Book Title: kavidarpan
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan

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Page 183
________________ १९४ सवृत्तिकः कविदर्पणः त--त-टदु-लहुदु-गुरुगा आइदुगे त-ट-त- टतिग-दुलहु-गुरू । तुरिए त-ट-त-टजुयलं चगण-गुरू चित्तलेहत्ति ॥ १३ ॥ इक्खाग विदेह नरीसर नरवसहा मुणिवसहा नवसारयस सिसकलाणण विगयतमा वियरया । अजिउत्तमतेयगुणेहि महामुणि अमियबला विउलकुला पणमामि ते भवभयमूरण जगसरणा मम सरणं ॥ १३ ॥ चित्तलेहा | [Visama Catuspadi : 1st and 2nd :–5, 4, 5, 4, 4, IIS; 3rd :–5, 4, 5, 4 × 3, IIS; 4th : 5, 4, 5, 4 × 2, 3, S.] चअट्ठ गुरुल हुचनवग नगणो चभट्ठ नगणो नगणो य । दस चगणा तह नगणो चगणो गुरु दोन्नि नाराओ ॥ १४ ॥ देवदाणविंदचंदसूरवंद हट्ठतुट्ठ जिट्ठ परमलहरूव धंतरुप्प - पट्टसेय सुद्धनिद्धधवलदतिपंति संति, सत्तिकित्तिमुत्तिजुत्तिगुत्तिपवर दित्ततेयवंद धेय सव्वलोयभावियप्पभावनेय पइस में समाहि ॥ १४ ॥ नाराओ । [This metre, ie, Nārāca, too, is like Vestaka; it is not divided into Pādas, and resembles a Curņikā. It consists of any number of long and short letters coming in succession and forming pairs; but sometimes, the long letter is substituted by short ones for the sake of variety. In the present stanza we have 40 such pairs followed by two long letters, but in the 10th, 19th, 28th, and 39th pair the long letter is substituted by two short ones. See below Nos. 28 and 31.] विसमे कलाण छकं समेसु अडगं णिरंतरं न हु तं । अंते रगणो यगणो कुसुमलयाना मछंदमि ॥ १५ ॥ विमलस सिकलाइ रेयसोमं वितिमिरसूरकलाइरेयतेयं । तियसवइगणाइरेयरूवं धरणिधरप्पवराइरेयसारं ।। १५ ।। कुसुमलया । [This is another name of Aupacchandasaka; see KD. 5. 2] तगणो टगणो लहु गुरु; पगणो टगणो य दुलहु गुरु दुइए । एवं चिय पच्चद्धं भुयंगपरिरंगियं छंदं ॥ १६ ॥ सत्ते य सया अजियं सारीरे य बले अजियं । तवसंजमे य अजियं एस थुणामि जिणं अजियं || १६ || भुयंगपरिरंगियं । [Ardhasama Vrtta : Odd Pādas :–5, 4, IS; Even Pādas; 6, 4, IIS]. भरनभनगणलहुगुरू सब्वपएसुं तहा जई दसमे । सव्वं तक्खरजमियं छंं खिज्जिययनामं तं ॥ १७ ॥

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