________________
व्यंग्य
लो मैं आ गया
शिखरचन्द्र जैन
जिस रोज मैंने भिलाई स्टील प्लाण्ट की नौकरी से स्वैच्छिक । पड़ता है। इतर लोग सिनेमा घरों के इर्द-गिर्द घूमते हुए "टाइम सेवानिवृत्ति लेने हेतु फार्म भरा, उसी रोज से मेरे मन में किसी पास" करते हैं अथवा सड़क पर यों ही घूमते हुए। कुछ लोग राजनीतिक दल में घुस जाने की लालसा बलवती हो गई। इसके | शौकिया पढ़ने भी चले जाते हैं। ऊपर से मुसीबत यह कि मेडिकल पहले किसी भी राजनीतिक दल से मेरा कभी कोई सरोकार नहीं | | साइन्स ने आदमी की औसत उमर बढ़ा कर समस्या और भी रहा। कम से कम प्रत्यक्ष रूप से तो कदापि नहीं, क्योंकि एक | जटिल कर दी है। पहले जिस उम्र में "राम-नाम सत्य है" होने सरकारी उपक्रम में अफसर होने के नाते मैं जिस आचार-संहिता | को होता था, अब उस उम्र में लोग शादी-ब्याह की चर्चा करने में बँधा रहा, उसमें किसी भी राजनीतिक दल से किसी भी तरह | को सोच रहे होते हैं। संभवत: इसी के मद्देनजर, आदरणीय अटलजी का संबंध सर्वथा वर्जित था और मैं एक पतिव्रता नारी की तरह ने रिटायरमेण्ट की उम्र अट्ठावन से साठ कर दी, ताकि भैया लोग सामाजिक वर्जनाओं के प्रति परम्परागत रूप से सदैव समर्पित | दो वर्ष और सरकारी कुर्सी से चिपके रहने का आनंद भोग सकें रहा। लेकिन अब, जबकि मैं दासता की बेड़ियाँ स्वतः काट कर | और संसार त्यागने की तिथि की प्रतीक्षा-अवधि कुछ कम हो उन्मुक्त आकाश में विचरण करने के लिए उद्यत था, अपनी एक | सके। दमित अभिलाषा को मूर्त रूप देने लालायित हो उठा, राजनीति के
लेकिन मैंने जो राजनीति में प्रवेश का निर्णय लिया, उसका क्षेत्र में सर्वोच्च सफलता के सपने देखने लगा।
उद्देश्य मात्र समय गुजारना तो निश्चित ही नहीं था। हालाँकि बच्चों अपनी इस योजना से बच्चों को अवगत कराया तो वे की सोच कुछ अलग रही होगी, पर मैं जो राजनीति में जाने के फौरन मान गए। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था। मुझे उम्मीद थी | लिए लालायित था, उसके पीछे मूलत: मेरे अनेक मित्रों का यह कि पूर्व की भाँति ही बच्चे मुझे नौकरी से ही लगे रहने की सलाह अनुरोध था कि चूँकि राजनीति में अच्छे लोगों का सर्वथा अभाव देंगे। यहाँ मैं यह बतला दूँ कि जिस कंपनी में मैं पिछले छत्तीस | है, इसलिए मुझ जैसे लोगों को राजनीति में अवश्य जाना चाहिए। वर्षों से काम कर रहा था, वह पिछले पन्द्रह वर्षों से कर्मचारियों | उनका कहना था कि उच्चशिक्षाप्राप्त, प्रखर वक्ता, कुशल प्रशासक, की संख्या कम करने के उद्देश्य से एक से एक लुभावनी स्वैच्छिक | स्पष्ट सोचवाले और शत-प्रतिशत ईमानदार लोग राजनीति में दूरसेवानिवृत्ति योजनाएँ लागू किए जा रही थी। पर कर्मचारी थे कि दूर तक दृष्टिगोचर नहीं होते। इसीलिए तो देश को सही मार्गअपेक्षित संख्या में फँसते ही नहीं थे। कभी-कभी मेरा मन करता | दर्शन नहीं मिल पाता। "इसी कमी को पूरा करने के लिए" वे कि यदि और कोई आगे नहीं आता, तो क्यों न मैं ही कंपनी को। कहते, "जैन साब, आपको राजनीति में जरूर जाना चाहिए।" उपकृत कर दूं? बच्चों से अपनी मंशा बतलाता तो वे फौरन आड़े मैं मन ही मन मुदित होता। कुछ सकुचाते हुए कहता - आ जाते। कहते "रिटायरमेण्ट लेकर करोगे क्या? बिना काम के | "भैया अब मेरी उम्र हो गई है। साठ के नजदीक पहुँच गया हूँ। घर में बैठोगे तो समय से पहले ही बुढ़ा जाओगे। खाली दिमाग | अब तो बाकी समय भगवद् भजन में बिताना ही श्रेयस्कर होगा। शैतान का घर होता है। समय काटे नहीं कटता।" और जो नहीं | राजनीति में भला अब मैं क्या कर पाऊँगा?" कहते वह था -"नौकरी छोड़कर घर में रहोगे तो चौबीसों घंटे | "कैसी बातें करते हो?" वह कहते-“राजनीति में प्रवेश हमारी मूड़ पर सवार रहोगे या गर्दन पर साँस छोड़ोगे (अंग्रेजी के | की सही उम्र तो यही है। जवान-नौजवान जुलूस में नोरबाजी के 'ब्रीदिंग ओवर दी नेक' से साभार), हर काम में मीन-मेख | लिए तो ठीक हैं, पर राजनीति की सही समझ तो उम्र के साथ ही निकालोगे। न खुद सुख से रहोगे, न हमें रहने दोगे। अभी दिन में | आती है। अपना बस चले तो राजनीति में प्रवेश की न्यूनतम उम्र दस-बारह घंटे घर से बाहर रहते हो, तो कुछ तो राहत रहती है, साठ वर्ष करवा दें। लोकसभा, विधानसभा में जितने ज्यादा बुजुर्ग फिर तो हरदम हमारी जान सांसत में रहेगी। इससे तो बेहतर है कि पहुँचेंगे, जूते-चप्पल उतने ही कम चलेंगे। बाजुओं में माइक जहाँ लगे हो, वहीं लगे रहो। वरना खुद को भी समय काटना | तोड़ने लायक जोर नहीं होगा, तो वाद-विवाद से ज्यादा काम दूभर होगा और हमें भी।"
लिया जावेगा और फिर आप तो भगवान की दया से वैसे ही हट्टेसमय काटना, हमारे देश में, सचमुच ही एक मुश्किल कट्टे हो। बीस-पच्चीस साल तो राजनीति में सहज ही चल काम है। लोगों के पास इफ़रात समय है, जबकि करने को ज्यादा जाओगे।" कुछ भी नहीं है। इसीलिये तो बेचारे सरकारी कर्मचारियों को | और इस तरह मैं एक काफी लम्बे अर्से से निरंतर उत्साहित ज्यादातर समय क्रिकेट कमेन्ट्री सुनते हुए व्यतीत करने को बाध्य होता चला आ रहा था। बस फिर क्या था? इधर मुझे सेवानिवृत्ति होना पड़ता है या फिर बार-बार कुर्सी से उठकर चाय पीने जाना | मिली, उधर मैंने राजनीति में प्रवेश का खुला ऐलान करते हुए
-मई 2002 जिनभाषित 17
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org