धरै-धारण करता चक्रवर्ती राज्य करता है एवं पुण्य के विशाल वैभव को भोगता है | है, तहँ-वहाँ। एवं पंचेन्द्रिय विषय रूप सुख में निरन्तर रमण करता है। उसे | अर्थ- कभी यह जीव नरक में जाकर आयुपर्यन्त छेदनमालूम ही नहीं हो पाता कि कितना काल बीत गया है। एक दिन | भेदन आदि के दुःखों को भोगता है। कभी तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उस चक्रवर्ती ने तीव्र पुण्य कर्म के संयोग से क्षेमंकर मुनि की | पर्याय को प्राप्त करता है। वहाँ वध, बंधन, भय आदि के दुःखों को वंदना की। श्री गुरु के चरण कमलों को देखकर उसकी आँखों में | भोगता है। देवगति में भी दूसरों की संपत्ति को देखकर राग के इतना आनंद हुआ, जितना एक भौरे को कमल की सुगंध से होता । | उदय के कारण दुःखी होता है और मनुष्य पर्याय में भी अनेक प्रकार की विपत्तियों से सहित है। इस संसार में कोई भी सुखी नहीं तीन प्रदक्षिण दे सिर नायो, कर पूजा थुति कीनी। | है, सब दु:खी ही हैं। साधु समीप विनय कर बैठ्यो, चरणन में दृष्टि दीनी॥ कोई इष्ट वियोगी विलखै, कोई अनिष्ट संयोगी। गुरु उपदेश्यो धर्म शिरोमणि, सुन राजा वैरागे । कोई दीन दरिद्री विलखै, कोई तन के रोगी॥ राजरमा वनितादिक जे रस, ते रस बेरस लागे॥3॥ किसही घर कलिहारी नारी, कै बैरी सम भाई। शब्दार्थ- थुति-स्तुति, साधु-क्षेमंकर मुनि, समीप-पास किसही के दुःख बाहिर दीखै, किसही उर दुचिताई॥6॥ में, रमा-लक्ष्मी, वनितादिक-स्त्री पुत्रादि, बेरस-बिना रस वाले। शब्दार्थ- इष्ट- प्रिय, विलखै-रोता है, दीन-गरीब, - अर्थ- उस चक्रवर्ती ने क्षेमंकर मुनिराज की तीन प्रदक्षिणा | कलिहारी-झगड़ा करने वाली,कै-किसी के, दीखें-दिखते हैं, व नमस्कार करके पूजा, स्तुति की एवं उनके समीप विनयपूर्वक दुचिताई-स्थित रहते हैं/ छिपाये रहते हैं। बैठ गया एवं अपनी दृष्टि साधु के चरणों की ओर कर ली। धर्म | अर्थ- इस मनुष्य पर्याय में कोई इष्ट पदार्थ के वियोग से, शरोमणि उस चक्रवर्ती ने उन मुनिराज का उपदेश सुना एवं वैराग्य | कोई अनिष्ट पदार्थों के संयोग से रोता है, कोई गरीबी के कारण, को प्राप्त हो गया। अब उसे राज, लक्ष्मी, स्त्री, पुत्रादि में जो आनंद | कोई दरिद्रता के कारण बिलखता है, कोई शरीर के रोगी होते हैं, आता था, वह आनंद अब बेरस (बिना रस वाला) लगने लगा। | किसी के घर में पत्नी झगड़ा करने वाली है! किसी का भाई मुनि सूरज कथनी किरणावलि, लगम भरम बुधि भागी। | दुश्मन के समान होता है। किसी के दुःख दिखाई देते हैं एवं कोई भव-तन-भोग स्वरूप विचार्यो, परम धरम अनुरागी।। हृदय में ही छिपाये रहता है। इह संसार महावन भीतर, भरमत ओर ना आवै। कोई पुत्र बिना नित झूरे, होय मरे तब रोवै। जामन मरन जरा दव दाहै, जीव महा दुःख पावै ॥4॥ खोटी संतति सो दुःख उपजै, क्यों प्रानी सुख सोबै॥ -मई 2002 जिनभाषित 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्य उदय जिनके तिनके भी, नाहीं सदा सुख साता।।। शब्दार्थ - पोषत-पोषण करने से, अति-अत्यन्त, सोषत यह जगवास जथारथ दीखे, सब दीखै दुःख दाता ॥7॥ | शोषण करने से, बराबर-समान, प्रीति-राग, राचन जोग-रचने शब्दार्थ-नित-हमेशा, झूरै-सूखता है, संतति-संतान से, | पचने योग्य, विरचन जोग-दूर करने योग्य, यामें-इसमें। उपजै-उत्पन्न होता है, जथारथ-जैसे है वैसे/ यथार्थ में। अर्थ- पोषण करने से यह शरीर अत्यन्त दुःख और दोष अर्थ- कोई पुत्र के बिना हमेशा सूखता है, किसी के पुत्र | को करने वाला है और इस शरीर का शोषण करने से सुख को होकर मर जावे, तब रोता है एवं संतान खोटी हो तो उसके कारण उत्पन्न करने वाला है। ऐसे दुर्जन के समान इस शरीर से मूर्ख लोग दुःख उत्पन्न होता है। यह प्राणी कहाँ सुख प्राप्त कर सकता है ? ही राग को बढ़ाते हैं। रचने-पचने योग्य इस शरीर का स्वभाव अर्थात् कहीं भी नहीं। जिनके हमेशा पुण्य का उदय चलता है । नहीं है। इसका स्वभाव तो दूर करने योग्य है। इसीलिये इस शरीर उनके भी हमेशा सुखशांति नहीं होती है। इस संसार को जैसा है, को प्राप्त करके महान्-महान् तपों को करना चाहिये, इसमें यही वैसा देखा जावे तो सब ही जीव दुःख के देने वाले देखे जाते हैं। | सार है। जो संसार विषै सुख होता, तीर्थंकर क्यों त्यागे। भोग बुरे भव रोग बढ़ावै, बैरी हैं जग जीके। काहे को शिव साधन करते, संयम सों अनुरागे॥ बेरस होंय विपाक समय अति, सेवत लागैं नीके। देह अपावन अथिर घिनावन, यामे सार न कोई। वज्र अगिनि विष से विषधर से, ये अधिके दुःख दाई। सागर के जल सो शुचि कीजे, तो भी शद्ध ना होई ॥8॥ धर्म रतन के चोर चपल अति, दुर्गति पंथ सहाई 11॥ शब्दार्थ-विषै-में, अपावन-अपवित्र, यामें-इसमें, शुचि- शब्दार्थ - जीके-आत्मा के, विपाक-उदय, लागैं-लगते पवित्र। हैं, नीके-अच्छे, अगिनि-अग्नि, विष-जहर, चपल-चंचल, पंथअर्थ- यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकर घर का त्याग | रास्ते में, सहाई-सहायता करते हैं। क्यों करते एवं मोक्ष के साधन स्वरूप संयम से अनुराग क्यों अर्थ- संसार रूपी रोग को बढ़ाने वाले ये पंचेन्द्रिय के भोग करते? इस प्रकार से संसार भावना का चिंतन करते हुए वह | संसारी प्राणियों के बैरी हैं। ये सेवन करते समय बहुत अच्छे लगते चक्रवर्ती शरीर की अपवित्रता का विचार करता है। हैं, परन्तु इनका फल अत्यन्त बेरस है। ये भोग वज्र से, अग्नि से, यह शरीर अपवित्र है, अस्थिर है, घिनावना है, इसमें कोई | विष से एवं विषधर से भी अधिक दुःख को देने वाले हैं। ये भोग सार नहीं है। समुद्र के जल से भी इसे पवित्र किया जाये तो भी धर्म रूपी रत्न को चुराने के लिए चोर हैं, अत्यन्त चंचल हैं और यह शरीर शुद्ध नहीं हो सकता है। दुर्गति के रास्ते में ले जाने में सहायता करते हैं। सात कुधातु भरी मल मूरत, चर्म लपेटी सोहै। । मोह उदय यह जीव अज्ञानी, भोग भले कर जाने। अंतर देखत या सम जग में, अवर अपावन को है। ज्यों कोई जन खाये धतूरा, सो सब कंचन माने॥ नव मल द्वार स्रवे निशि वासर, नाम लिये घिन आवै। ज्यों-ज्यों भोग संजोग मनोहर, मनवांछित जन पावै । व्याधि उपाधि अनेक जहाँ तहँ, कौन सुधी सुख पावै॥9॥ तृष्णा नागिन त्यों-त्यों डंके, लहर जहर की आवै।।12।। शब्दार्थ - सात कुधातु-रस, रुधिर, मांस, मेदा, हड्डी, शब्दार्थ - भले कर-अच्छा करने वाले, धतूरा-बुद्धि को मज्जा, वीर्य । चर्म-चमड़ी, सोहै-अच्छा लगता है, यासम-इसके विकृत करने वाला पदार्थ, कंचन-स्वर्ण, जन-लोग, पाढं-प्राप्त समान, अवर-दूसरा, नवमल द्वार-आँख दो, कान दो, मुख एक, करते हैं, ज्यों-ज्यों-जैसे-जैसे, त्यों-त्यों-वैसे-वैसे, लहर-तरंग। मल एक, मूत्र एक, नाक दो, स्रवें-बह रहे हैं, निशि-रात्रि, वासर अर्थ- जिस प्रकार कोई जीव बुद्धि को विकृत करने वाला दिन, सुधी-ज्ञानी जीव।। अर्थ-यह शरीर रस, रुधिरादि सात कुधातुओं से भरा हुआ पदार्थ (धतूरा) सेवन करता है तो उसे सब संसार स्वर्ण सरीखा है, मल की मूर्ति है, लेकिन बाहर चमड़ी के कारण अच्छा लगता नजर आता है, उसी प्रकार अज्ञानी जीव मिथ्यात्व कर्म के उदय से है, यदि अंदर देखें तो इसके समान अपवित्र वस्तु संसार में दूसरी पंचेन्द्रिय भोगों को भला करने वाला जानता है। जैसे-जैसे मन नहीं है। जिनका नाम लेने से ग्लानि-सी लगती है, ऐसे नव मल वांछित एवं मन को अच्छे लगनेवाले मनोहर भोगों का संयोग दिन-रात इस शरीर से बहते रहते हैं। और जहाँ अनेक प्रकार की करता है, वैसे-वैसे तृष्णा रूपी नागिन डंक मारती है तो इस पर शारीरिक बीमारियाँ एवं उपाधियाँ लगी हैं, वहाँ कौन बुद्धिमान | और जहर चढ़ता जाता है। अर्थात् इसके भोगों की चाह और सुख की प्राप्ति कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं कर सकता है। पोषत तो दुःख दोष करै अति, सोषत सुख उपजावै। | बढ़ती जाती है। दुर्जन देह स्वभाव बराबर, मूरख प्रीति बढ़ावै॥ अर्थकर्ता- ब्र. महेश राचन जोग स्वरूप न याको, विरचन जोग सही है। श्रमण संस्कृति संस्थान यह तन पाय महातप कीजे, यामें सार यही है 10॥ सांगानेर, (जयपुर) 24 मई 2002 जिनभाषित - Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा दस दिवसीय मोटापा निवारण शिविर दस दिन में 5 से 7 किलो वजन कम करें। प्रत्येक माह की 1 से 10 तारीख तक एवं 21 से 30 ता. तक । पंजीयन परामर्श- 29,30.31 तारीख ___ एवं 18, 19, 20 तारीख तक। संपर्क करें भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय, सागर फोन-46071, 46671 सूरज की कोई परिपाटी अशोक शर्मा जिनके पीछे भीड़ निरन्तर चलती शीश झुकाए कोई एक अकेला उनसे कैसे होड़ लगाए? बिना सितारे चाँद गगन पर पाँव नहीं धरता ज्योत्सना के महाकाव्य का पाठ नहीं करता सूरज जिसकी किरण-किरण को अंगारों ने चूमा आत्मजयी है संघर्षों से कभी नहीं डरता कोटर के सीमित चंदा का तारे साथ निभाते सम्मोहित हैं इसीलिए तो सारी रात निभाते ठंडी आग लुटाने वाला राज-मुकुट पहने वाह री दुनिया बाहरी दुनिया तेरे क्या कहने व्यक्ति पूजा जहाँ लक्ष्य पर हावी हो जाए पथ भूले यात्री को कोई कैसे मोड़ दिखाए ? सूरज या साधक सदियों विश्राम नहीं लेता श्रम ही जिसका धर्म सनातन दाम नहीं लेता अपने नीड़ तोड़कर जिसने उजड़े चमन बसाए उस अनाम राही को कोई नाम नहीं देता जिनके पात्र स्वयं खाली हैं प्यास बुझाने आए होंठों पर मुरली को धर कर रास रचाने आए कैसी यह बीमार सदी है ठीक नहीं होती सूरज की कोई परिपाटी लीक नहीं होती एक नहीं सौ-सौ भूलों के जिनने नीड़ बसाए उनके अपराधों का कोई कैसे जोड़ लगाए? बिना दवा, इंजेक्शन व साइड इफेक्ट्स मात्र प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा मधुमेह निवारण शिविर प्रत्येक माह की 11 ता. से 20 ता. तक। पंजीयन परामर्श-प्रत्येक माह 8-9-10 ता. तक । संपर्क करे भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय, सागर, फोन -46071,46671 अभ्युदय निवास 36-बी, मैत्री निवास, सुपेला भिलाई (जिला-दुर्ग)-490023 कल्पद्रुम महामंडल विधान संपन्न खनियाधाना (शिवपुरी)। परमपूजनीया आर्यिका का मन मोह लिया। जैन-जैनेतर सभी लोगों ने धर्म लाभ विशाश्री माताजी के ससंघ सन्निध्य में श्रमण संस्कृति संस्थान, | लिया। समापन कार्यक्रम पर ब्र. संजीव भैया ने कहा-- साँगानेर से पधारे विधानाचार्य ब्र. संजीव भैया कटंगी एवं | अभी यह नगरी स्वर्णपुरी लग रही है, जिस क्षण यहाँ पं. सुधर्मचन्द्र शास्त्री के कुशल निर्देशन में कल्पद्रुम महामंडल | आचार्य विद्यासागरजी महाराज ससंघ आवेंगे, तब यह प्रभावनापूर्वक संपन्न हुआ। खनियाधाना नगर मोक्षपुरी लगेगी। सभी कार्यक्रम चौरासी ब्र. संजीव भैया के रात्रिकालीन प्रवचनों ने जनता | समाज द्वारा संपन्न किये गए। -मई 2002 जिनभाषित 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाचार निर्जरा, मोक्ष बताकर देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धान दृढ़ करते हैं। कुरीतियों और आडम्बर जैसे मिथ्यावादी बातों को छुड़ाया जाता दिगम्बर जैन नैतिक शिक्षा समिति द्वारा शिविरों है। चतुर्थ भाग में- अनुयोगों का महत्त्व, जीवन में उनकी उपयोगिता, के आयोजन श्रावक के कर्तव्य, बारह भावनाओं का चिन्तन-मनन, महापुरुषों देश और समाज जिस कदर अवनति और नैतिकता की के जीवनचरित्र, तीन लोक की जानकारी जैसे मुख्य विषय होते ओर बढ़ रहा है, उससे समाज का दायित्व बढ़ जाता है कि वह हैं। पाँचवाँ भाग तो शास्त्री के समकक्ष होता है, जिसमें चर्चा होती अपने बच्चों को नैतिकता का ऐसा पाठ दे, जिससे बालक में है- प्रतिमाओं की। 11 प्रतिमाओं को धारण करना मोक्ष के लिए आत्मविश्वास जाग्रत हो, बड़ों के प्रति आज्ञाकारी बने, राष्ट्रनिर्माण क्यों जरूरी है, उनका पालन करने पर गुणस्थानों, कर्म, ध्यान जैसे में सहयोग करे, अपने जीवन को स्वस्थ और दीर्घजीवी बनाए। विषयों पर जानकारी प्राप्त कराई जाती है। दिगम्बर जैन नैतिक शिक्षा समिति ने पिछले एक दशक से ऊपर शिविरों में पढ़ाई के लिए स्कूल, कॉलेजों की तरह कक्षाएँ लाखों बच्चों के चरित्र को सुधारा-सँवारा है। गर्मियों की छुट्टियों लगती है। बहुत से शिविरों में संयोजक स्कूलों को ले लेते हैं और का वह भरपूर इस्तेमाल करती है। एक-एक सप्ताह के लिये विधिपूर्वक कक्षाएं लगाई जाती हैं। पढ़ाने वाले अध्यापक आते प्रत्येक मन्दिर में छह हफ्तों तक ये शिविर लगाती है, जिसमें हैं, जरूरी संकेत बोर्ड पर लिखते हैं, विषय को खोलकर समझाते हजारों बच्चे भाग लेकर नैतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसी के साथ बच्चों को प्रात: उठते ही नौ बार णमोकार मंत्र, हमारे देश में इस तरह की संस्थाएँ हैं ही नहीं। दिगम्बर बड़ों का अभिवादन, पैर छूना, पानी छानकर पीना, देवदर्शन, जैन नैतिक शिक्षा समिति अपने सीमित साधनों के बलबूते पर यह संयम, स्वाध्याय, राष्ट्रनिर्माण के आवश्यक कर्त्तव्य आदि बातों सब शिविरों का आयोजन कर रही है। इस वर्ष ये शिविर 19 मई को याद कराकर प्रेक्टिकल अभ्यास कराया जाता है। स्वास्थ्य के 2002 से शुरू हो रहे हैं, जिनके लिए समिति ने मन्दिरों के लिए नाखूनों की देखभाल, दोनों वक्त दाँत साफ रखना, रोज | अध्यक्षों और मंत्रियों से निवेदन किया है कि वे अपने शिविरों की नहाना, साफ-सुथरे कपड़े पहनना आदि बातें सिखलाई जाती हैं। तारीखें 7/9 दरियागंज, नई दिल्ली को भेज दें या फोन करेंव्यवहारिक बातों में छुट्टियों के दिनों में विशेष रूप से माता-पिता | 221236 (घर).2155487(कार्या.)। " के काम में हाथ बँटाना, कापी-पुस्तकों की देखभाल, गृहकार्य श्री किशोर जैन 'संयोजक शिविर' को सुव्यवस्थित तरीके से करने आदि कामों के साथ राष्ट्रनिर्माण 54 रशीद मार्केट, दिल्ली-51 में हम कैसे सहयोग दे सकते हैं, यह सिखाते हैं। इसके अतिरिक्त बिजली जलती न छोड़े, नल खुला न छोड़े, जीवन में काम करते विशिष्ट अवसरों पर पशुवध गृह बन्द रखने का समय ईमानदारी और सत्यता के आधार पर आदर्श लोकोपयोगी आदेश जीवन के साथ देश का सम्मान और इसकी सुरक्षा के लिए अपने मध्यप्रदेश के राज्यपाल के नाम तथा आदेशानुसार स्थानीय को बलिदान कर देना चाहिए, आदि बातें सिखाई जाती है। एक शासन विभाग के अपर सचिव के द्वारा क्रमांक -- 936/69/मं./10सप्ताह के ये शिविर दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में लगाए जाते हैं। 03/90, दि. 