Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 12
________________ चाय-सपज्जायविसेसणाइणा तस्स जमुवउज्जति । सधणमिवासंबद्धं भवंति तो पज्जया तस्स ॥ (४८०) जह दुव्वयणमवयणं कुच्छियसीलं असीलमसईए । भण्णइ तह नाणं पि हु मिच्छादिहिस्स अण्णाणं ॥ (५२०) पंचण्हमूहसण्णा हेजसण्णाय बिइंदियाईणं । सुरनारय-गन्भुन्भवजीवाणं कालिगी सण्णा ॥ ( ५२३) खीणम्मि उइण्णम्मि य अणुदिज्जते य सेसमिच्छत्ते । अंतोमुहुत्तमेत्तं उवसमसम्मं लहइ जीवो ॥ (५३०) मिच्छत्तं जमुइण्णं तं खीणं अणुइयं च उवसंतं । मीसीभावपरिणयं वेइज्जतं खओवसमं ॥ ( ५३२) चोइस दस य अभिन्ने नियमा सम्मत्तं सेसए भयणा । मइ-ओहिविवज्जासेऽवि होइ मिच्छ न उण सेसे ॥ (५३४) नाणमवाय-धिईओ दंसणमिदं जहोग्गहे-हाओ। तह तत्तरुई सम्मं रोइज्जइ जेण तं नाणं ॥ (५३६) मिच्छ-भवंतर-केवल-गेलन्न-पमायमाइणा नासो । (५४०) गणहर-थेरकयं वा आएसा मुकवागरणओ वा। धुव-चलविसेसओ वा अंगा-गंगेसु नाणत्तं ॥ (५५०) तुच्छा गारवबहुला चलिंदिया दुब्बला घिईए य । इय अइसेमऽज्झयणा भूयावाओ य नो त्थीणं ॥ (५५२) "सुत्तत्यो खलु पढमो बीओ निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ । तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥” (५६६ नि०) उदय-खय-खओवसमो-वसमा जं च कम्मुणो भणिया । दवं खितं कालं भवं च भावं च संपप्प ॥ ( ५७५)

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