Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 7
________________ दो शब्द हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म, मांसाहार और अनैतिक तथा अधर्म पूर्ण आचार व व्यापार दुःख के द्वार हैं। दान, शील, तप और विशुद्ध भावनाएं सुख के द्वार हैं। व्यक्ति का सुख या दुःख किसी पराशक्ति के हाथ में नहीं है, बल्कि व्यक्ति के स्वयं के हाथ में है। भगवान महावीर का स्पष्ट उद्घोष "बंधप्प मोक्खो तुज्झत्थेव।" मानव ! तेरे दुःख रूप बन्धनों और सुख रूप मोक्ष का नियंता तू स्वयं है। लोक या परलोक की अन्य कोई शक्ति तुझे सुखी अथवा दुखी नहीं कर सकती।तू सुखी है तो उसका कारण तू स्वयं है, दुखी है तो उसका कारण भी तू स्वयं है। बहुत स्पष्ट संदेश सूत्र है भगवान महावीर का। इस संदेश को हृदयंगम करने वाला भव्य प्राणी दुःख-द्वन्द्वसेसदा-सर्वदा के लिए मुक्त हो जाता है। प्रस्तुत आगम ग्रन्थका कथ्य यही है। बीस सुमधुर और रोमांचक कथाओं में कर्मसिद्धान्त का सुन्दर संकलन हुआ है। पाठक बहुत ही सरलता से इस सत्य को समझ लेता है कि मनुष्य को सुख-दुख का दाता अन्य कोई नहीं है बल्कि उसके ही अपने कर्म हैं जो उसे सुखी और दुःखी बनाते हैं। प्रस्तुत आगम ग्रन्थ केस्वाध्याय से व्यक्ति को सहज ही प्रबल प्रेरणा प्राप्त होती है कि वह हिंसादि से मुक्त हो और दान-दयादि से युक्त हो। प्रस्तुत विशाल आगम के व्याख्याकार हैं मेरे दादा गुरुदेव पंजाब केसरी महाश्रमण श्री ज्ञानमुनि जी महाराज। श्रुतधर्म के प्रतिमान पुरुष आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज की चरणसन्निधि में बैठ कर गुरुदेव श्री ज्ञान मुनि जी महाराज आगम वाङ्मय में गहरे और गहरे पैठे। प्रस्तुत आगम की सरल, सटीक और विशद व्याख्या आगम वाङ्मय पर उनके असाधारण अधिकार केसाथ-साथ उनकी सुललित लेखन शैली का भी अनुपम उदाहरण है। ' प्रस्तुत ग्रन्थ के संपादक हैं लोक में आलोक के प्रतिमान आचार्य सम्राट्गुरुदेव श्री शिवमुनि जी महाराज।आचार्य श्री का सृजनधर्मी व्यक्तित्व जैन-जनेतर जगत में अपनी विशेष पहचान रखता है।क्षण-प्रतिक्षण सृजन-साधना में संलग्न रहना आचार्य श्री का स्वभाव है। स्वाध्याय, ध्यान और तप की त्रिपथगा में आचार्य श्री स्वयं तो गहरे पैठे ही हैं, मुमुक्षु जन समाज के लिए भी वेइसमें पैठने के लिए आमंत्रण बने हुए हैं। लाखों हृदय उनके आमंत्रण में बन्धे हैं और लाखों ने उनसे धर्म के शुद्ध स्वरूप का अमृत वरदान पाया है। ___ आचार्य श्री केमंगलमय दिशानिर्देशन में आगम सम्पादन व प्रकाशन का कार्यक्रम प्रगतिमान है।ध्यान और तप में सतत साधनाशील आचार्य श्री श्रुत सम्पादन में भी अपना समय समर्पित करते हैं। 4] श्री विपाक सूत्रम् . . [दो शब्द

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