Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
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१७४ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३६) एएसि वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणदेसओं वावि, विहाणाइ सहस्ससो ॥ १७० ।। पंचिंदियतिरिक्खाओ, दुविहा ते वियाहिया । समुच्छिमतिरिक्खाओ, गब्भवक्क तिया तहा ।। ७१ ।। दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा ।। खहयरा य बोधब्वा, तेसिं भेए सुणेह मे ।। ७२ ।। मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य बोधव्वा, पंचहा जलयराहिया ।। ७३ ।। लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभाग, चउव्विहा ते बियाहिया ॥ ७४ ।। संतई पप्प नाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पहुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।। ७५ ॥ एगाओ पुवकोडीओ, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई जलयराण', अतोमुहुत्त जहन्निया ।। ७६ ।। पुवकोडिपुहत्त तु, उक्कोसेण वियाहिया । कायट्टिई जलयराण, अंतोमुहुत्त जहन्नग ॥ ७७ ।। अणतकालमुक्कोस, अमुहुत्त जहन्नग । विअढंमि सए काए, जलयराणं अंतरं ॥ ७८ ।। चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा, ते मे कित्तयओ सुण ॥ ७९ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव, गडीपयसणप्पया । हयमाइ-गोणमाइ, गयमाइसोहमाइणी ॥ १८० ॥
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