Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 269
________________ 195 सूत्र -171-175 ] केवलिसमुद्धातवर्णनादिः ' [173] 'आवज्जीकरणे'त्ति आवर्जीकरणम्-उदीरणावलिकायां कर्मप्रक्षेपव्यापाररूपं, तच्च केवलिसमुद्घातं प्रतिपद्यमानः प्रथममेव करोति // 173 // 174 - कतिसमइए णं भंते! केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते ? गोयमा! अट्ठसमइए केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते तं जहा-पढमे समए दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोगं पूरेइ, पंचमे समए लोगं पडिसाहरइ, छठे समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता तओ पच्छा सरीरत्थे भवति // 174 // _ [174] पढमसमए दंडं करेइ'त्ति प्रथमसमय एव स्वदेहविष्कम्भमूर्ध्वमधश्चायतमुभयतोऽपि लोकान्तगामिनं जीवप्रदेशसङ्घातं दण्डस्थानीयं केवली ज्ञानाभोगतः करोति, 'बिइए कवाडं करेइ'त्ति द्वितीयसमये तु तमेव दण्डं पूर्वाऽपरदिग्द्वयप्रसारणात्पार्श्वतो लोकान्तगामिकपाटमिव कपाटं करोति, 'मंथंति तृतीये समये तदेव कपाटं दक्षिणोत्तरदिग्द्वयप्रसारणान्मथिसदृशं मन्थानं करोति लोकान्तापिणमेव, 'लोगं पूरेइ'त्ति चतुर्थसमये सह लोकनिष्कुटैर्मन्थान्तराणि पूरयति, ततश्च सकलो लोकः पूरितो भवति, 'लोयं पडिसाहरइ'त्ति पञ्चमे समये मन्थान्तरालपूरकत्वेन ये लोकपूरकाः प्रदेशास्ते लोकशब्देन उच्यन्ते, अतो मन्थान्तरालपूरकान् प्रदेशान् संहरति मथिस्थो भवतीतियावत्, 'मंथं पडिसाहरइ'त्ति मथ्याकारव्यवस्थापितप्रदेशान् संहृत्य कपाटस्थो भवतीतियावत्, ‘कवाडं पडिसाहरइ'त्ति सप्तमसमये कपाटाकारधारकप्रदेशसंहरणाद्दण्डस्थो भवतीत्यर्थः, 'अट्टमे समए दंडं पडिसाहरइ, साहरित्ता सरीरत्थे भवइ 'त्ति, इह यद्यपि संहत्येत्यनेन संहरणस्य पूर्वकालता शरीरस्थभवनस्य च पश्चात्कालता शब्दवृत्त्या प्रतीयते, तथाऽप्यर्थवृत्त्या न कालभेदोऽस्ति, द्वयोरप्यष्टमसमयभावित्वेनोक्तत्वादिति // 174 / / 175 - से णं भंते ! तहा समुग्घातगते किं मणजोगं जुंजइ ? वइजोगं जुंजइ ? कायजोगं जुंजइ ? गोयमा! णो मणजोगं जुंजइ, नो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ // 175 // [175] 'नो मणजोगं नो वइजोगं जुंजइ'त्ति प्रयोजनाभावात्, काययोगचिन्तायां सप्तविध: काययोगः // 175 // १.०प्रापणमेव - खं. / / 2. मणजोग्गं - खं. / /

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