________________ 46 भाग से ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी तल का अन्तर, इर्षत् प्राग्भारा पृथ्वी का आयाम, विष्कंभ, परिधि, मध्यभाग की मोटाई, उसके 12 नाम, उसका वर्ण, संस्थान, पौद्गलिक रचना, स्पर्श और उसकी अनुपम सुन्दरता का वर्णन किया गया है / ईषत् प्राग्भारा के उपरि तल से लोकान्त का अन्तर और कोश के छठे भाग में सिद्धों की अवस्थिति आदि बताई गई है। अन्त में बाईस गाथाओं के द्वारा सिद्धों का वर्णन है / ये गाथायें सिद्धों के वर्णन को समझने में अत्यन्त उपयोगी हैं। इसमें भील-पुत्र के उदाहरण से सिद्धों के सुख को स्पष्ट किया गया है। यह उदाहरण. बहुत ही हृदयस्पर्शी है। इस प्रकार यह आगम अपने आप में महत्त्वपूर्ण सामग्री लिये हुए है। नगर, चैत्य, राजा और रानियों का सांगोपांग वर्णन अन्य आगमों के लिए आधार रूप रहा है / चम्पा नगरी का आलंकारिक वर्णन प्राकृत-साहित्य के लिए स्रोत्र रूप में रहा है। ऐसा सूक्ष्म और पूर्ण वर्णन संस्कृत-साहित्य में भी कम देखने को मिलता है। संस्कृति और समाज की दृष्टि से तथा तत्काल में प्रचलित विभिन्न आत्मसाधनापद्धतियों को समझने की दृष्टि से भी इस आगम का महत्त्व है। इसमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना हुई है। भाषा की दृष्टि से प्रस्तुत आगम उपमा-बहुल, समास-बहुल और विशेषण-बहुल है / इसमें पहले प्रकरण की भाषा कठिन है तो दूसरे प्रकरण की भाषा बहुत ही सरल है। आगम के अन्त में तो बहुत ही सरल भाषा है। प्रस्तुत आगम में आये हुए शब्दों के प्रयोग कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी प्रायः ज्यों के त्यों मिलते हैं / उदाहरण के रूप में प्रस्तुत आगम में घूसखोर के लिए प्रयुक्त "उक्कोडिय" जिसका संस्कृत रूप "उत्कोचक" है। कौटिल्य-अर्थशास्त्र में भी इसी अर्थ में आया है। औपपातिक में कूणिक राजा के प्रसंग में बताया गया है कि वह महेन्द्र और मलय पर्वत की तरह उन्नत कुल में समुत्पन्न हुआ था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में मलय और महेन्द्र पर्वत का वर्णन है / महेन्द्र पर्वत के मोती और मलय पर्वत के चन्दन-वृक्ष बहुत ही श्रेष्ठ होते हैं।' __ औपपातिक में 'अर्गला' का नाम 'इन्द्रकील' आया है। तो कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी अर्गला के अर्थ में इन्द्रकील शब्द प्रयुक्त है। __इस तरह प्रस्तुत आगम में आये हुए अनेक शब्दों की तुलना कौटिल्य-अर्थशास्त्र से की जा सकती है। इससे यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत आगम की रचना उससे बहुत पहले हुई / जहाँ तक भाषा का प्रश्न है, प्रारम्भ की भाषा कठिन व समासयुक्त है तो बाद की भाषा सरल है। किन्तु विषय के अनुरूप भाषा कठिन और सरल होती है, इसलिए इसे दोनों अध्यायों को अलग-अलग समय की रचना मानना उपयुक्त नहीं है। हमारे अपने अभिमतानुसार यह सम्पूर्ण आगम एक ही समय की रचना है। 1. कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 4, अध्याय 4 / 10. 2. औपपातिक। 3. कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 2, अध्याय 11 / 2 4. औपपातिक 5. कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधिकरण 2, अध्याय 3 / 26.