Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ ( १३ ) एक बार संगृहीत- सामग्री के विषय में यह सुझाव आया कि यदि प्राचीन संग्रह को व्यवस्थित करके एक ग्रन्थ का रूप ये दिया जाए, तो यह उत्कृष्ट उपयोगी चीज बन जाए। मैंने इस सुझाव को स्वीकार किया और अपने प्राचीन संग्रह को व्यवस्थित करने में जुट गया। लेकिन पुराने संग्रह में कौन-सी सूक्ति, श्लोक या हेतु किस ग्रन्थ या शास्त्र के है अथवा किस कवि, वक्ता या लेखक के हैं - यह प्रायः लिखा हुआ नहीं था । मतः ग्रन्थों या शास्त्रों आदि को साक्षियां प्राप्त करने के लिए इन आठ-नौ वर्षों में वेद, उपनिषद्, इतिहास, स्मृति, पुराण, कुरान, बाइबिल, जैनशास्त्र, बौद्धशास्त्र, नीतिशास्त्र, विद्यकशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, शकुनशास्त्र, दर्शनशास्त्र, संगीतशास्त्र तथा अनेक हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, राजस्थानी, गुजराती मराठी एवं पंजाबी सूक्तिसंग्रहों का ध्यानपूर्वक यथासम्भव अध्ययन किया। उससे काफी नया संग्रह बना और प्राचीन संग्रह को साक्षी सम्पन्न बनाने में सहायता मिली। फिर भी खेद है कि अनेक सूक्तियाँ एवं श्लोक आदि बिना साक्षी के ही रह ए प्रयत्न करने पर भी उनकी साक्षियां नहीं मिल सकीं । मिन-जिन की साक्षियां मिली हैं, उन-उनके आगे वे लगा दी हुई हैं। जिनकी साक्षियां उपलब्ध नहीं हो सकीं, उनके आगे आन रिक्त छोड़ दिया गया है। कई जगह प्राचीन संग्रह के आधार पर केवल महाभारत वाल्मीकि रामायण, योग-शास्त्र दि महान् ग्रन्थों के नाममात्र लगाए हैं: अस्तु ! 5 त या FRE - इस ग्रंथ के संकलन में किसी भी मत या सम्प्रदाय विशेष खण्डन- मण्डन करने की दृष्टि नहीं है, केवल यही दिखलाने प्रयत्न किया गया है कि कौन क्या कहता है या क्या मानता यद्यपि विश्व के विभिन्न देशनिवासी मनीषियों के मतों सिंकलन होने से ग्रन्थ में भाषा की एकरूपता नहीं रह

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