Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
View full book text ________________
उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २९) अ. काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुयय अविसवायण जणयइ, अविसवायणसंपन्नयाए ण जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ४८ ॥ मद्दवयाए ण भते जीवे कि जणयइ ? म. अणुस्सियत्त जणयइ, अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ भयट्ठाणाई निट्ठावेइ ॥ ४९ ॥ भावसच्चेण भते जीवे कि जणयइ ? भा० भावविसोहिं जणयइ, भावविसाहिए वट्टमाणे जीवे
अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुटेइ, अरहंतपन्नत्तस्स 'धम्मस्स आराहणयाए अब्भुद्वित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ ॥ ५० ॥ करणसच्चेण भते जीवे कि जणयह १ क० करणसत्ति जणयइ, करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहा कारी यावि भवइ ॥ ५१ ॥ जोगसच्चेणं भते जीवे कि जणयइ ? जो० जोग विसाहेइ ॥ ५२ ॥ मणगुत्तयाए ण भंते जीवे कि जणयइ ? म० जोवे एगग्ग जणयइ, एगग्गचित्ते ण जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ॥ ५३ ॥ वयगुत्तयाए ण भंते जीवे किं जणयइ ? व० निम्वियारत्त जणयइ, निव्वियारे ण जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि विहरइ ॥ ५४ ॥
Loading... Page Navigation 1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200