Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ के लिए शास्त्रोक्तविधि से अच्छे अवसर पर उत्तम क्षेत्रों में इन बीजों का वपनं करेंगे । अस्तु ! यहाँ मैं इस बात को भी कहे बिना नहीं रह सकता कि जिन ग्रन्थों, लेखों, समाचार पत्रों एवं व्यक्तियों से इस सन्थ के संकलन में सहयोग मिला है-वे सभी सहायक रूप से मेरे लिए चिरस्मरणीय रहेंगे। यह ग्रंथ कई भागों में विभक्त है एवं उनमें सैकड़ों विषयों का संकलन है । उक्त संग्रह बालोतरा मर्यादा-महोत्सव के समय मैंने आचार्य श्रीतुलसी को भेंट विया । उन्होंने देखकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की हर पारायः कि इस छोट-छोटी कहानि एवं घटनाएँ भी लगा देनी चाहिये ताकि विशेष उपयोगी बन जाए । आचार्य श्री का आदेश स्वीकार करके इसे संक्षिप्त कहानियाँ तथा घटनाओं से सम्पन्न किया गया। मुनिश्री चन्दनमलजी, डूगरमलजी, नथमलजी, नगराज जी, मधुकरजी, राकेशजी, रूपचन्दजी आदि अनेकः साधु एवं साध्वियों ने भी इस ग्रन्थ को विशेष उपयोगी माना। बीदासरमहोत्सव पर कई संतों का यह अनुरोध रहा कि इस संग्रह को अवश्य धरा दिया जाए। सर्व प्रथम वि० सं० २०२३ में श्री गरगढ़ के श्रावकों ने इसे धारणा शुरू किया । फिर थली, हरियाणा एवं पंजाब के अनेक ग्रामों-नगरों के उत्साही युवकों ने तीन वर्षों के अथकपरिश्रम से धारकर इसे प्रकाशन के योग्य बनाया । __ मुझे दृढविश्वास है कि पाठकगण इसके अध्ययन, चिन्तन एवं मनन से अपने बुद्धि-वैभव को क्रमशः बढ़ाते जायेंगेवि० सं० २०२७ मृगसर बदी ४ मंगलवार, रामामंडी, (पंजाब) -धनमुनि 'प्रथम'

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