Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ वर्धमानचम्पू: 199 तस्यान्यावपि द्वौ सहोदरी बिद्वन्मण्डल्यसकारकरूपाग्निवायुभूतात्य स्थान्तेवासितति-सहिती महायोरस्य धर्मोपदेश निशम्यानुपमं निखिल संग निरस्य स्वविनीतविनेययुतो दैगम्बरी दीक्षामादाय तदीय गणधरावजनिषाताम् । मिथ्यात्वमलिनं ज्ञानं सम्यक्त्वेन सुवासितम । यदा संजायते, भाति निर्मलादर्शवत्तदा ।। ५० ।। मलं मिथ्यात्वमस्मासज्जायते मलिनं प्रवम् । सम्यक्त्वमेव तस्यास्ति व्यपनोवाय शक्तिमत् ॥५१॥ श्रीचन्दनद्रोः समीपस्था निम्बाबयो यदि चन्दनतां लभन्ते किमत्र तहिं चित्रमिति । और भी दो सहोदर भाई थे जो विद्वानों की मण्डली के अलंकार जैसे थे । इनका नाम अग्निभूत और वायुभूत था। ये दोनों भी अपनी-अपनी शिष्यमण्डली सहित महावीर का धर्मोपदेश सुनकर समस्त परिग्रह का परित्याग कर दिगम्बर दीक्षा धारण कर भगवान् महावीर के गणधर बन गये। मिथ्यात्व से मलिन हश्रा ज्ञान जब सम्यक्त्व से सुधासित हो जाता है तब वह निर्मल दर्पण की तरह चमकने लगता है ।। ५० ।। मिथ्यात्व एक प्रकार का मैल है । इस मेल से ज्ञान मलिन हो जाता है । इस मैल को धोनेवाला सिर्फ एक सम्यग्दर्शन ही है ।। ५१ ।। चन्दन के पास के वृक्ष नीम प्रादि यदि चन्दनस्वरूप बन जाते हैं तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं है । इसी तरह विप्र इन्द्रभूति गौतम यदि वीर का सान्निध्य पाकर दिगम्बर मुनि बन गया तो आपचर्यकारक बात नहीं है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241