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वर्धमानवम्यूः
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श्री महावीरस्य धर्मप्रचारात्तत्प्रभावाच्चाहिंसायाः प्रभावशाली प्रसारः समजनि । सर्वत्र पशुयज्ञा निरुद्धाः । हिंसाकृत्यात्मांसाशनाच्च जनताया हृदये जुगुप्सा प्रादुर्भूता । तद्वियुद्धं धर्मोपदेशं श्रुत्वा नृशंसा अपि दयाराधा प्रसूखन् । धियायकावारशियास्य यत्रापि मंगलविहारोऽभवत्तत्रत्याः शासकाः मंत्रिणः सेनस्पतयः पुरोहिता विद्वांसस्तथाऽन्येऽपि साधारणजनास्तदनुयायिनो भूत्वा तद्भक्ताः बभूवः । यथा रव्युक्यावन्धकारो विनष्टो जायते तथैव तीर्थकरस्योपदेशावज्ञानं भ्रमोऽधर्मोऽन्यायोऽत्याचारो हिंसादिदुष्कृत्यं चेत्यादीत्याविरूपः पापाचारः शनैः शनैः साधारणजनक्षेत्रात् विनिर्गतोऽभवत् । निरागसे निरपराधाय मूकपशुजगते संरक्षणमित्थं मिलितम्।
श्री महावीर के धर्मप्रनार से और उनके प्रभाव से अहिंसा का प्रभावशाली प्रसार हुआ । सर्वत्र पशुयज्ञ होने से रुक गये । हिंसा जैसे अकृत्य से एवं मांसभक्षण से जनता के हृदय में ग्लानि आ गयी । महावीर के विशुद्ध धर्मोपदेश को सुनकर निर्दयजनों के हृदयों में भी परिवर्तन प्रा गया । उन में भी दया का संचार होने लगा । विश्ववंद्यपदकमलवाले वे महावीर जहां-जहां मंगलमय विहार करते थे, वहां वहां के शासक, मंत्री, सेनापति, पुरोहित, विद्वान् तथा अन्य प्रौर भी साधारण जन उनके अनुयायी होकर उनके भक्त हो जाते थे । जिस प्रकार सूर्य के उदय से अन्धकार विलीन हो जाता है, उसी तरह तीर्थकर महावीर के धर्मोपदेश से प्रज्ञान, भ्रम, अधर्म, अन्याय, अत्याचार और हिंसादि दुष्कृत्यरूप पापाचार धीरे-धीरे साधारण जनक्षेत्र से हटने लग गया। इस प्रकार निष्पापी और निरपराधी मूक पशुजगत् को संरक्षण मिला।