Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 231
________________ यत्किञ्चिदनुषंगिक कथनम् तीर्थकरो महावीरो बुद्धश्व तीर्थंकर महावीरकालेऽन्येऽपि धर्मप्रचारका बभूवुः । तेष्वरत्येकी गौतमबुद्धेति नाम्ना विशेषतः प्रख्यातः कपिलवस्तुक्ष श्रियनृपतेः शुद्धोधनस्वात्मजः । तरुणावस्थायां वर्तमानेनानेन संसाराद्विरक्तचित्तेन सर्वप्रथमं तोर्थक महाघोरात्याक्संस्थितस्य तोर्थंकर-पार्श्वनाथस्य शिष्यपरं परावतः पिहितानि साधुक्षयीकृता । जैन शास्त्रोक्तमुन्याचार विध्यनुसारेण तेन सर्वाणि वसनानि परिहाय दिगम्बरावस्था धृता । केशा लुञ्चिताः । पाणी पात्रीकृत्याहारः कृतः । एवंविधो जैनसुन्याचारस्तेन कियतो दिवसाना सेवितः । परन्तु यदा तस्मे जैनसाधुचर्या यत्किञ्चित् श्रनुषंगिक कथन तीर्थंकर महावीर और बुद्ध 1 तीर्थंकर महावीर के समय में और भी धर्म प्रचारक हुए हैं। उनमें एक गौतमबुद्ध भी हैं । ये कपिलवस्तु के क्षत्रिय नरेश शुद्धोदन के पुत्र थे । जब वे तरुणावस्था सम्पन्न हुए तो इनके वित्त में विरक्ति जगी । सर्वप्रथम इन्होंने तीर्थंकर महावीर से पहिले हुए तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शिष्यपरम्परा को अलंकृत करनेवाले पिहितास्रव मुनिराज से साधुदीक्षा धारण की। जैन शास्त्रोक्त मुन्याचार के अनुसार इन्होंने समस्त वस्त्रों का परित्याग कर दिया और ये दिगम्बर अवस्था में रहने लगे । इन्होंने मस्तक के कणों का लुम्बन किया, पाणिपात्र में ग्राहार लिया। इस तरह कितने ही दिनों तक जैनमुनि का ग्राचार इन्होंने पाला परन्तु जब इन्हें जैन १. निये पासणावित्ये सरयूनोरे पलमणयरत्थो । पिहिताse freसो महासुदरो बुकित मुणी 1 दर्शनारे

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