Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Jivraj Ghelabhai Doshi
Publisher: Jivraj Ghelabhai Doshi

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Page 175
________________ उत्तरायणं. ३४. एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे ॥ २४ ॥ वके वङ्कसमायारे नियमिद्धे अणुअए। पलिउंचगोवहिए मिडदिट्ठी अणारिए ॥२५॥ उप्फासगदुट्ठवाई य तेण यावि य महरी । एयजोगसमाउत्तो काऊलेसं तु परिणमे ॥ २६ ॥ नीयावत्ती अचवले अमाई अकुतूहले । विणीयविणए दन्ते जोगवं उवहाणवं ॥२७॥ पियधम्मे दढधम्मे वजभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो तेयोलेसं तु परिणमे ॥२८॥ पयणुकोहमाणे य मायालोले य पयणुए । परन्तचित्ते दन्तप्पा जोगवं उवहाणवं ॥२९ ॥ तहा पयणुवाई य उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ॥३०॥ अहरुदाणि वजित्ता धम्मसुकाणि कायए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ ३१॥ सरागे वीयरागे वा उवसन्ते जिशन्दिए । एयजोगसमाउत्तो सुकलेसं तु परिणमे ॥३२॥ असंखिजाणोसप्पिणीण उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा लेसाण हवन्ति ठाणाइं ॥ ३३ ॥ मुद्दत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीला सागरा मुत्तहिया। उकोला होइ ठिई नायव्वा किण्हलेसाए ॥ ३४ ॥ मुहुलदं तु जहन्ना दस उदही, पलियमसंखजागम नहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेसाए ॥३५॥

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