10.5.1981 के अनुसार “राज्य शासन आदेशित इस समिति के पास समाजसेवी कार्यकर्ताओं की एक टीम है, जो करता है कि नीचे दिए गए विशिष्ट अवसरों पर स्थानीय निकायों सब शिविरों का संचालन करती है। उसने एक पाठ्यक्रम तैयार की सीमा में स्थित समस्त पशुवध गृह एवं मांस बिक्री की दुकानें किया है, जिसे पाँच भागों में विभाजित किया है। पहले भाग में बंद रखी जाएँबच्चों को णमोकार मंत्र, मंत्र का उच्चारण, तीर्थंकर कैसे बनते हैं, (1) गणतंत्र दिवस (2) गाँधी निर्वाण दिवस (3) महावीर तीर्थकर और भगवान में क्या अंतर है। चौबीस भगवान के नाम | जयंती (4) बुद्ध जयंती (5) स्वतंत्रता दिवस (6) जन्माष्टमी याद कराकर उनके चिह्नों की जानकारी बच्चे प्राप्त करते हैं, जीव- | (7) रामनवमी (8) गाँधी जयंती (9) गणेश चतुर्थी अजीव का ज्ञान प्राप्त करते हैं। शिक्षावली के दूसरे भाग में पाँच | (10) पर्युषण पर्व का प्रथम दिवस (11) डोल ग्यारस (12) पाप-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह की परिभाषा एवं इन | पर्युषण पर्व का अंतिम दिन (13) अनन्त चतुर्दशी (14) प!षण पापों से छूटने के उपाय बताये जाते हैं। गतियों की जानकारी | पर्व में संवत्सरी व उत्तमक्षमा (15) भगवान् महावीर निर्वाण देकर श्रेष्ठ गति कैसे प्राप्त करें, यह बताया जाता है इसी प्रकार | दिवस (16) चैती चाँद (17) संत तारण-तरण जयंती। काम, क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों की जानकारी और उनमें अतः समस्त जिलाध्यक्ष एवं समस्त संभागीय उपसंचालक कैसे मन्दता लायें, यह बताया जाता है। पर्व हमारे जीवन में | नगर प्रशासन अपने क्षेत्र में स्थित समस्त स्थानीय निकायों को समाज और राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य जाग्रत करते हैं। तीसरे भाग में | तदनुसार उचित कार्यवाही के लिए निर्देशित करें। छह द्रव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल के बारे | इस परिपत्र के माध्यम से इस विभाग के द्वारा पहले के में तथा उससे आगे सात तत्त्वों-जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, | परिपत्र क्रमांक 5666/330/18/नगर/एक, दि. 16.8.1971 को 26 मई 2002 जिनभाषित Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरस्त किया जाता है। राज्य शासन के इस आदेश को दृष्टिगत करके प्रदेश के अहिंसक एवं शाकाहारी समाज का प्रशासन एवं निकाय के प्रमुख अधिकारियों से विनम्र अनुरोध है कि वे अपने अधीनस्थ अधिकारियों को अविलम्ब आदेश प्रसारित करें, ताकि इस वर्ष इन अवसरों पर बूचड़खाने एवं मांस बिक्री की दुकानें बंद रखी जा सकें। पी. के. जैन (मोनू ) मेन रोड, छपारा - 480884 (सिवनी ) ( म.प्र.) नारेली ग्राम को पेयजल हेतु गोद लिया भगवान् महावीर के 2600वें जन्मजयंती वर्ष के उपलक्ष्य में दि. 22.4.2002 को ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र कमेटी व दातारों की ओर से सरकार द्वारा अकाल पेयजल योजना के अन्तर्गत क्षेत्र कमेटी ने नारेली ग्राम को 3 पानी के टैंकर (लगभग 15,000 लीटर) जल प्रतिदिन देने के सहयोग का आश्वासन सरकार को दिया है व उसी क्रम में आज इस योजना का शुभारम्भ माननीय उपखण्ड अधिकारी व उप जिला मजिस्ट्रेट मुग्धा सिन्हा व प्रशासनिक अधिकारी एवं कमेटी के वरिष्ठ पदाधिकारी व समाजसेवियों एवं नारेली ग्राम के नागरिकों की उपस्थिति में उपखण्ड अधिकारी द्वारा पेयजल टैंकर को हरी झण्डी दिखाकर शुभारम्भ किया। यह व्यवस्था लगभग 3 माह तक जारी रहेगी। भागचंद गदिया भाग्योदय ने भाग्योदय तीर्थ विकलांग केन्द्र की स्थापना पू. गुरुदेव की कारुण्य कृपा से 20 अप्रैल 1996 में हुई थी, तब से अब तक हजारों विकलांगों को कृत्रिम हाथ पैर एवं पोलियोग्रस्त मरीजों को कैलीपर्स लगाए गए हैं। इस केन्द्र द्वारा न केवल सागर में वरन् मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों एवं गुजरात, राजस्थान प्रांतों में भी अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराई गई है। आचार्य श्री विद्यासागर जी के सान्निध्य में भी महुआ, नेमावर, अमरकंटक आदि स्थानों पर सेवाएँ प्रदान कीं। इस विभाग में गरीब एवं असहाय मरीजों का निःशुल्क तथा बाकी सक्षम मरीजों का सशुल्क उपचार किया जाता है। केन्द्र की विश्वसनीयता एवं कृत्रिम अंगों के उपकरणों की गुणवत्ता को देखते हुए सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठन शिविर लगाने के लिए आमंत्रित करते हैं। कर्मों ने जिन्हें बेसहारा किया, उन्हें सहारा दिया टड़ैया एवं अनेक जैन व्ही.के जैन कृत्रिम अंग विशेषज्ञ भाग्योदय तीर्थ विकलांग केन्द्र विद्यासागर मार्ग करीला, सागर (म. प्र. ) जतारा ( टीकमगढ़ म. प्र. ) । सन्त शिरोमणि, प्रातः स्मरणीय परमपूज्य 108 आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं आचार्य श्री के परमप्रभावक शिष्य परमपूज्य मुनि श्री समता सागर, मुनि श्री प्रमाणसागर एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से बुन्देलखण्ड के सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पपौरा जी ( टीकमगढ़, म.प्र.) के प्रांगण में, इन्हीं परमपूज्य त्रय महाराजों के सान्निध्य में दयोदय सेवा केन्द्र (पशुशाला) का शिलान्यास दिनांक 9/12/2001 को इंजीनियर श्री विनोद कुमार जैन (बिलासपुर म.प्र.) के कर कमलों से एवं विधिवत उद्घाटन दिनांक 10 मार्च 2002 को अतिथि मुख्य नवभारत समाचार समूह के सम्पादक एवं राज्यसभा सदस्य माननीय श्री प्रफुल्ल कुमार जी माहेश्वरी एवं खजुराहो क्षेत्र के सांसद माननीय श्री सत्यव्रत चतुर्वेदी जी के कर कमलों से किया गया। उक्त केन्द्र श्री दिगम्बर जैन समाज टीकमगढ़ (म.प्र.) के तत्त्वावधान में टीकमगढ़ जिले के समस्त जैन समाज के सहयोग से संचालित है। इस केन्द्र में वर्तमान में लगभग 500 गाय एवं बछड़े विद्यमान हैं जिनमें अधिकांश गाय एवं बछड़े जतारा एवं टीकमगढ़ आदि स्थानों से कत्लखानों में कत्ल के लिये ले जाते समय कसाइयों से मुक्त कराये गए हैं । केन्द्र की समुचित व्यवस्था के लिये एक कार्यकारिणी समिति का भी गठन हो गया है, जिसके अध्यक्ष श्री कल्याणचन्द्र, जैन नायक, उपाध्यक्ष श्री रतनचन्द्र जैन, श्री महेन्द्र जैन (बड़ागाँव) श्री इंजीनियर जयकुमार, महामंत्री श्री अभिनन्दन कुमार जैन गोइल मंत्री श्री अनिल जैन बड़कुल, संयुक्त मंत्री श्री हकुमचन्द्र जैन प्रचारमंत्री श्री सुरेश जैन मवई, कोषाध्यक्ष श्री चक्रेश कुमार जैन टया एवं अनेक जैन बन्धु पदाधिकारी हैं। केन्द्र एवं पशुओं की समुचित देखभाल एवं व्यवस्था के लिए अनेक कर्मचारी केन्द्र के लिए नियुक्त हो गए हैं। केन्द्र पर चारे और पानी की तथा पशुओं के रहने की समुचित व्यवस्था हो गई है। पशुओं की चिकित्सा एवं उनकी देखभाल के लिये पशु चिकित्सालय भी खोला गया है। जहाँ इस केन्द्र के लिये अनेकों महानुभावों ने लाखों रुपये दान देकर केन्द्र को आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, वहीं जतारा (टीकमगढ़, म.प्र.) जैन समाज ने भी एक लाख साठ हजार रु. के लगभग इस केन्द्र को आर्थिक सहयोग एवं अनेक पशु प्रदान किए हैं। श्री पपौराजी, टीकमगढ़ (म.प्र.) से 5 कि.