Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ वधमानचम्नः 193 लेण्यानां पंचास्तिकरयानां श्लोकोक्तानां सर्वेषां पदानां नामान्यपि मया कवाचिदपि क्य चिन्न श्रुतानि, नाधिगतानि । यद्यप्यस्मि वेदवेदाङ्गानां विशिष्टविज्ञाताऽहं तथाप्यारीतस्यानधिगतस्वादहं ज्ञाता नास्मि । प्रतः कथमहं श्लोकोक्तानां पदानां परमार्थत्व मेनं बोधयेयम् । कथं वा चनं प्रत्यहमेवं कथयेयं यद तेषामर्थ न वेवमोति इत्यमुक्ती मध्यागच्छत्यनमिक्षता, पाण्डित्ये च होनतायाः कलङ्कातङ्कः । अस्यामवस्थायां सत्यां मेऽयमुपहासजनक: पराभव एव भवेत् । ततस्तावदिदमेव मे श्रेयस्करं यवस्य गुरोः सविधं मत्वा तेन सहैव वादविवाद विधाय स्वमर्यादायाः संरक्षणं कुर्याम् । विमश्य थामन्द्र भूतिगौतम तम विप्र स्थविरमेवमुवाचागच्छमयामा स्वगुरोरम्पर्णम्, तेनैव सत्राहं वाता विधास्यामि । कपटपदः स विप्रवेषधारीन्द्रस्तु तादिदमेवाभिलषति स्म। प्रतः स स्वमनोरथसिद्धिसाधिकायाः सफलताया उपरि चेतसि बह मुमुवे । झापति स गौतम स्वेनच साकं समवशरणमनयत् । समवशरणनिकट गतेन तेन यदेव छह लेश्याएं सुनी हैं, न पांच अस्तिकाय सुने हैं, और न ये सब कभी मेरे जानने में ही आये हैं । यद्यपि मैं वेदवेदाङ्गों का विशिष्ट ज्ञाता हूं तब भी पाहत् दर्शन का पाठी न होने के कारण मैं उसे जानता नहीं हं अतः मैं उन पलोकोक्त पदों का वास्तविक रहस्य इसे कैसे समझाऊं और कैसे इससे यह कहूं कि मैं इन पदों का अर्थ जानता नहीं हूं क्योंकि ऐसा कहने से मुझ में प्रमभिज्ञता प्राप्ती है तथा मेरे पाण्डित्य में हीनता का कलङ्क लगता है। ऐसी स्थिति में मेरा यह एक प्रकार का उपहासजनक पराभव ही होगा। मेरी भलाई इसी में है कि इसके गुरु के निकट जाकर मैं उससे वादविवाद कर अपनी मर्यादा का संरक्षण करूं । इस प्रकार विचार कर इन्द्रभूति गौतम ने उस विप्रवेशधारी बद्ध ब्राह्मण से कहा कि तुम मेरे साथ अपने गुरु के पास चलो, मैं उन्हीं से इस सम्बन्ध में बात करूंगा। वह विप्रदेशधारी कपटपट इन्द्र तो यह चाहता ही था अत: वह अपने मनोरथ की सिद्धि की साधक भूत सफलता पर बहुत खुश हुमा । वह अतिशीघ्र गौतम को अपने साथ समवशरण में ले गया। जब गौतम समवशरण के निकट पहुंचा और जैसे ही मानभंजक मानस्तम्भ के उसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241