Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Jivraj Ghelabhai Doshi
Publisher: Jivraj Ghelabhai Doshi
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१३०
उत्तरायणं. २९. य निर्धारणयाए तं नियत्तेश, तो पडा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ ॥ ३२॥
३३ संजोगपञ्चक्खाणेणं जन्ते जीवे किं जणय? सं° आलम्बणाई खवेइ, निरालम्बणस्स य आयतट्ठिया योगा जवन्ति, सएणं लानेणं संतुस्सइ, परलानं नो आसादेइ, परलानं नो तकेइ, नो पीहेइ, नो पत्थेश, नो अभिलसइ, परलानं अणस्सायमाणे अतकेमाणे अपीहमाणे अपत्थेमाणे अणजिलसमाणे उच्चं सुदसेज उवसंपत्तिा णं विहरइ ॥ ३३ ॥
३४ उवहिपच्चक्खाणेणं जन्ते जीवे किंजणय?
अपलिमन्थं जणय, निरुवहिए णं जीवे निकड़ी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ॥ ३४ ॥
३५ आहारपञ्चक्खाणेणं जन्ते जीवे किं जणय? आ° जीवियासंसप्पयोगं वोबिन्दर, जीवियासंसप्पयोगं वोलिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सः ॥ ३५॥
३६ कसायपच्चक्खाणेणं जन्ते जीवे किं जणयइ ? क° वीयरागनावं जणयक्ष, वीतरागभावपमिवन्ने वि य णं जीवे समसुहक्खे भव ॥ ३६ ॥
३७ जोगपञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणय ? जो अजोगत्तं जणयर, अजोगी णं जीवे नवं कम्म न बन्धक्ष, पुवबद्धं निहुरेश ॥३७॥
३८ सरीरपञ्चक्खाणेणं जन्ते जीवे किं जणयइ ? ससिद्धाइसयगुणकित्तणं निवत्तेश, सिद्धाश्यगुण.

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