मी. पूर्व की ओर स्थित है। कपूर चन्द्र जैन 'बंसल ' गोकुल सदन, जतारा ( टीकमगढ़ ) चाँदखेड़ी में चंदाप्रभु के चमत्कार का पखवाड़ा और महामेला समाप्त चाँदखेड़ी, 7 अप्रैल। झालावाड़ जिले के खानपुर कस्बे में स्थित श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चांदखेड़ी के भूगर्भ से निकालकर दर्शनार्थ रखी गई तीनों अलौकिक प्रतिमाओं को आज सायं मुनि सुधासागर महाराज ने वापस वहीं रखवा दिया, जहाँ से वे इन्हें लेकर आये थे। चंदाप्रभु, अरिहन्त प्रभु और • मई 2002 जिनभाषित 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथ स्वामी की ये तीनों प्रतिमाएँ स्फटिकमणि की बनी हुई अत्यंत मनमोहक और अतिप्राचीन (चौथे काल की) है। इन प्रतिमाओं को 24 मार्च 2002 रविवार को किसी अदृश्य शक्ति की प्रेरणा से मुनि सुधासागर महाराज और उनका संघ इसी मंदिर के भूगर्भ से निकालकर लाये थे तथा उसी समय अपार जनसमूह को बता भी दिया था कि ये प्रतिमाएँ 7 अप्रैल तक दर्शनार्थ बाहर रहेंगी, इनके रक्षक देवों को इतने ही दिन का कहकर लाया हूँ। इसके बाद 24 मार्च से ही यहाँ इन मूर्तियों के दर्शन करने वालों का ताँता लगा रहा और कई घंटे कतारों में लगने के बाद भी दर्शन न होने की स्थिति बनने पर मुनिश्री के निर्देश पर 2 अप्रैल को दिन में 1बजे मंदिर के प्रवेशद्वार पर खुले स्थान में विराजमान किया गया। इस दिन यहाँ करीब 75 हजार दर्शनार्थी पहुँचे थे, कारण मध्यप्रदेश में उस दिन रंगपंचमी का त्यौहार होने से छुट्टी का दिन था। इसके साथ ही उसी दिन मंदिर में प्रवेश एकदम सीमित कर दिया गया और चाँदखेड़ी पहुँचे लोगों को चंदाप्रभु की दिव्य प्रतिमाओं के दर्शन तो हुए, लेकिन मूलनायक आदिनाथ भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा के दर्शन का मलाल रहा। इसके बाद भी आज दिव्य प्रतिमाओं को वापस भूगर्भ में स्थापित किए जाने तक यहाँ अपार जन सैलाब उमड़ा रहा। पूरे देश भर से लोग यहाँ आये और चंदाप्रभु के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य माना। इन 15 दिनों में यहाँ विराट मेले की स्थिति बनी रही। प्रबंध कमेटी ने अपनी पूरी क्षमता यात्रियों को दर्शन, भोजन-पानी की व्यवस्था में लगाई। झालावाड़ क्षेत्र के जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने भी चमत्कार भरे इस पखवाड़े में पूरा सहयोग दिया। आज सुबह मुनिश्री के मंगल प्रवचन के बाद उनके सान्निध्य में सम्मान समारोह सुशील मोदी ( मोदी इंजीनियरिंग) के मुख्य आतिथ्य में हुआ, जिसमें प्रशासन पुलिस और पत्रकारों का सम्मान किया गया। मुंगावली सेवा दल, अशोक नगर के नवयुवक मंडल, कुम्भराज के विद्यासागर नवयुवक मण्डल, खानपुर के नवयुवक मण्डल और महिला मण्डल के सेवा कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें सम्मानित किया गया। इतनी बड़ी तादाद में आए यात्रियों की भोजन-व्यवस्था को संभालने वाले चेतन जैन (ज्योति प्रेस) के सम्मान के वक्त पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा और मुनिश्री ने चेतन को आत्मीय आशीर्वाद दिया। इंजीनियर सतीश जैन का भी सम्मान किया गया। इन 15 दिनों में यह प्रतिनिधि भी चार बार चाँदखेड़ी गया और झालावाड़ से खानपुर के 35 किलोमीटर लम्बे मार्ग पर वाहनों की चैनसी बनी हुई दिखी और लोग अचंभित से लगे। इस मार्ग पर कई सैकड़ों स्थान हैं, लेकिन सभी जगह पुलिस तैनाती से यातायात सुचारु बना रहा। रोडवेज के कोटा, बारा, झालावाड़ डिपो ने भी बसों की भरपूर व्यवस्था कर लोगों को चाँदखेड़ी पहुँचाने में मदद की। रास्ते के गोलाना, मण्डावर, बाधेर के स्कूली 28 मई 2002 जिनभाषित छात्रों के मंडलों ने स्वेच्छा से यात्रियों को भीषण गर्मी में शीतल जल की व्यवस्था की। यह सारा चमत्कार परमपूज्य मुनि सुधासागर महाराज का था, जिन्होंने बरसों से आस कर रहे भक्तों को चंदाप्रभु के साक्षात् दर्शन करा दिये । आज दोपहर 2 बजे शांति मण्डल विधान हुआ और इसके बाद पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति को कस्तूरचंद दोतडा वाले, अरिहन्त प्रभू की मूर्ति को सुशील मोदी और चंदाप्रभु प्रतिमा को अमोलकचंद चूना वाला ने यथास्थान (गुप्तस्थान) विराजमान किया। इस अवसर पर संपूर्ण चाँदखेड़ी चंदाप्रभु और मुनि सुधासागर के जयकारे से गूँज उठा । चाँदखेड़ी प्रबंध कमेटी के महामंत्री महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि चमत्कारी पखवाड़ा समाप्त हो गया हैं और लोग चंदाप्रभु की सूरत दिल में बिठाये लौटने लगे हैं। महावीर प्रसाद जैन महामंत्री वारभारती पुरस्कार की घोषणा युवा विद्वानों व नव प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने की मूल भावना से स्थापित वाग्भारती पुरस्कार की घोषणा कर दी गयी हैं। वर्ष 2002 का वाग्भारती पुरस्कार डॉ. श्रीमती उज्ज्वला सुरेश गोसवी (जैन), औरंगाबाद को तथा वर्ष 2001 का पुरस्कार पं. श्री पवन कुमार जैन 'दीवान' शास्त्री, मुरैना को प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। पुरस्कार में 11, 111/- रु. की राशि, प्रतीक चिह्न, अभिनन्दन वस्त्र आदि भेंट किया जाता है तथा इसकी स्थापना डॉ. सुशील जैन मैनपुरी द्वारा वर्ष 98 में पू. मुनि श्री प्रज्ञा सागर जी, प्रसन्नसागर जी महाराज के सान्निध्य में की गयी थी। वर्ष 98 का पुरस्कार पं. शैलेन्द्र जैन, बीना; 99 का पुरस्कार डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' बुरहानपुर को प्रदान किया गया था। डॉ. श्रीमती उज्ज्वला को यह पुरस्कार पू. मुनि श्री प्रज्ञासागर जी के सान्निध्य में श्रुतपंचमी पर्व पर राँची में तथा पं. पवन कुमार जी को यह पुरस्कार 1 सितम्बर को प्रदान किया जाएगा। वर्ष 2002 के लिए नाम पुन: सादर आमंत्रित है। विद्वान की आयु 40 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा वह पर्व पर प्रवचनार्थ अवश्य जाते हों। डॉ. सौरभ जैन (मंत्री) वाग्भारती ट्रस्ट मेधावी छात्रा श्रद्धा जैन कु. श्रद्धा जैन, मैनपुरी ने एम.एस.सी. (वनस्पति विज्ञान) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण कर गौरवशाली स्थान प्राप्त किया। कु. श्रद्धा जैन ने दयालबाग शिक्षण संस्थान, आगरा से यह परीक्षा 76.3% अंकों से उत्तीर्ण की है। कु. श्रद्धा जैन, जैन धर्म के प्रसिद्ध विद्वान एवं चिकित्सक डॉ. सुशील जैन की सुपुत्री है। इस शुभ अवसर पर डॉ. सुशील जैन के निवास पर आयोजित कार्यक्रम में अनेक लोगों ने उपस्थित होकर उनकी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस सफलता पर बधाई देते हुए पुरस्कृत किया। उन्हें चन्दन पर उत्कीर्ण प्रशस्त्रिपत्र तथा अष्टधातु से निर्मित मनमोहक डॉ. सौरभ जैन, | 'प्रतीक' एवं सम्माननिधि समर्पित कर भगवान् महावीर स्वामी के मैनपुरी 2600वें जन्मकल्याणक वर्ष के उपलक्ष्य में सम्मानित किया गया डॉ. अनुपम जैन "जैन राष्ट्र गौरव' पदवी से । अलंकृत स्थानीय गणमान्य नागरिकों, शिक्षाशास्त्रियों, साहित्यकारों भगवान् महावीर के 2600वें जन्म जयन्ती महोत्सव वर्ष तथा विभिन्न संस्थाओं ने भी डॉ. जैन को इस अलंकरण से विभूषित की समापन बेला पर कोलकाता में इन्दौर के विशिष्ट प्रतिभावान किए जाने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए बधाइयाँ समर्पित कर युवा विद्वान होल्कर महाविद्यालय के गणित प्राध्यापक एवं कुन्दकुन्द अभिनन्दित किया है। वीरेन्द्र कुमार इटोरिया, ज्ञानपीठ के मानद् सचिव डॉ. अनुपम जैन को 'जैन राष्ट्र गौरव' अध्यक्ष, जैन पंचायत, दमोह की पदवी से अलंकृत किया गया। अखिल भारतीय दिगम्बर जैन प्रतिभा सम्मान समारोह कुण्डलपुर में राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न समिति कोलकाता द्वारा विज्ञान नगरी सभागार में आयोजित एक भगवान् महावीर स्वामी के 2600वें जन्म जयंती वर्ष एवं भव्य समारोह में डॉ. अनुपम जैन को राष्ट्र एवं समाज निर्माण में | जैन मनीषी, मूर्धन्य विद्वान्, राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत स्व.