Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

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Page 185
________________ १७० उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३६) एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससा ।। १२६ ।। ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइ दिय- तेइ दिय - चउरेरा-पंचिंदिया चेव ।। २७ ।। बेइ दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जता, तेसिं भेए सुणेह मे ।। २८ ।। किमिणो सामंगला चेव, अलसा माइवहिया । वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा ।। २९ ।। घल्लोयाणुल्लया चेवं तहेव य वराडगा । , जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य ॥ ३० ॥ इइ बेइ दिया एए ऽणेगहा एवमायओ | लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ।। ३१ ।। संत पप्प नाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।। ३२ ।। वासाई बारसा चैव, उक्केासेण वियाहिया । बेइ दियआउठिई, अतोमुहुत्त जहन्निया ॥ ३३ ॥ संखिज्जकालमुक्कासं, अंतामुहुत्त जहन्नगं । बेइ दियकायटिई, त कार्य तु अमुचभो ॥ ३४ ॥ अनंतकालमुक्कास', अंतामुहुत्त जहन्नगं । बेइ दियजीवाण, अंतर च वियाहियं ॥ ३५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । सठाणदेसओ वावि, विहाणाइ सहस्ससा ।। १३६ ।।

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