Book Title: Vivek Manjari Part 02
Author(s): Chandranbalashreeji, Pandit Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala
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६५२]
पुव्वविदेहे सीमंधरसामी
बहुआरंभविदत्तं बारसभेयविसिद्धं
बालाण तवस्सीण य
भमिहिसि भवम्मि निग्गुण !
भरहाईण मुणीणं
भरो कु भवभमणनिब्भयाए
मणसुद्धी पुण दइया
मा जासु जीव ! तुमं
मायं लोहं कलहं
मुक्कं पावनिकं
मुक्खहं पडतो
मोहंण य इयं
इअरई तह मिच्छादंसण रइयं पगरणमेयं
रक्खेज्जसु जीव ! तुमं
रे जीव ! कह णु चिंतसि
देवई जा
वंदे दसन्नभ
वासुपुज्जविमलसामिअ विससु परिभमंतं
विसमभवभमणनासण
विसमिव मुहे महुरा
१६- १० | विसयरसावमत्तो ११०-६१६ | विहडइ विहवो विहड
१२० - ६२०
विहवो सज्जणसंगो
विहियं वेयावच्चं
२९- १८ १२७-६२५ | वीसरइ सयणलोगो संकाकंखविगिंछा
२६ - १७
२४-१५ | सच्चरियं साहूणं
४४-१७३ | सव्वं पाणाइवायं
१३१-६२७ सा कावि खमा
१०३ -६१५ | सासयजिणालयाइ
८६-६०६ | साहम्मियसम्माणं ९०-६०७ | सिज्जंभवो अ पभवो १७- १० | सिद्धंतसुत्तहारो
९१-६०८ | सिद्धिपुरसत्थवाहं
८७-६०६ सिद्धा य मंगलं
१४३-६३४ | सिरिउसभवद्धमाण १३९-६३३ | सिरिपुंडरीयगोयमपमुहा १२६-६२४ | सिरिभिल्लमालनिम्मल ५८- ३४१ सिरिरिसहअजियसंभव
४५ - १८६ | सीयादेवी सुलसा १२-९ सु च्चिय
१३७ - ६३२ | सुहिया आमरहिया
५४-३३८ | सो पढमचक्कवट्टी
१०४ - ६१४
सोणियगंधविणिग्गय
[ विवेकमञ्जरी
१०५- ६१४
१२९-६२७
-९९-६१२
२७-१७
११२-६१७
६९-५९३
६१-५८८
८५-६०६
४७-१९८
१९-१०
१३३-६२९
५१-२५८
२२-१२
१-४
८-८
१५-९
२३-१४
१४४-६३५
११-९
५६-३४१
३०-६६
८१-६०४
२८-१८
३७-११६

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