पं.(डॉ.) जैन गणित की विधा में विशिष्ट उपलब्धि हेतु उक्त सम्मान प्रदान पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, सागर की प्रथम पुण्यतिथि के प्रसंग किया गया । इस हेतु उन्हें प्रतीक चिह्न (अष्ट धातु का मानस्तम्भ), पर नवीन प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय काष्ठांकित प्रशस्ति पत्र तथा शाल, श्रीफल आदि भेंट कर सम्मानित | संगोष्ठी का आयोजन सर्वोदय जैन विद्यापीठ, सागर के तत्त्वावधान किया गया। में श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर, दमोह में 28 एवं 29 डॉ. जैन सहित संपूर्ण देश के कला, संस्कृति, पुरातत्त्व, मार्च 2002 को किया गया। इस संगोष्ठी में अनेक प्रान्तों के विद्वान, पत्रकार, लेखक, कवि, गीत-संगीतकार, वैज्ञानिक, प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रतिभागियों, अतिथि एवं श्रोताओं ने चिकित्सक व चित्रकार आदि विभिन्न विशिष्ट चयनित प्रतिभावान इस संगोष्ठी से भरपूर लाभ लेते हुए इस प्रकार के आयोजनों की 26 जैन पुरुष/महिलाओं को भी सम्मानित किया गया। प्रति वर्ष योजना करने की माँग की। समारोह के प्रमुख अतिथि पश्चिम बंगाल के पर्यटन व संगोष्ठी का प्रथम एवं उद्घाटन सत्र दोपहर 2 बजे आरंभ संस्कृति मंत्री श्री सुभाष चक्रवर्ती तथा विशिष्ट अतिथि झारखण्ड । हुआ। कुण्डलपुर के विद्याभवन नामक विशाल सभागार में भव्य के जल संसाधन मंत्री श्री रामचन्द्र केसरी थे। समारोह में देश के साज-सज्जा से सुशोभित मंच पर जनाराध्य बड़े बाबा के साथ शीर्षस्थ विद्वान व समाजसेवीगण बड़ी संख्या में सम्मिलित थे।। छोटे बाबा (आचार्य विद्यासागर जी महाराज) के भव्यचित्र सभा का संचालन संयोजक श्री चिरंजीलाल बगड़ा ने किया। प्रतिनियोजित किये गए थे। इसके साथ स्व. पं. पन्नालाल डॉ. जैन की इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर नगर के समाजसेवी साहित्याचार्य की, अपनी लेखनी से जीवन्त करने वाली प्रतिच्छवि पदाश्री बाबूलाल पाटौदी, श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल, श्री भी वहाँ स्थान पा रही थी। हीरालाल झांझरी, श्री कैलाश वेद, श्री माणिकचन्द्र पाटनी, श्री सत्रारम्भ में वरिष्ठ समाजसेवी एवं विचारक श्री विजयकुमार कैलाशचन्द्र चौधरी, श्री प्रदीपकुमार सिंह कासलीवाल, श्री अशोक मलैया, दमोह ने अध्यक्षता तथा प्रसिद्ध चिकित्सक एवं समाजसेवी बड़जात्या, प्राचार्य श्री नरेन्द्र धाकड़, श्री जयसेन जैन व श्री रमेश व राजनेता डॉ. जीवनलाल जैन, सागर ने अतिथि का आसन ग्रहण कासलीवाल आदि ने हार्दिक बधाइयाँ दी हैं। किया। तदनन्तर सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. रतनचन्द्र जैन, भोपाल एवं जयसेन जैन प्रचार सचिव डॉ. भागचन्द्र भागेन्दु, दमोह ने विषय-विशेषज्ञ के कार्यों का डॉ. भागेन्दु "जैन राष्ट्र गौरव" अलंकरण से सम्पादन किया। दीप प्रज्वलन एवं चित्रानावरण के अनन्तर डी.राकेश जैन विभूषित सर्वोदय जैन विद्यापीठ एवं डॉ. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य का साइंस सिटी आडोटोरियम कोलकाता में सम्पन्न एक भव्य परिचय देते हुए संगोष्ठी के विषय का प्रवर्तन किया। आपने बताया समारोह में अखिल भारतीय दिगम्बर जैन प्रतिभा सम्मान समारोह कि सर्वोदय जैन विद्यापीठ उच्चशिक्षा एवं सांस्कृतिक शिक्षा का समिति कोलकाता की ओर से रीठी (कटनी) में 2 अप्रैल 1937 महत्त्वपूर्ण केन्द्र बनाने के संकल्प के साथ उदित हुई है, जिसमें को जन्मे प्रोफेसर डॉ. भागचन्द्र जी (भागेन्दु) को सर्वश्रेष्ठ विद्वत्ता निरन्तर इस प्रकार की गतिविधियों का संचालन होता रहेगा। के लिए "जैन राष्ट्र गौरव" अलंकरण से विभूषित किया गया। विषयप्रवर्तन में जैन संस्कृति एवं साहित्य की वर्तमान दशा एवं "जैन राष्ट्र गौरव" अलंकरण डॉ. भागेन्दु जी जैन को उनकी अतिविशिष्ट विद्वत्ता तथा राष्ट एवं समाज निर्माण में अग्रणी उसमें निहित अनन्त संभावनाओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने भूमिका का निर्वहण करने के उपलक्ष्य में समर्पित किया गया।। कहा कि इन पर अनुसन्धान करने से जैन वाङ्मय के अवदान को -मई 2002 जिनभाषित 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय संस्कृति के सम्पूर्ण क्षेत्रों में निर्धारित किया जा सकता है। | किया गया एवं भगवान् आदिनाथ स्वामी के चित्र के समक्ष दीप संगोष्ठी में जबलपुर से पधारे प्रथम वक्ता श्री सतीश जैन | प्रज्जवलन का कार्य समारोह के मुख्य अतिथि श्रेष्ठी श्री भंवरलाल 'नवल' ने जैन संस्थाओं एवं तीर्थों की स्थिति के विषय में अपने | जी सरावगी द्वारा सम्पन्न हुआ। संस्थान के अध्यक्ष श्री गणेश आलेख का वाचन किया। प्रथम सत्र में 5 आलेखों का वाचन | कुमार राणा द्वारा आगन्तुक सभी अतिथियों व उपस्थित महानुभावों किया गया, जिनमें ब्र. धर्मेन्द जैन, उदयपुर (राजस्थान), कु. का हार्दिक स्वागत व अभिनन्दन किया गया। तत्पश्चात् अध्यक्ष रजनी जैन, छतरपुर, श्रीमती डॉ. अल्पना जैन, ग्वालियर एवं डॉ. | श्री गणेश कुमार राणा, मानद मंत्री महावीर प्रसाद पहाड़िया एवं राजुल जैन, टीकमगढ़ ने आलेख वाचन किये। पठित पत्रों की | प्रबन्ध समिति के अन्य सदस्यों द्वारा समारोह के अध्यक्ष माननीय समीक्षा डॉ. रतनचन्द्र जैन, भोपाल एवं डॉ. भागचन्द्र भागेन्दु ने | श्री रामदास जी अग्रवाल (भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं सांसद). की। मुख्य अतिथि डॉ. जीवनलाल जैन ने अपने उद्बोधन में पं. मुख्य अतिथि श्रेष्ठी भी भंवरलाल जी सरावगी, विशिष्ट अतिथि पन्नालाल की 72 वर्षीय निःस्वार्थ साहित्यिक एवं शैक्षिक सेवाओं | जयपुर के सांसद श्री गिरधारी लाल भार्गव एवं अन्य विशिष्टजनों का उल्लेख करते हुए उन्हें रामायण के नि:स्वार्थ सेवक हनुमान की | का तिलक, माल्यार्पण एवं शाल ओढ़ाकर स्वागत किया गया। उपमा दी। छात्रावास को अपनी उल्लेखनीय सेवाएँ देने एवं उच्चस्तरीय 29 मार्च को प्रात: 9 बजे से द्वितीय सत्र आयोजित किया | विद्वान तैयार करने में अपना अमूल्य योगदान देने के लिये संस्थान गया। इसमें पं. मूलचन्द लुहाड़िया, किशनगढ़ ने अध्यक्ष एवं | द्वारा अधिष्ठाता श्री रतनलाल जी बैनाड़ा एवं संस्थान के निदेशक कुण्डलपुर क्षेत्र कमेटी के वरिष्ठ सदस्य वीरेश सेठ ने अतिथि का | डॉ. शीतलचन्द्र जी जैन का तिलक, शाल, माला व चाँदी का आसन ग्रहण किया। इस सत्र में कु. श्वेता जैन छतरपुर, रजनीश | प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मान किया गया। शुक्ल उदयपुर, कु. अमिता जैन सागर, कु. शशिकिरण जैन पन्ना संस्थान के 5 वर्ष के पाठ्यक्रम को पूरा कर जो छात्र (शोधछात्रा) श्रीमती कल्पना जैन जबलपुर और डॉ. दीपक जैन | श्रमण संस्कृति रक्षक विद्वान के रूप में तैयार हुए हैं, उन सबका टीकमगढ़ ने अपने आलेखों का वाचन किया। भी संस्थान द्वारा चाँदी से निर्मित प्रशस्तिपत्र, शाल व प्रतीक चिह्न दोपहर को अन्तिम (तृतीय) एवं समापन सत्र 2 बजे | भेंट कर स्वागत किया गया। श्री उत्तमचन्द जी पांड्या द्वारा ग्रन्थ आरंभ हुआ। इसमें डॉ. नीलम जैन दमोह, डॉ. हेमलता जोहरापुरकर | भेंट किए गए। विदा होने वाले छात्रों में