Book Title: Vicharsar Prakaranam Cha
Author(s): Pradyumnasuri, Manikyasagar
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 10
________________ श्री । श्रीविशेषावश्यकभाष्यस्य विशेषोपयुक्ता गाथाः । +++++ पवज्जा सिक्खावयमत्थग्गहणं च अनिअओ वासो । निष्पत्ती य बिहारी सामायारी ठिई चैव ॥ ७ ॥ पज्जायाऽभिधेयं ठिअमण्णत्ये तयत्थनिरवेक्खं । जाइच्छि च नामं जाव दवं च पाएण ॥ २५ ॥ जं पुण तयत्यमुनं तयभिप्पारण वारिसागारं । कीर व निरागारं इत्तरमियरं व सा उवणा (२६) अहवा वत्थुऽभिहाणं नामं ठबणा य जो तदागारो । कारणया से दर्द कज्जावनं तयं भावो ॥ (६०) जं वत्थुमति कोर चउपज्जायं वयं सवं । (७३) जं सामि - काल-कारण- विसय-परोक्खत्तणेहिं तुल्लाई । तम्भाषे सेखाणि य तेनाईए मइ - सुयाई || (८५) काल- विवजाय - सामित्त - लाभसाहम्मओ वही तत्तो । माणसमित्तो छउमत्थ-विसय- भावादिसामण्णा ॥ ( ८७ ) अन्ते केवलमुत्तमजइसामित्तावसाणलाभाओ । (८८) एगतेण परोक्खं लिंगियमोहाइयं च पञ्चक्खं । इंदिय - मणोभवं जं तं संववहारपच्चक्खं ॥ ( ९५ ) लक्खणभेआ हेऊफलभावओ भेय - इंदियविभागा । बाग - क्खर - ए - यरभेआ भेओ मइयाणं ॥ (९७) सद- सदविसेसणाओ भवहेऊ जदिच्छिओवलम्भाओ । नाणफलाभावाओ मिच्छहिडिस्स अण्णाणं ॥ ( ११५ )

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