________________ 30 उदाईभद्द दोनों को अच्छे चरित्र का बतलाते हैं। क्योंकि दोनों जैनधर्म को माननेवाले थे / यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थों में उनके चरित्र पर कालिख पोती गई हैं। अजातशत्रु बुद्ध का अनुयायी नहीं था, इसके भी अनेक कारण हैं१. अजातशत्रु की देवदत्त के साथ मित्रता थी, जबकि देवदत्त बुद्ध का विरोधी शिष्य था। 2. अजातशत्रु की वज्जियों के साथ शत्रुता थी, वज्जी लोग बुद्ध के परमभक्तों में थे। 3. अजातशत्रु ने प्रसेनजित् के साथ युद्ध किया, जबकि प्रसेनजित बुद्ध का परमभक्त और अनुयायी था। तथागत बुद्ध की अजातशत्रु के प्रति सद्भावना नहीं थी। उन्होंने अजातशत्रु के सम्बन्ध में अपने भिक्षुओं को कहा-इस राजा का संस्कार अच्छा नहीं है। यह राजा अभागा है। यदि यह राजा अपने धर्म राज-पिता की हत्या न करता तो आज इसी आसन पर बैठे-बैठे इसे नीरज-निर्मल धर्म-चक्षु उत्पन्न हो जाता / देवदत्त के प्रसंग को लेकर बद्धने कहा-भिक्षओ ! मगधराज अजातशत्र जो भी पापी हैं. उनके मित्र हैं। उनसे प्रेम करते हैं और उनसे संसर्ग रखते हैं। जातकअट्ठकथा के अनुसार तथागत बुद्ध एकबार बिम्बिसार को धर्मोपदेश कर रहे थे / बालक अजातशत्रु को बिम्बिसार ने गोद में बिठा रखा था और वह क्रीडा कर रहा था / बिम्बिसार का ध्यान तथागत बुद्ध के उपदेश में न लगकर अजातशत्रु की ओर लगा हुआ था, इसलिए बुद्ध ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए एक कथा कही, जिसका रहस्य था कि तुम इसके मोह में मुग्ध हो पर यही अजातशत्रु बालक तुम्हारा घातक होगा। ___ अवदानशतक के अनुसार बिम्बिसार ने बुद्ध की वर्तमान अवस्था में ही बुद्ध के नख और केशों पर एक स्तूप अपने राजमहल में बनवाया था। राजरानियाँ धूप-दीप और पुष्पों से उसकी अर्चना करती थीं। जब अजातशत्रु राजसिंहासन पर आसीन हुआ, उसने सारी अर्चना बन्द करबा दी। श्रीमती नामक एक महिलाने उसकी आज्ञा की अवहेलना कर पूजा की, जिस कारण उसे मृत्युदण्ड दिया गया। ___ बौद्धसाहित्य के जानेमाने विद्वान् राइस डेविड्स लिखते हैं--वार्तालाप के अन्त में अजातशत्रु ने बुद्ध को स्पष्टरूप से अपना मार्गदर्शक स्वीकार किया और पित-हत्या का पश्चात्ताप भी व्यक्त किया। पर यह असंदिग्ध है कि उसने धर्म-परिवर्तन नहीं किया। इस सम्बन्ध में एक भी प्रमाण नहीं है। इस हृदयस्पर्शी प्रसंग के बाद वह तथागत बुद्ध की मान्यताओं का अनुसरण करता रहा हो, यह संभव नहीं है / जहाँ तक मैं जान पाया हूँ, उसके पश्चात् उसने बुद्ध के अथवा बौद्ध संघ के अन्य किसी भी भिक्षु के न कभी दर्शन किये और न उनके साथ धर्मचर्यायों की और न उसने बुद्ध के जीवनकाल में भिक्षु-संघ को कभी आर्थिक सहयोग भी किया। इतना तो अवश्य मिलता है कि बुद्ध निर्वाण के बाद उसने बुद्ध की अस्थियों की मांग की पर वह भी यह कह कर कि मैं भी बुद्ध की तरह क्षत्रिय हूँ। और उन अस्थियों पर बाद में एक स्तूप 1. हिन्दू सभ्यता, पृ. 264. 2. दीघनिकाय सामञफलसुत्त, पृ. 32. 3. विनयपिटक, चुल्लवग्ग संगभेदक खंधक-७. 4. जातकअट्ठकथा, थुस जातक समं. 338. 5. अवदानशतक, 54.