प्रथम, द्वितीय व तृतीय नागपुर, डॉ. संगीता मेहता इन्दौर, डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन टीकमगढ़, | आने वाले छात्रों को श्री चन्द्रकांत, हीराचन्द्र शाह बारामती द्वारा शोधछात्रा कु. रश्मि जैन बीना एवं डॉ. सत्येन्द्र जैन सागर ने | पुरस्कार देने की घोषणा की गई। सम्मान व अभिनन्दन समारोह आलेखों को प्रस्तुत किया। आलेख वाचन के बाद विनयांजलि | के पश्चात् उपअधिष्ठाता श्री राजमल बेगस्या ने संस्थान का पंचवर्षीय सभा आरंभ हुई, जिसमें अनेक वक्ताओं ने श्रद्धेय पं. जी के प्रति युग प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें 5 वर्ष की संस्थान की सभी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष सिंघई | तरह की गतिविधियों का विस्तृत लेखा-जोखा दिया गया। संतोषकुमार जैन, पं. मूलचन्द लुहाड़िया, प्रकाशचन्द्र नैनधरा एवं । इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा "पंचवर्षीय युग चौधरी रूपचन्द्र आदि सभी उपस्थित सज्जनों ने सामूहिक रूप से प्रतिवेदन" स्मारिका का विमोचन भी करवाया गया। मंचासीन पुण्यस्थल पर उपस्थित हो श्रद्धासुमन समर्पित किए। अतिथिगणों द्वारा अपने उद्बोधन में संस्थान की प्रगति की मुक्त कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संयोजन डॉ. राकेश जैन, सागर कंठ से प्रशंसा की गई। विशिष्ट अतिथि श्री गिरधारी लाल जी एवं संचालन डॉ. अजितकुमार जैन, सागर ने किया। यद्यपि आभार भार्गव सांसद ने अपने कोटे से पूर्व में ही 6 लाख रुपये देकर प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया, किन्तु उपस्थित संस्थान के सामने गन्दे नाले को पाटने की स्वीकृति प्रदान की थी। महानुभावों, प्रतिभागियों एवं सहयोगियों ने ऐसे कार्यक्रम को प्रति इस राशि में यह कार्य अधूरा रह जाने पर और धनराशि उपलब्ध वर्ष आयोजित करते रहने की आवश्यकता को महसूस किया। करवाने का आश्वासन दिया। समारोह के अध्यक्ष श्री रामदास जी श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, अग्रवाल संस्थान के उद्देश्यों से काफी प्रभावित हुए और इसे देश की अद्वितीय संस्था बताते हुए हर संभव सहयोग देने का आश्वासन सांगानेर द्वारा संचालित आचार्य ज्ञानसागर दिया। छात्रावास का पंचवर्षीय युग समारोह सम्पन्न | दिगम्बर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी जयपुर, 24 मार्च। सराकोद्वारक उपाध्यक्ष मुनिश्री 108 | सेठी ने भी संस्थान के कार्यों की प्रशंसा की। मंच संचालन डॉ. ज्ञानसागर जी महाराज के ससंघ पावन सान्निध्य में संस्थान द्वारा शीतलचन्द्र जी जैन ने किया। अन्त में उपाध्यक्ष मुनिश्री108 संचालित आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास का पंचवर्षीय युग समारोह | ज्ञानसागर महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सैंकडों प्रतिष्ठाएँ आयोजित किया गया। करवाने के बजाए एक विद्वान तैयार करने में अधिक पुण्य प्राप्त समारोह का प्रारंभ छात्रावास के छात्रों द्वारा मंगलाचरण से | होता है। उन्होंने संस्थान द्वारा आयोजित इस पंचवर्षीय युग सम्पन्न 30 मई 2002 जिनभाषित Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समारोह की सराहना करते हुए विद्वान छात्रों को कहा कि वे | डॉ. सागरमलजी के शाजापुर नगर में निवासरत होने व अपना आत्मसम्मान रखते हुए स्वाभिमान के साथ जिनवाणी की | इस विद्यापीठ की स्थापना के फलस्वरूप जैन विश्वभारती संस्थान रक्षा व प्रचार-प्रसार करें। लाडनूं-राज. (मान्य विश्वविद्यालय) ने अपने द्वारा संचालित पत्राचार इस संस्थान को आपने भूमण्डल की अमूल्य धरोहर बताया पाठ्यक्रमों के लिये अध्ययन एवं परीक्षा केन्द्र के रूप में प्राच्य एवं छात्रों व उपस्थित समुदाय को अपना भरपूर आशीर्वाद प्रदान विद्यापीठ को मान्यता प्रदान की है, जो शाजापुर के नागरिकों के किया। समारोह में प्रमुख रूप से दिगम्बर जैन महासभा के राष्ट्रीय लिये बड़े सौभाग्य की बात है। यही कारण है कि अब शाजापुर अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेठी, समाचार जगत के सम्पादक | नगर एवं उसके आसपास के स्थानों में रहने वाले नागरिकगण श्री राजेन्द्र कुमार जी गोधा, श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र के | प्राच्य विद्यापीठ के पुस्तकालय का लाभ लेकर डॉ. सागरमलजी अध्यक्ष श्री नरेश कुमार जी सेठी, शास्त्री परिषद् के महामंत्री डॉ. | सा. के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में जैन विद्या में बी.ए./एम.ए. डिग्री जयकुमार जी जैन, डॉ. प्रेमचन्द्र जी जैन 'सुमन्त', डॉ. विजय | पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होकर प्राच्य विद्यापीठ केन्द्र से परीक्षा दे कुमार जी जैन व समाज के अन्य गणमान्य महानुभाव भी उपस्थित | सकते हैं। इन डिग्रियों का रोजगार इत्यादि की दृष्टि से वही उपयोग थे। सभी आगन्तुक अतिथियों एवं उपस्थित सभी महानुभावों का है, जो अन्य विषयों से संबंधित डिग्रियों का है। जैनविद्या में मानद मंत्री श्री महावीर प्रसाद पहाड़िया ने धन्यवाद ज्ञापित किया | बी.ए./एम.ए. डिग्री पाठ्यक्रमों के आवेदन-पत्र जुलाई 2002 में व संस्थान को हमेशा सहयोग प्रदान करने का आह्वान किया। भरे जा सकते हैं। इस संबंध में यदि आप कोई भी जानकारी प्राप्त महावीर प्रसाद जैन करना चाहें तो डॉ. सागरमलजी सा. (फोन नं. 07364-27425) मंत्री, श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान या डॉ. राजेन्द्र कुमार जैन (फोन नं. 07364-26153) शाजापुर छात्रावास, सांगानेर (जयपुर) से प्रत्यक्ष रूप से या फोन पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं। प.पू. गणिनी आर्यिका 105 सुपार्श्वमती माताजी वर्तमान समय में विद्यापीठ के पुस्तकालय का लाभ लेकर डॉ. का 74वाँ जन्म जयंती महोत्सव सा. के मार्गदर्शन में शाजापुर नगर में 2 छात्र/छात्रा जैन विद्या में दि. 23.3.2002 फाल्गुन शुदि १ शनिवार श्री शत्रुजय | एम.ए. पूर्वार्द्ध, 9 छात्र-छात्राएँ एम.ए. उत्तरार्द्ध में अध्ययनरत हैं। सिद्धक्षेत्र पालीताणा में धर्मध्यानपूर्वक उत्साह से प. पू. गणिनी | इसके अतिरिक्त, तीन जैन साध्वियाँ जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं आर्यिका 105 श्री सुपार्श्वमती माताजी का 74वाँ जन्म जयंती महोत्सव | से पी-एच.डी. की उपाधि के लिये अपना शोध प्रबन्ध तैयार कर कार्यक्रम संपन्न हुआ। रही हैं तथा 2 छात्रों ने विक्रम विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की शाजापुर नगर में जैन विद्या (जैनोलॉजी) में डिग्री हेतु पंजीयन कराने के लिये आवेदन किया है साथ ही विद्यापीठ में प्रति सप्ताह गुरुवार को रात्रि के 8:30 बजे डॉ. बी.ए./एम.ए./पी-एच.डी. डिग्री पाठ्यक्रमों के सागरमल जी के मंगल प्रवचन एवं ध्यान साधना का कार्यक्रम __ अध्ययन की सुविधा का सुअवसर चल रहा है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के भूतपूर्व निदेशक, | विद्यावारिधि (पी-एच.डी. )उपाधि से अलंकृत अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जैन विद्वान डॉ. सागरमलजी सा. ने जैन, श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत् परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में अध्ययन-अध्यापन, दिल्ली जैन समाज के लोकप्रिय युवा विद्वान श्री अशोक कुमार जैन शोधकार्य व ज्ञान-ध्यान साधना करने के लिये शाजापुर नगर की (गोइल) बंडा, जि. सागर (म.