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वीश
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दोहा ॥
पवित्र गम जोई करी, श्रापुं मूरति एह ॥ दरिसण जिम नित्य प्रत्ये करूं, पवित्र करूं निज देह ॥ १ ॥ तृणमय वेश्म करी तिहां, जाणे संसद ठाय ॥ पीठ करी सरिता तदें, श्राप्या आदिराय ॥ २ ॥ दरिस मूरतिनां करी, जमवुं ए मुज नीम ॥ दरिस विा जमवुं नहीं, जां जीवुं त्यां सीम ॥ ३ ॥ पक्षी अष्टमी आदिक परव, तेहनें विषे विशेष ॥ देवपाल नग्रन्नावथी, अभिग्रह लीधो एष ॥ ४ ॥ चारे सुरभि नित प्रत्यें, अर्चे यदि जिद || चंदनशुं चरचे सदा, व्य नाव होय बंद ॥ ५ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ चोपाईनी देशी ॥
जलधर वरसे मूशलधार, दिवसें थई गयो घोर अंधार ॥ जल एकार्णव कीधी धरा, रात दिवस न रहे एक जरा ॥ १ ॥ सात दिवस लगे ऊमी इम थर, पूजा करवा न शके जइ ॥ श्रनिग्रहथी पण नवि ले ग्रास, सात श्रया तेहने उपवास ॥ २ ॥ जिनपूजा धरतां मन ध्यान, क्लिष्ट करम खपाव्यां निदान || वृष्टि निवृत्ति यश तिए गह, कुशीभूत थयो नीरप्रवाह ॥ ३ ॥ नतगे दिवस श्रये आठमें, पूजा करवा गयो तिले समे । नक्ति करि जिनवर पूजीया, ततक्षण पाप करम धूजीयां ॥ ॥ ४ ॥ भक्ति मुग्ध निर्मल शुभमति, जिन ग्रागल पनले वीनति ॥ खमजो तुमें कमा आधार, त्रिभुवन स्वामी करुणागार ॥ ५ ॥ सप्त दिवस में पूज्या नही, मंद जाग्य स्वामी हुं सही ॥ ताहरां दरिस विणमुज तात, गया अनर्था वासर सात ॥ ६ ॥ निष्फल दिवस गया जिनपति, जिम अरण्य मांहे मालती ॥ निष्फल नागरवेली जेम, वासर सात गया मुज तेम ॥ ७ ॥ भलो दिवस नगियो मुऊ प्राज, आज लघुमें त्रिभुवनराज ॥ जागी जाग्यदशा मुजवाह, नयरों दीठा श्रीज
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स्थान
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