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________________ पैकेटों में मिलने वाला पान मसाला स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ । में संचालित की जा रही पान की दुकानों से एकत्रित किया था। करता है। ज्ञात हुआ कि कत्थे में सिंथेटिक और अन्य कलर जैसी कोई चीज पान मसालों का बढ़ता व्यापार - आज देश में पान | मिलाई जाती है, जो खाने में प्राकृतिक रूप से पान-सुपारी के द्वारा मसालों का उद्योग बढ़ता ही जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार | होने वाली बीमारियों के अतिरिक्त एलर्जी, कैंसर जैसी बीमारियों सन् 1992 में 200 करोड़ रुपयों का करोबार था, जो सन् 1997 में | को जन्म दे सकती है। 1000 करोड़ से भी अधिक का हो गया था। इस प्रकार प्रतिवर्ष 8 जुलाई 2000, के दैनिक भास्कर में पढ़ा था 'कैसे बढ़ता ही जा रहा है. घटने का नाम नहीं ले रहा है। आज देश में | बनता है सिंथेटिक कत्था'। वह बात आश्चर्यचकित करने वाली इसके उद्योग पर कोई रोक नहीं और न ही इनके विज्ञापनों पर | थी जिसे पढ़कर लगा कि अब पान खाने वाले व्यक्ति सात्त्विकता रोक है और न ही इसकी बिक्री पर रोक है। आज राज्य सरकारों से वंचित हो जायेंगे। जो पान स्वास्थ्य के लिए लाभकारी था, वह एवं केन्द्र सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है, जबकि डॉक्टर स्वयं पान अब कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों को सौगात देने का कारण कहते हैं-यह मानव स्वास्थ्य को गंभीर खतरा उत्पन्न करने वाला | बन रहा है। नकली कत्था असली कत्थे की कीमत से आधी है। इसके माध्यम से गले और मुँह के अत्यन्त हानिकारक कैंसर | कीमत में मिलता है। असली कत्था, खैर वृक्ष की छाल से बनाया जैसे जानलेवा मों का जन्म हो रहा है। तमाम स्वास्थ्य संगठनों | जाता है, लेकिन नकली कत्थे को किसी अन्य वृक्ष की लकड़ी, की बार-बार चेतावनी देने पर भी वर्तमान सरकारें इस ओर ध्यान | मुलतानी मिट्टी, जानवरों का खून व बूट पॉलिश आदि का उपयोग नहीं दे रही हैं । सुना था, गोवा की राज्य सरकार ने इस पर प्रतिबंध | करके बनाया जाता है। इसको सुगंधित बनाने के लिये अन्य लगाया था पर कितना असर? पान मसालों के उद्योग करने वालों | रसायन मिलाये जाते हैं। यह नकली कत्था चोरी छुपे बिकता है। पर कुछ भी प्रभाव नहीं पढ़ा, उनका व्यापार यथावत् ही रहा और | 75 रुपये से लेकर 150 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है। थोड़ी वृद्धि हीं हुई है। आज खूबसूरत पाउचों में पान मसाला रूपी | जब उच्चकोटि का असली कत्था लेने जायें तो 400-425 रुपये मीठा जहर भरकर बेचने वाले मौत के सौदागर शहरों तक सीमित | किलो के भाव से बाजार में मिलता है। इस नकली कत्थे के नहीं रहे। देश के प्रत्येक शहर, नगर, गाँवों की गली, कूचों में | दुष्परिणाम उपभोगकर्ता की आँतों पर पड़ते हैं। इससे भूख नहीं फैल गये हैं। इन पर प्रतिबंध आज बहुत जरूरी है। आज देश में | लगती तथा कब्ज की शिकायत, गले की खराबी और चर्म रोग हजारों तरह के पान मसालों का प्रचलन है, परन्तु इसकी सबसे | आदि बीमारियाँ होती है। यही कत्था पान-मसालों में मिलाया बड़ी मंडी उत्तर प्रदेश की औद्योगिक महानगरी कानपुर मानी जाता है। आमतौर पर देखा जाये तो चूने व कत्थे का मिश्रण काला जाती है, जहाँ पर सौ से भी अधिक किस्म के पान मसाले बनाये पड़ जाता है, परन्तु उस पान मसाले को गुलाबी बनाये रखने के जाते हैं। लिये खड़िया स्टोन डस्ट और जानवरों को खिलाई जाने वाली पान मसालों में क्या? - इन पान मसालों को कैसे | खली को गेरु में रंगकर पान-मसाले का रूप दिया जाता है। बनाया जाता है ? इनमें क्या-क्या मिलाया जाता है ? इसके बनाने पान मसाले से पथरी - पान मसाले का प्रयोग जितना की प्रक्रिया बहुत सरल है। ये चूना, कत्था, चिकनी सुपारी, व्यापक होता जा रहा है, उतनी ही बीमारियाँ बढ़ती जा रही है। इलाइची, सेन्ट एवं पिपरमेन्ट से निर्मित होता है। आप बाजार में 5 अक्टूबर 1995, 'दैनिक विश्व परिवार', झाँसी में एक सर्वेक्षण जाकर इस सामग्री आदि को खरीदने जायँ और अच्छी सामग्री आया था-आज पथरी के जितने ऑपरेशन हो रहे हैं, उनमें से खरीदें एवं पूरी शुद्ध सामग्री मिलाकर पान मसाला तैयार करें तो आधे ऑपरेशनों से ज्ञात हुआ कि पथरी के लिये पान मसाले ही करीब 400 से 450 रुपये प्रतिकिलो के भाव का पड़ेगा, परन्तु जो कारण हैं। पान मसालों को बनाने में प्रयोग किए गए विभिन्ना कम्पनियों द्वारा बनाये गये पान मसाले हैं, 150-160 रुपये प्रतिकिलो | प्रकार के पदार्थ पेट में जमा हो-होकर पथरी का निर्माण करते हैं। के भाव से मिल रहे हैं। इससे स्वयं सिद्ध होता है कि ये पान | जिसके कारण अनेक भयंकर दुष्परिणाम देखने पड़ते हैं और ये मसाले पूरी तरह शुद्ध नहीं है। इनमें कत्था को ही लें, इसकी जगह पान मसाले दाँतों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। दाँतों पर पर सिंथेटिक कत्था उपयोग किया जाता है। काले-काले धब्बे पड़ जाते हैं। इसके सेवन से दाँत अपनी वास्तविक सिंथेटिक कत्था (नकली कत्था)- दैनिक भास्कर, | छवि को खो देते हैं और जीभ पर भी बुरा असर पड़ता है। जबलपुर 27 नवम्बर 2000, पृष्ठ 5 पर - 'मिलावटी कत्थे से रचे | पान मसाले में सूखी छिपकली का चूर्ण - यह सच है जा रहे हैं आपके ओंठ' समाचार पढ़ा और पाया विगत कुछ माह कि जब से पान मसाला रूपी जहर एक रुपये के पाउचों में आया पूर्व राज्य खाद्य प्रयोगशाला, भोपाल द्वारा किये गये कत्थे के है, तभी से इसकी गुणवत्ता समाप्त हो गई है। अब तो खुले आम नमूनों के परीक्षण में यह सिद्ध हो गया है कि कत्थे में मिलावट की | जहर बिकने लगा है और इन पाउचों में काँच, तार के टुकड़े, जा रही है। शिकायत के आधार पर खाद्य विभाग के खाद्य निरीक्षक | आलपिन इत्यादि निकलना तो आम बात हो गई है। दैनिक विश्व श्री एस.डी. दुबे ने इन कत्थों के नमूनों को शहर की विभिन्न क्षेत्रों | परिवार, झाँसी के 5 अक्टूबर 1995 के न्यूज पेपर की वह घटना -मई 2002 जिनभाषित ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524262
Book TitleJinabhashita 2002 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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