Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
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तेत्तीस सागरावमा, उक्कोसेण वियाहिया ।
ठिई उ आउकम्मस्स, अतोमुहुत्तं जहन्निया ।। २२ ।। उदही सरिसनामाण, वीसई कोडिकाडीओ । नामगेोत्ताणं उक्कोसा, अठ्ठ मुहुत्ता जहन्निया || २३ || सिद्धाणणतभागो य, अणुभागा हवंति उ ।
सव्वेसु वि पएसम्म सव्वजीवे अइज्झियं ॥ २४ ॥ तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभांगा वियाणिया । एएसि संवरे चैव खबणे य जए बुह || २५ ।। त्ति बेमि ॥ इति कम्मप्पयडी णाम तेत्तीसइम अज्झयण समन्तं ॥ ३३ ॥
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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३४)
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|| अह लेसझयणं णाम चोत्तीसइम अज्झयण ||
लेसझयण पवक्खामि, आणुपुवि जहक्कम । छह पि कम्मलेसाण, अणुभावे सुणेह मे ।। १ ।। नामाइ वण्ण-रस-गंध-फास-परिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउ, लेसा तु सुणेह मे ॥ २ ॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाई तु जहक्कम ॥ ३ ॥ जीमूयनिद्धसंकासा, गवल रिट्ठगसन्निभा ।
'जनयणमिमा, किन्हलेसा उ वण्णओ ॥ ४ ॥
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