________________ 27 वह अनंग हो गया। इस घटना से प्रस्तुत क्षेत्र का नाम अंग हुआ / जातकों से यह भी परिज्ञात होता है कि तथागत बुद्ध से पूर्व राज्यसत्ता के लिए मगध और अंग में परस्पर संघर्ष होता था। बुद्ध के समय अंग मगध का ही एक विभाग था / राजा श्रेणिक अंग और मगध इन दोनों का अधिपति था / त्रिपिटकसाहित्य में अंग और मगध को साथ में रखकर 'अंग-मगधा' द्वन्द्व समास के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 'चम्पेय जातक' के अनुसार चम्पा नदी अंग और मगध इन दोनों का विभाजन करती थी, जिसके पूर्व और पश्चिम में दोनों जनपद बसे हुए थे / अंग जनपद की पूर्वी सीमा राजप्रसादों की पहाड़ियाँ, उत्तरी सीमा कोसी नदी, दक्षिण में उसका समुद्र तक विस्तार था / पार्जिटर ने पूर्णिया जिले के पश्चिमी भाग को अंग जनपद के अन्तर्गत माना है। महाभारत के अनुसार अंग नामक राजा के नाम पर जनपद का नाम अंग पड़ा। कनिंघम ने लिखा है-'भागलपुर से ठीक चौबीस मील पर पत्थर घाट है। इसके आस-पास चम्पा की अवस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक बड़ा गाँव है, जिसे चम्पानगर कहते हैं और एक छोटा सा गाँव है, जिसे चम्पापुर कहते हैं, सम्भव है, ये दोनों गाँव प्राचीन राजधानी 'चम्पा' की सही स्थिति को प्रकट करते हों।" ___ फाहियान ने चम्पा को पाटलीपुत्र से अठारह योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिणी तट पर अवस्थित माना है। महाभारत की दृष्टि से चम्पा का प्राचीन नाम 'मालिनी' था / महाराज चम्प ने इसका नाम चम्पा रखा / चम्पा के 'चम्पावती', 'चम्पापुरी', 'चम्पानगर' और 'चम्पामालिनी' आदि नाम प्राप्त होते हैं। दीघनिकाय के अनुसार इस महानगरी का निर्माण महागोन्विन्द ने किया था। चम्पक वृक्षों का बाहुल्य होने के कारण इस नगरी का नाम चम्पा पड़ा हो ! दीघनिकाय के अनुसार चम्पा एक विशालनगरी थी। जातकों में आये हुए वर्णन से यह स्पष्ट है कि चम्पा के चारों ओर एक सुन्दर खाई थी और बहुत सुदृढ प्राचीर था। पालि ग्रन्थों के अनुसार चम्पा में "गग्गरापोख्रणी" नामक एक कासार था, जिसका निर्माण गाग्गरा नामक महारानी ने करवाया था। प्रस्तुत कासार के तट पर चम्पक वृक्षों का एक बहुत ही सुन्दर गुल्म था, जिसके कारण सन्निकट का प्रदेश अत्यन्त सौरभयुक्त था / तथागत बुद्ध जब भी चम्पा में आते थे, वे गग्गरापोखरणी के तट पर ही रुकते थे। इस महानगरी की रमणीयता के कारण ही आनन्द ने गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपयुक्त नगरों में इस नगरी की परिकल्पना की थी। तथागत बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित होने के कारण बौद्धयात्री 1. जातक, पालिटैक्स्ट-सोसायटी, जिल्द-४, पृ. 454, जिल्द पूवीं पृ. 316. जिल्द छठी पृ. 271. 2. (क) दीघनिकाय३५. (ख) मज्झिमनिकाय-२।३७ (ग) थेरीगाथा-बम्बई विश्वविद्यालय संस्करण, गाथा 110 3. जर्नल ऑव एशियाटिक सोसायटी ओव बंगाल, सन् 1897 पृ. 95 4. दी एन्शियण्ट ज्योग्राफी आफ इण्डिया, पृ. 546-547. 5. ट्रैवेल्स ऑफ फाहियान, पृ. 65. 6. ला. बी. सी., इण्डोलोजिकल स्टडीज, पृ. 49. 7. "दन्तपुरं कलिङ्गानमस्सकानाञ्च पोतनम् / माहिस्सती अवन्तीनम् सोवीराञ्च रोरुकम् / मिथला च विदेहानम् चम्पा अङ्गेसु मापिता / वाराणसी च कासीनम् एते गोविन्दमापितेती // -दीधनिकाय, 19, 36 !. 8. दीघनिकाय-२-१४६. 9. जातक-४।४५४. 10. मललसेकर-२१७२४.