________________ 44 आजीवक मत का संस्थापक गोशालक था। भगवती सूत्र के अनुसार वह भ. महावीर के साथ दीर्घकाल तक रहा था / वह आठ महानिमित्तों का ज्ञाता था और उसके श्रमण उग्र तपस्वी थे। अन्य श्रमण 69. अत्तुक्कोसिय-आत्म-प्रशंसा करनेवाले / 70. परिवाइय-पर-निन्दा करनेवाले / भगवती में अवर्णवादी को किल्विषक कहा है / 71. भूइकम्मिय-ज्वरग्रस्त लोगों को भूति [राख] देकर नीरोग करनेवाले / 72. भुज्जो भुज्जो कोउयकारक-बार-बार सौभाग्य वृद्धि के लिए कौतुक, स्नानादि करनेवाले / सात निह्नव विचार का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना है विचारभेद का इतिहास / विचार व्यक्ति की उपज है। वह संघ में रूढ होने के बाद संघीय कहलाता है। सुदीर्घकालीन परम्परा में विचार-भेद होना असम्भव नहीं है। जैन परम्परा में भी विचार-भेद हुए हैं। जो जैन धर्मसंघ से सर्वथा पृथक् हो गए, उन श्रमणों का यहाँ उल्लेख नहीं है। यहाँ केवल उनका उल्लेख है, जिनका किसी विषय में मत-भेद हुआ, जो भगवान् महावीर के शासन से पृथक् हुए, पर जिन्होंने अन्य धर्म को स्वीकार नहीं किया / इसलिए वे जैनशासन के एक विषय के अपलाप करनेवाले निह्नव कहलाये / वे सात हैं। उनमें से दो भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के बाद हुए और शेष पांच निर्वाण के पश्चात् हुए / इनका अस्तित्व-काल श्रमण भगवान् महावीर के कैवल्य प्राप्ति के चौदह वर्ष से निर्वाण के पश्चात् पांच सो चौरासी वर्ष तक का है। 1. बहुरत-भगवान् महावीर के कैवल्य प्राप्ति के चौहद वर्ष पश्चात् श्रावस्ती में बहुरतवाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्ररूपक जमाली थे / बहुरतवादी कार्य की निष्पत्ति में दीर्घकाल की अपेक्षा मानते हैं / वह क्रियमाण को कृत नहीं मानते, अपितु वस्तु के पूर्ण निष्पन्न होने पर ही उसका अस्तित्व स्वीकार करते हैं। 2. जीवप्रादेशिक-भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के सोलह वर्ष पश्चात् ऋषभपुर में जीवप्रादेशिकवाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्तक तिष्यगुप्त थे / जीव के असंख्य प्रदेश हैं, परन्तु जीवप्रादेशिक मतानुसारी जीव के चरम प्रदेश को ही जीव मानते हैं, शेष प्रदेशों को नहीं / 1. भगवती सूत्र, शतक 15 वा. 2. पंचकल्प चूर्णि 3. (क) स्थानांग-४।३०९ (ख) हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रीन्स आफ द आजीविकाज -ए. एल. वाशम 4. भगवती सूत्र, 1 / 2. 5. णाणुप्पत्तीय दुदे, उप्पण्णा णिव्वुए सेसा / -आवश्यकनियुक्ति, गाथा-७८४ 6. चोद्दस सोलह सवासा, चोद्दस वीसुत्तरा य दोण्णिसया / अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया उ चोयाला / / पंचलया चुलसीया................ __-आवश्यकनियुक्ति, गाथा-७८३-७८४ 7. चउदस वासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स / तो बहुरयाण दिट्ठी सावत्थीए समुप्पन्ना ॥-आवश्यक भाष्य, गाथा-१२५ 8. ऋषभपुरं राजगृहस्याद्याह्वा / -आवश्यकनियुक्ति दीपिका, पत्र-१४३ 9. सोलसवासाणि तया जिणेण उप्पाडियस्स नाणस्स / जीवपएसिअदिट्ठी उसभपुरम्मि समुप्पन्ना ॥-आवश्यकभाष्य गाथा, 127.