Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 179
________________ 160 कमानचम्पूः ईदृश्यवस्थासमुपेतस्तपस्थी योगी तीर्थकरो महावीरो विहरन् विहारप्रान्तस्थ मगधदेशान्तर्गतग्रामस्य सनिकटे वर्तमानाया ऋजुकलाया नद्यास्तदं ममासवत । तत्र संस्थितस्य विशालसालविटपिनोऽधोभागे निषद्य प्रतिमायोगोऽनेनाधारि । स्वारमध्याननिमानेमानेन सातिशयाप्रमत्तगुणमलामि । तदनन्तरं चारित्रमोहनीयस्य कर्मण एकायशक्ति प्रकृतीः समुन्मूलयितुं अपकश्रेण्या अष्टमं गुणस्थानं समुपलब्धम् । शुक्लध्यानस्यात्र प्रथमो भेद पृथमत्ववितख्येिः समुत्भूतः उच्चस्तर भवनस्योपर्यारोहणाय यथा श्रेणीबद्धा निश्णय उपयुक्ता Hairi, तर पक्षनिवामस्य फयमूलकारणस्य दुद्धर्षस्य मोहनीयस्य झटिति क्षयार्थ क्षपकश्श्रेण्युपयुक्ता जायते । कर्मक्षय ऐसी तप:साधनारूप अवस्था-सम्पन्न योगी वे तपस्वी महावीर विहार करते हुए विहार प्रान्तस्थ - मगध देशान्तर्गत जृम्भिका ग्राम के निकट वर्तमान ऋजुकुला नदी के तट पर आये । वहां वे एक विशाल साल वृक्ष के नीचे विराजमान हो गये । वहां उन्होंने प्रतिमायोग धारण किया । स्वात्मध्यान में निमग्न हुए उन्होंने सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान पर पारोहण किया । बाद में चारित्रमोहनीय कर्म की २१ प्रकृतियों को क्षय करने के लिए क्षपक श्रेणी के प्रथम गुणस्थान अपूर्वकरण पर आरोहण कर शुक्लध्यान के प्रथम भेदरूप पृथक्त्ववितर्क को प्राप्त किया । जिस प्रकार किसी ऊंचे भवन पर चढ़ने के लिए श्रेणीबद्ध सोपान - पंक्ति उपयुक्त होती है, उसी प्रकार भव भ्रमण के कारणभूत कर्मबंध के मूलकारणरूप दुर्द्धर्ष मोहनीय कर्म को शीघ्र नष्ट करने के लिए क्षपक श्रेणी

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