Book Title: Vivek Manjari Part 02
Author(s): Chandranbalashreeji, Pandit Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala

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Page 333
________________ ६५६] [विवेकमञ्जरी १३०-६३० १२८-६२६ ७४/७५-६०१ ७४/७५-६०२ १२७-६२६ १२७-६२७ १३०-६२८ ९२-६०८ ९७-६११ ९८-६१२ १२१-६२१ १२१-६२१ १२७-६२६ ९२-६०९ यो.शा./३/१०२] [यो.शा./३/१०६] कृतकृत्योऽस्मि धन्योऽस्मि केशोत्तारणमल्पमल्प गन्धकाभ्रकपालेवारणगुडूचीगुग्गुलीमुस्ता गुरुपदेशतो बद्ध्वा गृहेष्वर्था निवर्तन्ते चराचरेषु जीवेषु छिन्नाच्छिन्नवनपत्रजन्तो रत्नत्रयी यस्य जरामरणदौर्गत्यजीवानां पुद्गलानां च जीवो जिनोदितैरेभितपश्च द्वादशविधं तिलेक्षुसर्षपैरण्डत्रीन्द्रिया मत्कूणा यूका दन्तकेशनखास्थित्वदुर्गतौ सृताज्जन्तून् दुष्षमादुष्षमारे च दुष्षमारे प्रमा वर्षद्विसप्ततिशरन्मानायुषो धनं धर्मविलोपने धर्माद् भूम्यादीन्द्रियन जन्म न जरा नापि नवनीतवसाक्षौदनासावेधोऽङ्कनं निर्वाणसाधकान् साधून् निस्तुषं समभागं च पञ्चेन्द्रिया जरापोताण्डजाः पठति पाठयते पठतामसौ ७२-६०० [यो.शा./३/१०६] ९२-६०८ [प्र.र./२४४] . १२४-६२४ ७२-५९९ ७२-५९९ ७२-५९९ १०८-६१६ २०/२१-११ १२७-६२६ ९२-६०९' ९२-६०९ ७०/७१-५९५ १२७-६२६ ७२-६०० ७०/७१-५९६ [यो.शा./३/१०८] [ ]

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