Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

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Page 191
________________ १७६ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं ३६) ठिई खहयराण, अंतरे तेसिमे भवे । कालं अणंतमुक्कोस, अंतोमुहुत्त जहन्नग ॥ १९२ ।। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। सठाणदेसओं वावि, विहाणाई सहस्सा ॥ ९३ ॥ मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । समुच्छिमा य मणुया, गब्भवक्क तिया तहा ।। ९४ ।। गम्भवतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्मअकम्मभूमा य, अंतरद्दीवया तहा ॥ ९५ ।। पन्नरस तीसविहा, भेया अट्ठवीसई । संखा उ कमसा तेसिं, इइ एसा वियाहिया ।। ९६ ।। समुच्छिमाण एसेव, भेओ हाइ बियाहिओ । लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे वि वियाहिया ।। ९७ ॥ संतई पप्प नाईया, अप्पज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ९८ ।। पलिओवमाउ तिन्नि वि असंखेज्जइमो भवे । आउठिई मणुयाणं, अंतोमुहत्तं जहन्निया ॥ ९९ ।। पलिओवमाई तिणि उ, उक्कासेण उ साहिया । पुचकाडिपुहुत्तण', अतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २०० ।। कायठिई मणुयाण, अंतर तेसिम भवे ।। अणंतकालमुक्कासं, अतोमुहुत्तं जहन्नग ॥ २०१ ।। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससा ।। २०२ ॥

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