Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
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उत्तराध्ययनसूत्रम् ( अध्ययन ३५ )
अंतमुहुत्तम्मि गए, अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव । साहि परिणयाहिं, जीवा गच्छंति परलोयं ॥ ६० ॥ तम्हा एयासि लेसाणं, आणुभावे वियाणिया । अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओ ऽहिट्टिए मुणि ।। ६१ ।। त्ति बेमि ॥ इति लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अन्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥
|| अह अणगारज्झयणं णाम पंचतोसइमं अज्झयणं ॥
- सुह मे एगग्गमणा, मगं बुद्धेहि देसियं । जमायरंतो भिक्खु, दुक्खाणंतकरे भवे ॥ १॥ गिहवासं परिचज्ज, पवज्जामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्जा, जेहिं सज्जति माणवा ।। २ ।। तदेव हिंसं अलियं, चोज्जं अब्भसेवणं ।
इच्छा काम च लोभ च, संजओ परिवज्जए || ३ || मणोहरं चित्तहर, मल्लधूवेण वासिय ।
· सकवाड' पंडुरूल्लोव, मणसा वि न पत्थए ॥ ४ ॥ इंदियाणि उ भिक्खुम्स, तारिसम्म उस्सए दुक्कराई निवारेउ, कामरागविणे ॥ ५ ॥ सुमाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ 'पइरिक्के परकडे वा, वास तत्थाभिराय || ६ ||
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