प्र.) को “आचार्य कुन्दकुन्द विरचित प्रदूषण रहित प्राकृतिक सुरम्य वातावरण वाली दुपाड़ा रोड पर ग्रन्थों का सांस्कृतिक अध्ययन" विषय पर श्री लाल बहादुर शास्री प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की है, जिसका विशाल एवं सुंदर राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) नई दिल्ली से 17 भवन तैयार हो गया है। इस विद्यापीठ को वर्ष 2002 में विक्रम फरवरी 2002 को दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालय, उज्जैन से भी मान्यता प्राप्त हो गई है। फलतः इस के अध्यक्ष डॉ. हरि गौतम जी के कर कमलों से विद्यावारिधि पीविद्यापीठ से शोधार्थी के रूप में जैन, बौद्ध व हिन्दू धर्म और दर्शन एच.डी. की उपाधि से अलंकृत किया गया है। उन्होंने अपना से संबंधित किसी भी विषय पर शोध प्रबन्ध तैयार कर उसे विक्रम शोधकार्य डॉ. सुदीप जैन के निर्देशन में भरपूर श्रम एवं निष्ठा के विश्वविद्यालय में प्रस्तुत कर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की जा साथ गरिमापूर्वक सम्पन्न किया है। "हार्दिक बधाई" सकती है। इस भवन में 7 सुसज्जित अध्ययन-अध्यापन हॉल, डॉ. सत्यप्रकाश जैन, दिल्ली किचन व स्टोर्स तथा प्रसाधन की समुचित व्यवस्था है। इस भवन भगवान् महावीर पर अखिल भारतीय निबंध में एक सुसज्जित पुस्तकालय है, जिसमें 10,000 के करीब पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं पुरानी पाण्डुलिपियाँ हैं, जिन पर शोध कार्य अपेक्षित प्रतियोगिता 2002 परमपूज्य, गणिनी प्रमुख, आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती -मई 2002 जिनभाषित 31 है। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माताजी की प्रेरणा से स्थापित तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ | (महामस्तकाभिषेक) तथा इनके आशीर्वाद से नवनिर्मित दिगम्बर जम्बूद्वीप हस्तिनापुर द्वारा एक अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिता | जैन ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र में पधारने हेतु श्रेष्ठी श्री निर्मलचंद सोनी, आयोजित की जा रही है। निबंध प्रतियोगिता का विषय होगा - केन्द्रीय उपाध्यक्ष, महासभा एवं ट्रस्टी श्री सिद्धकूट चैत्यालय, "भगवान् महावीर की जन्मस्थली कुण्डलपुर (नालंदा) या युवा ट्रस्टी श्री प्रमोद चंद सोनी, भागचन्द गदिया अध्यक्ष ज्ञानोदय वैशाली? दिगम्बर जैन आगम के परिप्रेक्ष्य में" निबंध प्रतियोगिता तीर्थक्षेत्र कमेटी, ज्ञानंचद जैन किरण बेटरी अध्यक्ष, जैसवाल जैन के नियम निम्नानुसार होंगे समाज के अलावा ब्यावर, मदनगंज, नसीराबाद, केकडी आदि (1) प्रतियोगिता समस्त आयु वर्ग के बालक/बालिका | अजमेर जिले के धर्मानुरागी बन्धुओं के एक शिष्टमंडल ने आचार्य अथवा महिला/पुरुषों के लिए खुली है। जैन या जैनेतर कोई भी | श्री को नसुरुल्लागंज (म.प्र.) में श्रीफल समर्पित किया एवं आचार्य सम्मिलित हो सकता है। श्री का मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री ससंघ में करीबन (2) निबंध कम से कम (फुल स्केप आकार के) 4 पृष्ठों | 45 पीच्छिकाएँ साथ में हैं। में होना चाहिए। . इसी शिष्ट मण्डल ने चाँदखेड़ी में विराजित प.पू. मुनि (3) निबंध टंकित अथवा सुवाच्य अक्षरों में पृष्ठ के एक | पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज संसघ को भी उपर्युक्त कार्यों ओर ही लिखा जाना आवश्यक है। के लिये अजमेर पधारने एवं सान्निध्य प्रदान करने हेतु श्रीफल (4) प्रस्तुत विषय पर अपना पक्ष ठोस आधार पर पुष्ट | समर्पित किया। दिनाँक 3 मई को प्रभात में मुनिश्री के पावन प्रमाणों सहित प्रतिपादित करने का प्रयास करें। समस्त सन्दर्भ | सान्निध्य में चाँदखेड़ी वाले बाबा भगवान आदिनाथ के मंगल लेख के अन्त में देवें। कलश एवं मुनि श्री के श्रीमुख से वृहद् शान्तिधारा का सौभाग्य (5) निबंध भेजने की अंतिम तिथि 30 जून 2002 निश्चित | अर्जित किया। प्रथम कलश करने का सौभाग्य अजमेर के श्री की गई है। निर्धारित तिथि के पश्चात् प्राप्त होने वाले निबंध, | दुलीचन्द कोहले भंडारी ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र ने अर्जित किया। प्रतियोगिता में सम्मिलित करना संभव नहीं होगा। सहप्रचार प्रसार संयोजक हीराचन्द जैन ने बतलाया कि (6) प्राप्त निबंधों का मूल्यांकन प्रतिष्ठित विद्वानों के दल | आचार्यश्री ससंघ आज दिनाँक 4 मई को सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर द्वारा किया जावेगा। प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले | पहुँच गए हैं और ग्रीष्मकालीन वाचना हेतु करीब दो माह तक प्रतियोगीगणों को क्रमश: 5000/-, 3000/- व 2000/- रुपये | वहीं विराजित रहेंगे। बाहर से पधारने वालों के लिये आवास व का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। सांत्वना पुरस्कारों की भी व्यवस्था | भोजन की सुव्यवस्था वहीं पर उपलब्ध है। हीराचन्द्र जैन ___(7) महासंघ द्वारा गठित निर्णायक मंडल का निर्णय सहप्रचार प्रसार संयोजक अंतिम व सर्वमान्य होगा। अहिंसा रंगोली (8) प्रतियोगिता के विषय में नियमों को संशोधित/ भगवान् महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक महोत्सव परिवर्तित/परिवर्द्धित करने अथवा स्थगित करने एवं अन्य समस्त | पर लोक कला संस्थान के श्री संजय सेठी ने ऋषभदेव भगवान के विषयों में महासंघ का निर्णय अन्तिम एवं बन्धनकारी होगा। । सामने चित्ताकर्षक अहिंसा रंगोली में जैन दर्शन एवं भगवान् (9) निबंध के मुखपृष्ठ पर प्रतियोगी का पूरा नाम एवं | महावीर के सिद्धान्तों को रेखांकित करने के लिये 25 दीपक, 206 पता अंकित किया जाना चाहिए। निबंध संयोजक के पते पर काष्ट के चम्मच, 2600 माचिस की तिलियाँ एवं 26000 चावल इन्दौर ही भेजे जाने चाहिए। के दानों का इस्तेमाल किया गया। इस रंगोली को देखने के लिये संयोजक द्वय : 1. जयसेन जैन, 201, अमित अपार्टमेन्ट, | अपार जनसमूह एकत्रित हुआ एवं सभी ने इसकी भारी प्रशंसा 1/1, पारसी मोहल्ला, छावनी, इन्दौर-452 001, (म.प्र.), सम्पर्क: | की। 0731-7000201 हीराचन्द्र जैन 2. डॉ. अभय प्रकाश जैन N-14, चेतकपुरी, ग्वालियर- | मुहारा में भगवान् आदिनाथ जन्मोत्सव आयोजित 474009, सम्पर्क :- 0751-324392 । जतारा (टीकमगढ़ म.प्र.)। संत शिरोमणि, प्रातः स्मरणीय जयसेन जैन परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य परमपूज्य अ.भा.दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र । ऐलक श्री नम्रसागर जी महाराज के मंगलमय सान्निध्य में जतारा अजमेर, 4 मई 2002। संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री के निकट स्थित ग्राम मुहारा में दिनाँक 6.4.2002 (चैत्र कृष्णा 9, विद्यासागरजी महाराज ससंघ को श्री सिद्धकूट चैत्यालय सोनीजी | शनिवार) को जैन जगत के प्रथम तीर्थकर भगवान श्री आदिनाथ) की नसियां में होने वाले जीर्णोद्धार एवं यहाँ पर स्थित जैन विश्व के | का जन्म जयंती समारोह मुहारा जैन समाज के तत्त्वावधान में सबसे बड़े मानस्तम्भ के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव | अनेक मांगलिक कार्यक्रमों के साथ उत्साहपूर्वक मनाया गया। 