Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Jivraj Ghelabhai Doshi
Publisher: Jivraj Ghelabhai Doshi

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Page 192
________________ जीवाजीवविपत्ती. 3 ॥ १२८ ॥ अन्तकालमुको अन्तोमुहुत्तं जहन्नगं । विजढंमि सए काएं वाऊजीवाण अन्तरं ॥ १२५ ॥ एएसिं वसओ चैव गन्धयो रसफासयो । संदेसओ वावि विहाणाहं सहस्ससो ॥ १२६ ॥ खोराला तसा जे उ चउहा ते पकित्तिया । बेइन्दिय - तेइन्दिय - चउरो - पञ्चिन्दिया चेव ॥ १२७ ॥ बेइन्दिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पद्मत्तमपद्धत्ता एवमेए' हा पुणो किमिणो सामङ्गला चेव अलसा माश्वाहया । वासीमुहाय सिप्पीया' सङ्घा सङ्घणगा तहा ॥ १२९ ॥ घल्लोयापुल्लया चैव तहेव य वरागा । जलूगा जालगा चेव चन्दणा य तहेव य ॥ १३० ॥ st बेइन्दिया एए ऐगहा एवमायओ । लोगे गदेसे ते सधे न सवत्य वियाहिया ॥ १३१ ॥ संत पप्प नाईया अपवसिया विय । ठि पडुच्च साईया सपतवसिया विय ॥ १३२ ॥ वासाई बारसा' चेव उक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दियाउठिई अन्तोमुहुत्तंजहन्निया ॥ १३३ ॥ संखितकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नगं । बेइन्दियकाठि तं कार्यं तु अमुञ्चओ ॥ १३४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नगं । बेइन्दियजीवाणं अन्तरं च वियाहियं ॥ १३५ ॥ १ Ch. ( चा० ) उराला. २ Ch. ( चा. ) तेसि भेए, ३ Ch. (चा.) सुहमे ४ Ch. (चा.) सोमंगला. ५ Ch. (चा. ) सिप्पिया, ६ . ( आ. ) बारसेवड. १८५

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