Book Title: kavidarpan
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan
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सवृत्तिकः कविदर्पणः
भमरु भामरु समरु संचालु
मयरंदउ मक्कडउ। नलु मरालु मयगलु पओहरु
ए नामाई दोहाहं मयरु मच्छु कच्छवउ गोरउ ॥ होइ हु छब्बीसक्खरउ
दोहउ बिहु लहुएहिं । अक्खरि अक्खरि बे चढहिं
भमराइयनामेहि ॥ ८८॥ आयोदाहरणं
बे गोरा बे सामला
बे रत्ता निप्पंक । बेनीला हेमप्पभा
सेसा मायामुक्त ॥ ८९॥ अन्स्योदाहरणं यथा
वियसियजलरुहदलनयण
हिमकरकरसरिसतणु। सरसइससहरसमवयण
पणमह जिण जणियनाणु ॥ १० ॥ सिलोयलक्खणं जहा
पंचम लहुयं सव्वं सत्तमं दुचउत्थए ।
छटुं पुण गुरुं सव्वं सिलोयं विति पंडिया ॥९१ ॥ उदाहरणं
पोसेउ पंचमो चक्की सोलसो मे जिणो जसं । चक्कं च धम्मचक्कं च जस्सायच्चु व्व सेवभो ॥१२॥ इति नन्दिताढ्यकृतं गाथालक्षणं समाप्तम् ।
पणमा
stan
।
Stanza 88 is a couplet made of a Matra and a Dohā. हे जिन हे जनितज्ञान अहं त्वयि प्रगतः। (जनितधर्म धनुशब्देन धर्मो ज्ञेयः । एवंविधं जिनं प्रणमत E) ॥९०॥ यस्य चक्ररत्नं चान्यत् धर्मचक्र आदित्य इव सेवते । (यस्य जिनस्य आदित्य इव सूर्य इव सेवकः E) ॥ ९२ ॥ (माण्डब्यपुरगच्छीयदेवाणंदमुनेगिरा। टीकेयं रत्नचन्द्रेण नन्दिताव्यस्य निर्मिता || A)
८८.२ मयलधुउ मङ्कडउ G; ३ मयगहलु पऊहरु F; ४ दोहडह G; ५ गोहरु F; ९०.४ पणय हुं (?) C; जणियतणु AG; जणियधणु E; ९१.४ पिंडिया for पंडिया D; ९२.१ पासेउ F; ४ जस्साइच्चोव्व सेवए AB: सेयओ for सेवओ F.

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