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सब कुछ हो जाता है। जो हमारे तन, मन को खराब करें, ऐसे | फेफड़ों का कैंसर, हार्ट अटेक, पेट का अल्सर, मूत्राशय का पदार्थों से मुक्ति पायें और जीवन को शुद्ध आचरण के माध्यम से | कैंसर और पैरों में वर्जरस जैसी बीमारियाँ हो जाती है। पान स्वस्थ एवं प्रसन्न बनाएँ, यही हमारे जीवन का सही पुरुषार्थ | मसाले से मुँह की माँसपेशियाँ कठोर हो जाती है, जिससे मुँह में होगा।
सबम्यूकस फाईथोसिस बनना शुरू हो जाता है। पान मसाला और चिकित्सकों के विचार -
डॉ. नरेन्द्र लोढ़ा
नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ अगली महामारी मुँह कैंसर के रूप में होगी, यदि पान | मसालों पर रोक नहीं लगाई गई तो ....।
जर्दा एवं पान मसालों को मुँह में ज्यादा देर रखने से मुँह कैंसर विशेषज्ञ, डॉ. एस.एस. नैयारजी | में खिंचाव होने लग जाता है। आवाज में भारीपन आ जाता है। अगर कोई सोचता है कि धूम्रपान बुरी बात है तो पान | मुँह कम खुलने लगता है। गुटखा खाना जारी रहे तो मुँह का मसाला की आदत जानलेवा है।
बिल्कुल खुलना बंद हो जाता है। दंत विशेषज्ञ, डॉ. सुचेतन प्रधान, मुम्बई
डॉ. डी.पी. गुप्ता सिर्फ पान मसाला होता है जो ज्यादातर अज्ञात तत्त्वों का
| जर्दे वाले गुटखे का सेवन करने वाली गर्भवती महिलाओं मिश्रण है। सुगंध पैदा करने वाले तत्त्व गोपनीय रखे जाते हैं।
| के पेट में पल रहे बच्चे पर निकोटिन पदार्थ का प्रतिकूल प्रभाव (पैकिट पर कुछ तत्त्वों के ही नाम होते हैं) पर बीमारी पैदा करने
पड़ता है, जिससे बच्चे या तो विकलांग या फिर मंदबुद्धि हो जाते वाले दो तत्त्व तम्बाकू और सुपारी ही हैं।
डॉ. प्रो. बाबू मैथ्यू, मुम्बई क्षेत्रीय कैंसर केन्द्र औकोलॉजी
डॉ. यू.एस.चौहान, चर्मरोग विशेषज्ञ इस संबंध में निर्विवाद सबूत है कि पान मसाले को
कैंसर वार्ड में 40% से अधिक रोगी जर्दा, गुटखा आदि खतरनाक उत्पाद करार देना जरूरी है।
की वजह से आते हैं। इसके सेवन से मुँह में सफेद घाव बनने लग
डॉ. श्रीप्रकाश गुप्ता, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुम्बई | जाते हैं, जो धीरे-धीरे कैंसर का रूप ले लेते हैं। गुटखा, पान मसाले एवं जर्दे के सेवन से लकवा, मँह,
___ डॉ. यू.के. माथुर कैंसर इकाई'
गुरुवर सुधासागर को मेरा शत-शत वन्दन
अशोक धानोत्या उन्नत भाल है, जिनका समतामयी है वचन, 'सिंह' की मानिंद करते हैं, जिन आगम का प्रवचन, माता शांतिदेवी के लाल, पिता रूपचन्द्र के नन्दन, ऐसे गुरुवर सुधासागर को मेरा शत-शत वन्दन।
तप से जिनका तन वज्र बना, मन से जो करुणाधारी हैं। जो इन्द्रियों पर संयम रखते, भोगों के नही भिखारी हैं। जो राग द्वेष को जीत रहे, संयम समता के द्वारा। उन पूज्य मुनि सुधासागर को, शत-शत नमन हमारा ॥
राजुल-गीत
श्रीपाल जैन 'दिवा' सखी री चाहत मन की साध। सखी गुन चाहत मन की साध । मन आतम के क्षितिज हुआ क्यों, उदय अस्त अपराध। पल दो पल की कौन कहे सँग, बिता न पल एकाध। फिर भी मन बहता उनके सँग, मन कैसा निर्बाध । निर्मोही पर हुआ बावला, भव-भव जलधि अगाध । मन ही मेरा हुआ पराया, निर्वश मन की साध। पल भर आ दर्शा जावें वे, मेरा क्या अपराध ?
(2) राजुल कर्पूरी है राग। सखी री कर्पूरी है राग। साध तुम्हारी चाहत है पर, चाहत वहाँ विराग। उदय अस्त की दिशा व दूरी, कैसे खेले फाग। अरुणाई द्वय भिन्न सार है,भेद ज्ञान से जाग। सम्यग्दर्शन ज्ञान हुआ सखि, उनके जागे भाग। संकल्पी अणुओं का कर्षण, पीता राग विराग। तेरा कर्षण रागाधारित, उनका धार विराग।
शाकाहार सदन, एल. 75, केशर कुंज, हर्षवर्द्धन नगर, भोपाल-3
करते नित जो मंगल ध्यान, वैराग्य से ऊँचा जिनका नाम । ऐसे गुरुवर "सुधा सागर" को 'अशोक' करता शत-शत प्रणाम ॥
श्री शान्तिनाथ जैन अतिशय क्षेत्र
_ 'सुदर्शनोदय' तीर्थ आंवा टोक (राज.) 304802
-मई 2002 जिनभाषित
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