Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 351
________________ परिशिष्ट-२ [* विश्वभारती (सानु) द्वा२प्रशित ' सुत्ता''संपा६४ीय'माथी मौ५पाति સૂત્ર' જોવાનો નિર્દેશ ભગવતીસૂત્ર વગેરેમાં કરવામાં આવ્યો છે તે અહીં સાભાર રજૂ કરીએ છીએ.] भगवती सूत्र 7/175 एवं जहा ओववाइए जाव 7176 एवं जहा उववाइए (दो बार) 7/196 जहा कूणिओ जाव पायच्छित्ते 9 / 157 "जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे।" "एवं जहा ओववाइए जाव तिविहाए"। 9 / 158 "जहा ओववाइए जाव सत्थवाह"। "जहा ओववाइए जाव खत्तियकुंडग्गामे"। . 9 / 162 ओववाइए परिसा वण्णओ तहा भाणियव्वं / 9 / 204 "जहा ओववाइए जाव गगणतलमणुलिहंती" / "एवं जहा ओववाइए तहेव भाणियव्वं"। 9/204 जहा ओववाइए जाव महापुरिस 9 / 208 जहा ओववाइए जाव अभिनंदता 9 / 209 एवं जहा ओववाइए कूणिओ जाव निग्गच्छइ 11 / 59 . जहा ओववाइए जहा ओववाइए कूणियस्स जहा ओववाइए जाव गहणयाए 11 / 88, 198 एवं जहेव ओववाइए तहेव 11 / 138 जहा ओववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे 11 / 154 एवं जहा दढपइण्णस्स 111156 एवं जहा दढपइण्णे 11 / 159 जहा ओववाइए 11 / 169 जहा अम्मडो जाव बंभलोए / 11 / 61 11 / 85 1. આમાં સૂત્રના ક્રમાંક જૈન વિશ્વભારતી પ્રકાશિત અંગસુત્તાણિ મુજબના છે. ટીકાના પત્ર ક્રમાંકો આગમોદય સમિતિ વગેરે સંસ્કરણના છે.

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