Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Path
Author(s): Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publisher: Purushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh

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Page 187
________________ १७२ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं ३६) कुक्कुडे सिंगिरीडी य, नंदावत्ते य विच्छिए । डोले भिंगारी य, विरली अच्छिवेहए ॥ १४८ ॥ अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए । उहिंजलिया जलकारी य, नीया तंतवगाईया ॥ ४९ ॥ इय चरिंदिया एए, ऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सव्वे, सव्वत्थ वियाहिया परिकित्तिआ ॥ ५० ॥ संतई पप्प नाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ ५१ ॥ छच्चेव मासाऊ, उक्कासेण वियाहिया । चरिंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ५२ ॥ संखिज्जकालमुक्कामं, अंतेमुहुत्तं जहन्नग । चउरिदियकाएठिई, तं कायं तु अमुचओ ॥ ५३ ॥ अणंतकालमुक्कासं, अतेोमुहुत्तं जहन्नग । चउरिदिय जीवाणं, अंतरं च वियाहियं ।। ५४ ॥ एएसिं वण्ण) चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ।। ५५ ।। पंचिंदिया उ जे जीवा, चउविहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ ५६ ।। नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ।। ५७ ।। पंकामा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ।। १५८ ।।

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