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________________ समारोह की सराहना करते हुए विद्वान छात्रों को कहा कि वे | डॉ. सागरमलजी के शाजापुर नगर में निवासरत होने व अपना आत्मसम्मान रखते हुए स्वाभिमान के साथ जिनवाणी की | इस विद्यापीठ की स्थापना के फलस्वरूप जैन विश्वभारती संस्थान रक्षा व प्रचार-प्रसार करें। लाडनूं-राज. (मान्य विश्वविद्यालय) ने अपने द्वारा संचालित पत्राचार इस संस्थान को आपने भूमण्डल की अमूल्य धरोहर बताया पाठ्यक्रमों के लिये अध्ययन एवं परीक्षा केन्द्र के रूप में प्राच्य एवं छात्रों व उपस्थित समुदाय को अपना भरपूर आशीर्वाद प्रदान विद्यापीठ को मान्यता प्रदान की है, जो शाजापुर के नागरिकों के किया। समारोह में प्रमुख रूप से दिगम्बर जैन महासभा के राष्ट्रीय लिये बड़े सौभाग्य की बात है। यही कारण है कि अब शाजापुर अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेठी, समाचार जगत के सम्पादक | नगर एवं उसके आसपास के स्थानों में रहने वाले नागरिकगण श्री राजेन्द्र कुमार जी गोधा, श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र के | प्राच्य विद्यापीठ के पुस्तकालय का लाभ लेकर डॉ. सागरमलजी अध्यक्ष श्री नरेश कुमार जी सेठी, शास्त्री परिषद् के महामंत्री डॉ. | सा. के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में जैन विद्या में बी.ए./एम.ए. डिग्री जयकुमार जी जैन, डॉ. प्रेमचन्द्र जी जैन 'सुमन्त', डॉ. विजय | पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होकर प्राच्य विद्यापीठ केन्द्र से परीक्षा दे कुमार जी जैन व समाज के अन्य गणमान्य महानुभाव भी उपस्थित | सकते हैं। इन डिग्रियों का रोजगार इत्यादि की दृष्टि से वही उपयोग थे। सभी आगन्तुक अतिथियों एवं उपस्थित सभी महानुभावों का है, जो अन्य विषयों से संबंधित डिग्रियों का है। जैनविद्या में मानद मंत्री श्री महावीर प्रसाद पहाड़िया ने धन्यवाद ज्ञापित किया | बी.ए./एम.ए. डिग्री पाठ्यक्रमों के आवेदन-पत्र जुलाई 2002 में व संस्थान को हमेशा सहयोग प्रदान करने का आह्वान किया। भरे जा सकते हैं। इस संबंध में यदि आप कोई भी जानकारी प्राप्त महावीर प्रसाद जैन करना चाहें तो डॉ. सागरमलजी सा. (फोन नं. 07364-27425) मंत्री, श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान या डॉ. राजेन्द्र कुमार जैन (फोन नं. 07364-26153) शाजापुर छात्रावास, सांगानेर (जयपुर) से प्रत्यक्ष रूप से या फोन पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं। प.पू. गणिनी आर्यिका 105 सुपार्श्वमती माताजी वर्तमान समय में विद्यापीठ के पुस्तकालय का लाभ लेकर डॉ. का 74वाँ जन्म जयंती महोत्सव सा. के मार्गदर्शन में शाजापुर नगर में 2 छात्र/छात्रा जैन विद्या में दि. 23.3.2002 फाल्गुन शुदि १ शनिवार श्री शत्रुजय | एम.ए. पूर्वार्द्ध, 9 छात्र-छात्राएँ एम.ए. उत्तरार्द्ध में अध्ययनरत हैं। सिद्धक्षेत्र पालीताणा में धर्मध्यानपूर्वक उत्साह से प. पू. गणिनी | इसके अतिरिक्त, तीन जैन साध्वियाँ जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं आर्यिका 105 श्री सुपार्श्वमती माताजी का 74वाँ जन्म जयंती महोत्सव | से पी-एच.डी. की उपाधि के लिये अपना शोध प्रबन्ध तैयार कर कार्यक्रम संपन्न हुआ। रही हैं तथा 2 छात्रों ने विक्रम विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की शाजापुर नगर में जैन विद्या (जैनोलॉजी) में डिग्री हेतु पंजीयन कराने के लिये आवेदन किया है साथ ही विद्यापीठ में प्रति सप्ताह गुरुवार को रात्रि के 8:30 बजे डॉ. बी.ए./एम.ए./पी-एच.डी. डिग्री पाठ्यक्रमों के सागरमल जी के मंगल प्रवचन एवं ध्यान साधना का कार्यक्रम __ अध्ययन की सुविधा का सुअवसर चल रहा है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के भूतपूर्व निदेशक, | विद्यावारिधि (पी-एच.डी. )उपाधि से अलंकृत अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जैन विद्वान डॉ. सागरमलजी सा. ने जैन, श्री अ.भा.दि.जैन विद्वत् परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में अध्ययन-अध्यापन, दिल्ली जैन समाज के लोकप्रिय युवा विद्वान श्री अशोक कुमार जैन शोधकार्य व ज्ञान-ध्यान साधना करने के लिये शाजापुर नगर की (गोइल) बंडा, जि. सागर (म.प्र.) को “आचार्य कुन्दकुन्द विरचित प्रदूषण रहित प्राकृतिक सुरम्य वातावरण वाली दुपाड़ा रोड पर ग्रन्थों का सांस्कृतिक अध्ययन" विषय पर श्री लाल बहादुर शास्री प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की है, जिसका विशाल एवं सुंदर राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) नई दिल्ली से 17 भवन तैयार हो गया है। इस विद्यापीठ को वर्ष 2002 में विक्रम फरवरी 2002 को दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालय, उज्जैन से भी मान्यता प्राप्त हो गई है। फलतः इस के अध्यक्ष डॉ. हरि गौतम जी के कर कमलों से विद्यावारिधि पीविद्यापीठ से शोधार्थी के रूप में जैन, बौद्ध व हिन्दू धर्म और दर्शन एच.डी. की उपाधि से अलंकृत किया गया है। उन्होंने अपना से संबंधित किसी भी विषय पर शोध प्रबन्ध तैयार कर उसे विक्रम शोधकार्य डॉ. सुदीप जैन के निर्देशन में भरपूर श्रम एवं निष्ठा के विश्वविद्यालय में प्रस्तुत कर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की जा साथ गरिमापूर्वक सम्पन्न किया है। "हार्दिक बधाई" सकती है। इस भवन में 7 सुसज्जित अध्ययन-अध्यापन हॉल, डॉ. सत्यप्रकाश जैन, दिल्ली किचन व स्टोर्स तथा प्रसाधन की समुचित व्यवस्था है। इस भवन भगवान् महावीर पर अखिल भारतीय निबंध में एक सुसज्जित पुस्तकालय है, जिसमें 10,000 के करीब पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं पुरानी पाण्डुलिपियाँ हैं, जिन पर शोध कार्य अपेक्षित प्रतियोगिता 2002 परमपूज्य, गणिनी प्रमुख, आर्यिका शिरोमणि श्री ज्ञानमती -मई 2002 जिनभाषित 31 है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524262
Book TitleJinabhashita 2002 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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