32 मई 2002 जिनभाषित - Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाद्य पदार्थों पर चिह्न बनाना अनिवार्य केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा 'भारत के राजपत्र' (असाधारण, 20 दिसम्बर 2001) में सा. का. नि. 908 (अ) क्रमांक पर अधिसूचना प्रकाशित कराई गई है, जो 'खाद्य अपमिश्रण निवारण (नवां संशोधन) नियम, 2001' नामक नियम शाकाहारी खाद्य पदार्थों से संबंधित है। इसमें 'शाकाहारी खाद्य को भी परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार अब शाकाहारी खाद्य के प्रत्येक पैकेज पर खाद्य पदार्थ के नाम या ब्राण्ड नाम के बिल्कुल निकट मुख्य प्रदर्शन पैनल पर हरे रंग (ग्रीन कलर) से प्रतीक चिह्न बनाया जायेगा । वृत्त के व्यास से दुगने किनारे वाली हरे रंग (ग्रीन कलर ) की बाह्य रेखा वाले वर्ग के भीतर हरे रंग से भरा हुआ वृत्त बनाया जाएगा, जिसके कारण वह खाद्य पदार्थ शाकाहारी खाद्य है, यह जाना-समझा जा सकेगा। 20 जून 2002 से प्रभावशाली होने वाले इस नियम में यह प्रतीक चिह्न . हरे (ग्रीन कलर) से बनाया जाएगा। स्मरणीय है कि इससे पहले केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय , नई दिल्ली ने 'भारत के राजपत्र' (असाधारण, 4 अप्रैल 2001) में सा. का. नि. 245 (अ) अधिसूचना प्रकाशित कराई थी। इस अधिसूचना में 'खाद्य अपमिश्रण निवारण (चौथा संशोधन) नियम, 2000' रूप में मांसाहारी खाद्य पदार्थ को परिभाषित करते हुए स्पष्ट किया गया था कि “जिसमें एक संघटक के रूप में पक्षियों, ताजे जल अथवा समुद्री जीव-जन्तुओं अथवा अंडों सहित कोई समग्र जीव-जन्तु या उसका कोई भाग अथवा जीव-जन्तु मूल का कोई उत्पाद अन्तर्विष्ट होगा तो वह 'मांसाहारी खाद्य माना जाएगा, किन्तु इसके अन्तर्गत दूध या दूध से बने हुए पदार्थों को मांसाहारी खाद्य नहीं माना जावेगा। वह पदार्थ मांसाहारी खाद्य है, इस हेतु प्रत्येक पैकेज पर खाद्य पदार्थ के नाम या ब्राण्ड नाम के बिल्कुल नजदीक मुख्य प्रदर्शन पैनल पर वृत्त के व्यास से दुगने किनारे वाली बाह्य रेखा वाले वर्ग के भीतर एक वृत्त होगा, जो भूरे रंग (ब्राउन कलर ) का होगा। ध्यातव्य है कि आम उपभोक्ता वर्ग को खाद्य पदार्थ खरीदते समय अब मांसाहारी खाद्य पदार्थ पर भूरे रंग (ब्राउन कलर) वाला तथा शाकाहारी खाद्य पदार्थ पर हरे रंग (ग्रीन कलर) वाला प्रतीक चिह्न देखकर खरीददारी करनी होगी। दोनों प्रकार के खाद्य पदार्थों पर प्रतीक चिह्न एक-सा ही बना होगा, मात्र भूरे रंग (ब्राउन कलर) एवं हरे रंग (ग्रीन कलर) की भिन्नता ही उनके मांसाहारी या शाकाहारी खाद्य होने का अंतर करा सकेगी। मांसाहारी या शाकाहारी खाद्य पदार्थों में यह प्रतीक चिह्न मूल प्रदर्शन पैनल पर विषम पृष्ठभूमि वाले पैकेज पर तथा लेबलों, आधानों (कन्टेनर्स), पम्पलेट्स, इश्तहारों या किसी भी प्रकार के प्रचार माध्यम आदि के विज्ञापनों में उत्पाद के नाम अथवा ब्राण्ड नाम के बिल्कुल नजदीक प्रमुख रूप से प्रदर्शित करना होगा। विनिर्माता, पैककर्ता अथवा विक्रेता को प्रचार माध्यमों में 100 सें.मी. वर्ग तक 3 मि.मी. न्यूनतम व्यास आकार वाले; 100 से 500 सें.मी. वर्ग तक 4 मि.मी., 500 से 2500 सें.मी. वर्ग तक 6 मि.मी. एवं 2500 सें.मी. वर्ग से ऊपर मूल प्रदर्शन पैनल क्षेत्र वालों पर 8 मि.मी. न्युनतम व्यास आकारवाले प्रतीक चिह्न का निर्माण उचित स्थान पर कराना होगा। उपभोक्ता वर्ग से अपेक्षा की जाती है कि खाद्य पदार्थ खरीदते समय इस भूरे रंग (ब्राउन कलर) या हरे रंग (ग्रीन कलर) वाले प्रतीक चिह्नों को देखकर ही खाद्य पदार्थ खरीदें। जिन उत्पादकों आदि ने ये चिह्न अपने उत्पादों पर नहीं बनाये हों, उन्हें चेतावनी देवें तथा सक्षम अधिकारियों को भी अपनी शिकायत दर्ज कराकर अपने अधिकारों की सुरक्षा किये जाने की माँग प्रस्तुत करें। साथ ही केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, 150-ए, निर्माण भवन, नई दिल्ली के पते पर लिखकर मांसाहारी एवं शाकाहारी खाद्य पदार्थों पर रंगों की भिन्नता के बावजूद भी चिह्न की समानता होने से उपभोक्ता वर्ग के भ्रमित होने की संभावना का ज्ञान कराते हुए 'मांसाहारी खाद्य' (NON VEGETARIAN FOOD)या शाकाहारी खाद्य(VEGETARIAN 1OOD) हिन्दी/अंग्रेजी में भी प्रतीक चिह्न के साथ ही अनिवार्य रूप से लिखे जाने की माँग प्रेषित करें। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजि.नं.UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2002 जीवन क्या है? जीवन क्या है? जीव-विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने बहुत अधिक खोज की है। जैनेटिकल इंजीनियरिंग, क्लोनिंग तथा जैनोम जैसी नयी खोजों ने आज आम आदमी को आश्चर्य में डाल दिया है। इन सब के बावजूद भी अभी वैज्ञानिकों के सामने अनुत्तरित रहस्यों की कमी नहीं है। बुढ़ापा तथा मृत्यु क्यों आती है ? पृथ्वी पर जीवन का प्रारम्भ कब और कैसे हुआ? जीवन कहां से आया? आखिर जीवन है क्या? आज कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका विज्ञान के पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं है। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि इन विषयों पर जैनदर्शन में काफी प्रकाश डाला गया है। डॉ. अनिल कुमार जैन ने अपनी पुस्तक “जीवन क्या है" में जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान के सन्दर्भ में ऐसे ही कुछ अनुत्तरित प्रश्नों का समाधान तलाशने की कोशिश की है। इस पुस्तक से जीव-विज्ञान के क्षेत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को भी कुछ और नया चिंतन प्रस्तुत करने की प्रेरणा (डॉ.) अनिल कुमार जैन किताब- जीवन क्या है? लेखक- डॉ. अनिल कमार जैन प्रकाशक - विद्या प्रकाशन मंदिर, नई दिल्ली मूल्य-30 रूपये मात्र प्राप्ति स्थान - श्री एस.एल. जैन, संरक्षक, मैत्री समूह ई-2/161, अरेरा कॉलोनी, भोपाल-462016. भक्ति गीत 5 भक्ति -गीत भगवान महावीर की 2600 वी जन्म जयन्ती पर मैत्री समूह की विनम प्रस्तुति इन दिनों जब भजनों के नाम पर फिल्मी धुनों पर बजते गीतों की भरमार है, ऐसे में "भक्तिगीत एक अनूठा प्रयास है। आचार्यश्री विद्यासागर के परम शिष्य मुनिश्री क्षमासागरजी की प्रेरणा से तैयार भजनों का कैसेट "भक्ति गीत "में आध्यात्मिक भजनों को शामिल किया गया है। यह कैसेट मैत्री समूह की विनम प्रस्तुति है। "भक्ति गीत में भागचंदजी, भूधरदासजी, दौलतरामजी एवं भैयाजी के द्वारा रचित भजनों को लिया गया है। इन भजनों को अजय सारस्वत, डॉ.रवि भटनागर औरप्रेरणा केशव ने स्वरदिये हैं। संगीत निर्देशन डॉ. रवि भटनागर ने किया है। सुगम संगीत की धारा में परम्परागत भजन "अब मेरे समकित सावन आयो", "जो जो देखी वीतराग ने", "भगवन्त भजन क्यों भूलारे", "हम तो कबहुँन निज घर आये"आदिमधुर प्रस्तुति हैं। कैसेट- भक्ति गीत प्रस्तुति-मैत्रीसमूह मूल्य-25 रूपये मात्र प्राप्ति स्थान-पन्नालाल बैनाड़ा 1/205, प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 प्रेरणा स्रोत: मुनिक्षमा सागरजी स्वर : अजय सारस्वत डॉ. रवि भटनागर * प्रेरणा केशव स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। ___