Book Title: Yogasara Prabhrut Author(s): Amitgati Acharya, Jugalkishor Mukhtar Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ त्वदीयं वस्तु भो योगिन्, तुभ्यमेव समर्पितम् हे निःसंग- योगिराज आचार्यवर श्री अमितगति ! आपका यह महान् उपकारी ग्रन्थरत्न ‘योगसार-प्राभृत' आज से कोई छह वर्ष पहले उस समय मेरे विशेष परिचय में आया जब कि मैं आचार्यश्री रामसेन के तत्त्वानुशासन (ध्यानशास्त्र ) पर भाष्य लिख रहा था । इसके गुणों ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया, जिससे बार-बार पढ़ने की प्रेरणा मिली। इसके साथ हिन्दी का जो पूर्वानुवाद प्राप्त हुआ वह अनेक दृष्टियों से मुझे ग्रन्थ- गौरव के अनुरूप नहीं जँचा और इसलिए हृदय में यह भावना उत्पन्न हुई कि इस पर भी तत्त्वानुशासन की तरह भाष्य लिखा जाना चाहिए, जो कि भाषा की सरलता एवं अर्थगम्भीरता आदि की दृष्टि से तत्त्वानुशासन के समकक्ष हो और विषय की दृष्टि से दोनों एक दूसरे के पूरक हों । तदनुसार ही यह भाष्य रचा गया है। इसमें चूँकि आपके ही विचारों का प्रतिबिम्ब एवं कीर्तन है अतः यह वास्तव में आपकी ही वस्तु है और इसलिए आपको ही सादर समर्पित है। वि.सं. १६६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only विनीत, जुगलकिशोर www.jainelibrary.orgPage Navigation
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