Book Title: Vivek Manjari Part 02
Author(s): Chandranbalashreeji, Pandit Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala

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Page 324
________________ परिशिष्टम्-१ विवेकमञ्जरीमूलगाथा ॥] [६४७ जणणी जायइ जाया जाया माया पिया य पुत्तो य । अणवत्था संसारे कम्मवसा सव्वजीवाणं ॥१०७॥ एगो बंधइ कम्मं एगो धणहरणमरणवसणाई । विसहइ भवम्मि भमडइ एगु च्चिय कम्मवेलविओ ॥१०८॥ अन्नो न कुणइ अहियं हियं पि अप्पा कुणेइ न हु अन्नो । अप्पकयं सुहदुक्खं भुंजसि ता कीस दीणमुहो ? ॥१०९॥ बहुआरंभविढत्तं वित्तं विलंसति जीव ! सयगणा । तज्जणियपावकम्मं अणुहवसि पुणो तुमं चेव ॥११०॥ अह दुक्खियाई तह भुक्खियाई जइ चिंतियाइं डिभाइं । तह थोवं पि न अप्पा विचिंतिओ जीव ! किं भणिणो ? ॥१११॥ वीस सयणलोगो तुह संबंधं मुहुत्तकयसोगो । जीव ! सुहासुहकम्मं वच्चइ एगं तए सरिसं ॥११२॥ तह परिचयघट्ठाई अणंतसो जीव ! जम्ममरणाई। ता मरणे वि तुमं कह हद्धी धीरत्तणं मुयसि ? ॥११३॥ खणभंगुरं सरीरं जीवो अन्नो य सासयसहावो । कम्मवसा संबंधो निब्बंधो इत्थ को तम्हा ? ॥११४॥ कह आयं कह चलियं तुमं पि कह आगओ कहं गमिही । अन्नुन्नं पि न याणह जीव ! कुडुंबं कओ तुज्झ ? ॥११५॥ असुइसमवायजायं असुइरसाहारबद्धसंठाणं । असुईण जम्मभूमी तं देहं कह सुई होइ ? ॥११६॥ पंचेंदियाइं चउरो तह कसाया य तिन्नि दंडा य । पंचप्पाणिवहाई सत्तरसासवदुवाराइं ॥११७॥ एएहिं मुक्कलेहिं जीवतलायं समंतओ एयं । निच्चं आऊरिज्जइ कम्ममहावारिपूरेण ॥११८॥ एयाइं जो निरंभइ पडिसेहइ सो तमित्थ पविसंतं । जं च पुराणं तं पि हु कमेण सोसेइ अपमत्तो ॥११९॥ बारसभेयविसिटुं सब्भितरबाहिरो जिणुद्दिद्यो । ताविओ तवो विसुद्धो कम्ममसेसं पि निज्जड ॥१२०॥

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